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क्यों टेढ़ा विराजमान हैं यहां भोलेनाथ, औरंगजेब से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास - Gwalior Koteshwar Mahadev Temple - GWALIOR KOTESHWAR MAHADEV TEMPLE

ग्वालियर में भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर है जिसका शिवलिंग टेढ़ा है. इस टेढ़े शिवलिंग के पीछे कई मान्यताएं प्रचिलत हैं.

GWALIOR KOTESHWAR MAHADEV TEMPLE
कोटेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग टेढ़ा है (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 5, 2024, 8:42 PM IST

ग्वालियर: हिंदू धर्म में सावन का महीना बड़ा पवित्र माना जाता है. इस पूरे महीने भगवान भोलेनाथ के भक्त दर्शन करने के लिए शिवालयों में जाते हैं और भगवान की पूजा-आर्चना करते हैं. भोलेनाथ को समर्पित सावन के महीने में शिवलिंग का जलाभिषेक, दूग्धाभिषेक किया जाता है जो बहुत पुण्यकारी माना जाता है. देश दुनिया में तमाम शिवालय हैं, लेकिन ग्वालियर का यह शिवालय सभी से अलग है. यहां सैकड़ों वर्षों पहले स्थापित शिवलिंग टेढ़ा है. आखिर ऐसा क्यों है चलिए इसका कारण जान लेते हैं.

कोटेश्वर महादेव मंदिर का रोचक इतिहास (ETV Bharat)

औरंगजेब से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

ग्वालियर में स्थित यह कोटेश्वर महादेव मंदिर 400 साल पुराना है. लेकिन इसमें विराजमान शिवलिंग उससे भी पुराना और ऐतिहासिक है. इस मंदिर को लेकर कई कहानियां चलती हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि, जब मुगल शासक औरंगजेब ने ग्वालियर दुर्ग पर विजय प्राप्त की थी तो सबसे पहले उसने किले पर स्थापित देवी देवताओं की मूर्तियों को उखड़वाकर नीचे फेंकवा दिया था. उसी दौरान महादेव का यह शिवलिंग भी उसने किले से नीचे फेंकवा दिया था. शिवलिंग टेढ़ी अवस्था में नीचे गिरा था. शिवजी उसी स्थिति में यानी टेढ़े शिवलिंग के स्वरूप में यहीं विराजमान हो गए.

टेढ़ा शिवलिंग (ETV Bharat)

सिंधिया राजवंश ने कराया था निर्माण

मंदिर के पुजारी कहते हैं कि, इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी यह शिवलिंग खंडित नहीं हुआ और यहीं स्थापित हो गया. जब सिंधिया राजवंश ने ग्वालियर का किला फतह किया तो कुछ समय बाद महाराज जियाजी राव शिंदे की नजर इस शिवलिंग पर पड़ी. उन्होंने अपने सैन्य अधिकारी खड़ेराव हरि को यहां मंदिर निर्माण कराने का आदेश दिया. हिंदू संवत 1937-38 में इस मंदिर का निर्माण हुआ था.

मंदिर में स्थापित प्रतिमा (ETV Bharat)

शिवलिंग की रक्षा के लिए आ गए थे सांप

इस मंदिर को लेकर एक और मान्यता चलती है कि, इस मंदिर का निर्माण राजमन सिंह तोमर ने कराया था. वे बहुत बड़े शिव भक्त थे. जब औरंगजेब ने किला फतह किया तो उसने सभी देवी देवताओं की मूर्तियों को नीचे फेंकवाने लगा लेकिन उसके सैनिक जब इस शिवलिंग को उखाड़ रहे थे तो इसकी रक्षा करने के लिए अचनाक वहां सैकड़ों सांप आ गए थे. सैनिक शिवलिंग को नहीं उखाड़ पाए. औरंगजेब को जब यह बात पता चली तो उसने पूरा मंदिर ही उखड़वाकर नीचे फेंकवा दिया था. इसके बाद राजमन सिंह तोमर ने मंदिर का निर्माण कराया था.

मंदिर का बाहर से दृश्य (ETV Bharat)

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प्राचीन मंदिर की कलाकारी (ETV Bharat)

ऐसे पड़ा कोटेश्वर महादेव नाम

मंदिर के निर्माण को लेकर अलग-अलग कहानियां है. लेकिन इसके कोटेश्वर महादेव के नाम को लेकर स्थिति एकदम साफ है. आपको बता दें कि ग्वालियर नक्काशी और तरासे पत्थरों के लिए भी जाना जाता है. पहले यहां पर कोटा पत्थर बड़ी मात्रा में पाया जाता था. उसकी बड़ी-बड़ी खदाने हुआ करती थीं. इसीलिए इस मंदिर का नाम कोटेश्वर महादेव पड़ गया. तभी से यह इसी नाम से जानी जाती है.

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