देहरादून:सुप्रीम कोर्ट ने उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण पर सरकार को झटका दिया है, जिसके बाद नई बहस शुरू हो गई. एक तरफ सरकार संविदा कर्मियों के नियमितीकरण के लिए पॉलिसी तैयार कर रही है तो दूसरी तरफ कोर्ट के आदेश के बावजूद उपनल कर्मियों को नियमित करने से परहेज किया जा रहा है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश पर मोहर लगा दी है, लेकिन सरकार मामले पर कंफ्यूजन में हैं.
उत्तराखंड में उपनल कर्मियों के नियमितीकरण का मुद्दा सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज करके उपनल कर्मियों को बड़ी खुशी का मौका दिया है तो सरकार की स्थिति कन्फ्यूजन वाली है. फिलहाल, इस पर सरकार रिव्यू पिटीशन के मूड में दिखाई दे रही है. हालांकि, सरकार के मंत्री खुलकर इस बात को भी नहीं कह पा रहे हैं.
वहीं, सरकार की मौजूदा स्थिति डबल स्टैंडर्ड वाली बनी हुई है. एक तरफ राज्य सरकार संविदा कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर रेगुलेशन पॉलिसी 2024 लाने जा रही है तो दूसरी तरफ हाईकोर्ट के उपनल कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही है.
सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन के मूड में सरकार:उपनल कर्मी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अभी राहत ले ही रहे थे कि सरकार ने यह कहकर उनकी परेशानियां बढ़ा दी कि अभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का परीक्षण करवाया जा रहा है. जाहिर है कि सरकार के इस बयान का मतलब सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन की मंशा को जाहिर करना है. सरकार में वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि अभी सरकार इस मामले में विचार कर रही है और अंतिम निर्णय होने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
नियमित ना करने के पीछे रहता है वित्तीय बोझ का तर्क:वित्तीय बोझ का तर्क देकर सरकार उपनल कर्मचारियों को नियमित करने से बचती रही है. सरकार का दावा रहा है कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है और ऐसी स्थिति में यदि बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नियमित किया जाता है तो सरकार पर वित्तीय बोझ बन जाएगा.उत्तराखंड इस समय करीब 80 हजार करोड़ के कर्ज में है. ऐसी स्थिति में जब उत्तराखंड का 80 फीसदी बजट अयोजनागत मद में खर्च हो रहा है, तब सरकार और ज्यादा वित्तीय बोझ सहने की स्थिति में नहीं है.