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Rajasthan: बैलों की जगह गधों की करते हैं पूजा, जानिए ये खास परंपरा - DONKEYS ARE WORSHIPPED

गोवर्धन पूजा के दिन बैलों की जगह कुम्हार समाज के लोग गधों की करते हैं पूजा. अपनी रोजी-रोटी के लिए गधे की करते हैं पूजा.

worship of donkeys
मांडल कस्बे में गधों की पूजा (ETV Bharat Bhilwara)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 3, 2024, 3:57 PM IST

भीलवाड़ा:दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा पर देश के अधिकतर हिस्सों में बैलों की विधि-विधान से पूजा की जाती है, लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में गधों की पूजा का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है. कुम्हार समाज के लोग इस दिन गधों को नहला धुला कर बड़े ही सुंदर तरीके से सजाने के बाद उनकी पूजा करते हैं.

मांडल कस्बे के लोग बताते हैं कि किसान बैल की पूजा करते हैं, उसी प्रकार कुम्हार (प्रजापति) समाज के लोग गधों की पूजा सालों से करते आ रहे हैं, क्योंकि इस समाज के लिए गधे ही रोजी-रोटी का बड़ा साधन है. गधों से तालाब से मिट्टी ढोकर लाते हैं, इसलिए सालों से यह परंपरा मांडल कस्बे में निभाई जा रही है. मांडल में इस दिन (वैशाख नंदन) गधे की पूजा के लिए पूरा कुम्हार समाज इकट्ठा होता है.

बैलों की जगह गधों की पूजा (ETV Bharat Bhilwara)

प्रताप नगर क्षेत्र में गधों को नहला धुला कर सजाया जाता है. इन पर रंग-बिरंगे कलर लगाए जाते हैं, फिर इनको माला पहना कर पहले चौक में लाया जाता है. वहां पंडित पूजा-अर्चना के बाद इनका मुंह मीठा कराते हैं, फिर उनके पैरों में पटाखे डालकर इनको भड़काया जाता है. उसके बाद इनकी दौड़ संपन्न कराई जाती है. गधों की पूजा के अनूठे आयोजन को देखने के लिए मांडल के आसपास के लोग आते हैं.

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कस्बे के गोपाल कुम्हार कहते हैं कि बैसाख नंदन पर्व मांडल में लगभग 70 सालों से मनाते आ रहे हैं. हमारे पूर्वज पहले हर घर में गधे रखते थे. उससे हमारी रोजी रोटी चलती थी, लेकिन अब जैसे-जैसे साधन बढ़ रहे हैं, इनकी संख्या कम होती जा रही है. इनको हम भूले नहीं और हमारे पूर्वज दीपावली पर इनको पूजते थे. उसी परंपरा को निभाते हुए हम भी दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा के दिन हम इनको पूजते हैं. जिस प्रकार किसान अपने बैलों की पूजा करते हैं, उसी प्रकार हम कुम्हार समाज के लोग परंपरा को बनाए रखे हुए हैं.

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