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राजस्थान के राज्य पक्षी की अनदेखी, 2018 के बाद से अब तक नहीं हुई गोडावण की गणना

राजस्थान के राज्य पक्षी द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानि गोडावण लुप्तप्राय पक्षियों की श्रेणी में आता है. 2018 में गोडावण की गणना की गई थी. प्रदेश में अभी कितने गोडावण बचे हैं, इसकी जानकारी राज्य पक्षी के संरक्षण में लगे विभाग के जिम्मेदारों तक को नहीं है.

राजस्थान के राज्य पक्षी की अनदेखी
राजस्थान के राज्य पक्षी की अनदेखी

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 20, 2024, 6:33 AM IST

2018 के बाद से अब तक नहीं हुई गोडावण की गणना

जैसलमेर. राजस्थान के राज्य पक्षी द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानि गोडावण लुप्तप्राय पक्षियों की श्रेणी में आता है. इस पक्षी की संख्या का आंकड़ा लगातार गिर रहा है. गोडावण के संरक्षण के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए है. राज्य पक्षी गोडावण को बचाने के प्रयास हर दिशा में विफल होते दिखाई दे रहे हैं. करीब 5 साल पहले वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ने प्रदेश में गोडावण की गणना की थी. वर्तमान में प्रदेश में कितने गोडावण बचे हैं, इसकी जानकारी राज्य पक्षी के संरक्षण में लगे विभाग के जिम्मेदारों तक को नहीं है.

गोडावण की गणना साल में दो बार होनी चाहिए. लेकिन 5 साल हो गए गोडावण की गिनती ही नहीं की गई है. उप वन संरक्षक डीएनपी ने बताया कि 2018 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून की ओर से गोडावण की गणना की गई थी. उसके बाद किन्हीं कारणों से अब तक गणना नहीं हुई है. इस बार जब भी गणना की जाएगी तो बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे.

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2018 में थे 128 गोडावण : गोडावण का प्रजनन काल अप्रैल से सितंबर माह तक रहता है. गोडावण संरक्षण के प्रयास देश-विदेश के विशेषज्ञ भी कर रहे हैं. इस कार्य में करोड़ों रुपए खर्च भी किए गए हैं. जानकार सूत्रों ने बताया कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट की गणना में स्पष्ट संख्या नहीं बताई जाती है. जब तक संख्या को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होगी, तब तक बेहतर तरीके से संरक्षण के प्रयास नहीं हो सकेंगे. डीएनपी के आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में इसकी गणना हुई थी, तब गोडावण की संख्या लगभग 128 थी. ऐसे में गोडावण पक्षी की वर्तमान संख्या को लेकर विभाग के अफसर केवल अंदाजा ही लगा रहे हैं. हालांकि हर साल वन विभाग को ओर से वाटर होल पद्धति से गोडावण की गणना की जाती है, लेकिन पिछले साल बारिश की वजह से वाटर होल पद्धति से भी गणना नहीं हुई.

सूत्रों ने बताया कि संख्या की बात की जाए, तो कुछ दशक पहले देश भर में इनकी संख्या 1000 से अधिक थी. एक अध्ययन के अनुसार 1978 में गोडावण की संख्या 745 थी, जो 2001 में घटकर 600 और 2008 में 300 रह ही गई थी. गोडावण बचाने के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों के अनुसार इस समय करीब 150 से भी कम गोडावण बचे हैं. गोडावण अंडे केवल जैसलमेर में देते हैं. बिजली के तारों की चपेट में आने से एक दर्जन से अधिक गोडावण मर चुके हैं. लुप्तप्राय गोडावणों की इस तरह से मौत होना बेहद चिंता का विषय है.

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जल्द होगी गिनती : जैसलमेर डीएनपी के डीएफओ आशीष व्यास ने बताया कि गोडावन की गणना साल 2018 में हुई थी, लेकिन उसके बाद कोरोना काल के चलते करीब दो-तीन साल इस प्रकार की सभी गतिविधियां बंद रही. इसके कारण गोडावन की गणना नहीं हो पाई. उन्होंने बताया कि कोरोना काल के बाद भी विभाग में स्टाफ की कमी के चलते कई सालों से गणना नहीं हो पाई है. उन्होंने कहा कि अब नए स्टाफ की भर्ती की गई है, ऐसे में कोशिश की जाएगी कि इस बार गणना हो. उच्च कार्यालय से परमिशन लेकर इस कार्य को किया जाएगा.

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