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स्थापना दिवस पर जानिए गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की खूबियां - अरपा महोत्सव

Gaurela Pendra Marwahi 15 अगस्त 2019 को गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के गठन की घोषणा की गई. 10 फरवरी 2020 को गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला अस्तित्व में आया. तब से लेकर हर साल 10 फरवरी को गौरेला पेंड्रा मरवाही का स्थापना दिवस मनाया जाता है.

Gaurela Pendra Marwahi
गौरेला पेंड्रा मरवाही

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 9, 2024, 6:25 PM IST


गौरेला पेण्ड्रा मरवाही: गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का 10 फरवरी को स्थापना दिवस है. साल 2020 की 10 फरवरी को इस जिले का गठन हुआ था. इस बार भी जीपीएम में स्थापना दिवस की धूम देखी जा रही है.

अरपा महोत्सव का होता है आयोजन: गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिला मैकल पर्वत श्रृंखला और अमरकंटक की तराई में बसा हुआ है. जिले की शान और पहचान के लिए 'अरपा महोत्सव' चर्चित है. अरपा नदी का उदगम स्थल होने की वजह से यहां पर 'अरपा महोत्सव' मनाया जाता है. जिला गठन के साथ ही यहां पर प्रतिवर्ष जिला स्थापना दिवस के साथ ही 'अरपा महोत्सव' मनाए जाने की घोषणा भी की गई थी. जो हर साल मनाया जा रहा है.

जीपीएम जिले की भौगोलिक स्थिति: छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित इस जिले को बिलासपुर जिले का विभाजन कर बनाया गया है. जिले की सीमा उत्तर में मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर, दक्षिण में कोटा, पूर्व में कटघोरा और पश्चिम एमपी का सोहागपुर है. जिले का क्षेत्रफल 2307.39 वर्ग किलोमीटर है. जिले में 4 तहसील, 3 ब्लॉक और 224 गांव शामिल हैं.

'छत्तीसगढ़ मित्र' से चर्चा में आया पेंड्रा: छत्तीसगढ़ के प्रथम हिंदी समाचार पत्र 'छत्तीसगढ़ मित्र' का प्रकाशन पेंड्रा रोड से हुआ था. अविभाजित छत्तीसगढ़ में माधव राव सप्रे ने प्रदेश में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत की थी. उनका व्यक्तित्व और कृतित्व सभी साहित्यकारों, पत्रकारों और आम जनता के लिए भी प्रेरणादायक है. उन्होंने सन् 1900 में पेंड्रा से रामराव चिंचोलकर के साथ मिलकर हिन्दी पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का सम्पादन और प्रकाशन शुरू किया था. तभी से पेंड्रा की पहचान बनी.

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों का है गढ़: यहां गौरेला में 'राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र' कहलाने वाली बैगा जनजाति बहुतायत में हैं. इसी वजह से इसे पहले 'विशेष अनुसूचित जनजाति क्षेत्र' का दर्जा मिला. कहा जाता है कि यहां अमरकंटक की सीमा से लगे 'कबीर चबूतरा' पर कबीर और गुरुनानक जी के बीच लंबी चर्चा हुई थी.

गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिले का इतिहास: ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, रतनपुर के कल्चुरी नरेश ने दो भाइयों हिंदुसिंह और छिंदुसिंह की ईमानदारी से प्रसन्न होकर यह क्षेत्र को उन्हें ईनाम स्वरूप दिया था. लंबे समय तक यह क्षेत्र इनके नियंत्रण में रहा. बाद में यह क्षेत्र मराठों के नियंत्रण में भी आया. पेण्ड्रा क्षेत्र के बारे में बताया जाता है कि यह एक समय पर पिंडारियों की गतिविधियों का केंद्र था. वे आसपास के क्षेत्रों पर आक्रमण और लूटपाट करते थे. उन्हीं के वजह से इस क्षेत्र को पहले पिण्डारा और फिर पेण्ड्रा नाम मिला.

जिले में उगाई जाने वाली फसलें:फसलों की बात करें तो इस जिले में सबसे अधिक खेती चावल की ही होती है. उसके अलावा गेहूं, चना, धान, मक्का, ज्वार, मूंगफली की खेती होती है. फलों में जामुन और सीताफल और मिलेट्स का उत्पादन भी यहां होता है.

जिले में पांच कॉलेज हैं स्थापित: जिले में कुल पांच बड़े काॅलेज हैं. जिनमें डॉ भंवर सिंह पोर्ते कॉलेज पेण्ड्रा, डॉ भंवर सिंह पोर्ते कॉलेज मरवाही, आयुश कॉलेज ऑफ एजुकेशन पेण्ड्रारोड, गवर्नमेंट पंडित माधव राव सप्रे कॉलेज, गवर्नमेंट फिज़िकल कॉलेज पेण्ड्रा है. इसके साथ ही डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर (DIET) भी यहां मौजूद है.



गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिले के पर्यटन स्थल:

ज्वालेश्वर महादेव धाम:अमरकंटक जाने वाले रास्ते में गौरेला से लगभग 25 किमी दूर स्थित जलेश्वर महादेव धाम स्थित है. यहां भगवान शिव की 12वीं सदी में बनाी कलचुरी कालीन मंदिर स्थापित है. जलेश्वर धाम में भक्तजन अमरकंटक के नर्मदा उद्गम से जल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.

झोझा जलप्रपात:गौरेला के अंतिम छोर पर बस्तीबगरा ग्राम पंचायत के पास पेण्ड्रा से लगभग 45 किमी दूरी पर झोझा जलप्रपात आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है. यहां लगभग 100 फीट की ऊंचाईं से पानी झरने की शक्ल में गिरता है, जिसे देखने पर्यटक दूर दूर से आते हैं.

धनपुर:पेण्ड्रा से सिवनी मार्ग में लगभग 14 किमी दूरी पर स्थित है धनपुर. यहां मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर है. यहां प्रस्तर मूर्तियां और पत्थर पर निर्मित कलाकृतियां दर्शनीय हैं. मान्यता है कि पाण्डव अज्ञातवास के दौरान यहां रूके थे. उन्होंने इस स्थान पर 365 तालाब भी खोदे थे. यहां पत्थर से पत्थर बजाने पर घंटी की आवाज आती है.


लक्ष्मण धारा:गौरेला विकासखण्ड के खोडरी ग्राम पंचायत के निकट लगभग 18 किमी दूरी पर लक्ष्मण धारा आकर्षण का केन्द्र है. लोग यहां पिकनिक मानने के लिये आते हैं. इस धारा में वर्ष भर पानी रहता है.

सोनकुंड:सोन कुंड पेण्ड्रा विकासखंड में स्थित है. यहां पर आकर आप सोनभद्र नदी का उद्गम स्थल देख सकते हैं. इस स्थान पर धुम्मेश्वर महादेव का अत्यंत पुराना शिवलिंग स्थापित है. यहां मां काली का मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, नर्मदा जी का मंदिर एवं शनिदेव मंदिर भी है.

गगनई नेचर कैम्प: मरवाही वन परिक्षेत्र के ग्राम साल्हेकोटा में वन विभाग द्वारा गगनई नेचर कैम्प स्थापित है. वन विभाग द्वारा बनाया गया पार्क पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है यहां गगनई डैम पर हाल ही में नौका विहार की शुरुवात की गई है.

इंदिरा गार्डन: इंदिरा गार्डन इसजिले का सबसे बड़ा गार्डन है. नियम कानून के चलते पहले जैसे यहां पर अब जानवरों की संख्या घट गई है.

गणेशपुरी आश्रम: पेण्ड्रा से रतनपुर जाने वाले मुख्यमार्ग पर करिआम गांव का गणेशपुरी आश्रम स्थित है. इसे गणेश दादा के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर आम वृक्ष के नीचे स्वयंभू रूप में विराजित भगवान गणेश की प्रतिमा है. समय के साथ यह मूर्ति लगातार बढ़ रही है. गणेश चतुर्थी के दौरान यहां पर काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर गणपति जी का आशीर्वाद लेते है.

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर भी आए थे पेण्ड्रा: छत्तीसगढ़ के पेण्ड्रा से भी गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर का खास नाता रहा है. सन 1902 में गुरुदेव अपनी पत्नी के साथ यहां आए थे.

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