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दिल्ली चुनाव में कूड़ा बना बड़ा मुद्दा, लोगों को कूड़ा का समाधान निकालने वाली सरकार का इंतजार - GARBAGE ISSUE IN DELHI ELECTIONS

दिल्ली चुनाव में इस बार कई मुद्दे हावी हैं, जिसमें कुछ मुद्दे लोगों की प्राथमिकता में शामिल हैं. इन्हीं में से एक है लैंडफिल साइट्स.

लोगों को कूड़ा हटाने वाली सरकार का इंतजार
लोगों को कूड़ा हटाने वाली सरकार का इंतजार (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 3, 2025, 6:53 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में गंदगी और कूड़े के पहाड़ चुनावी मुद्दा बन रहे हैं, लेकिन क्या इसका कोई ठोस हल निकलेगा ? राजधानी में हर दिन 11,300 टन कचरा निकलता है, लेकिन लैंडफिल साइटें भर चुकी हैं और नए समाधान नहीं हैं. गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट के आसपास रहने वाले लाखों लोग बदबू और प्रदूषण से परेशान हैं, लेकिन राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में ये कूड़ा भले ही नजर ना आ रहा हो लेकिन लोगों के जेहन में स्वच्छता का मामला सर्वोपरि है.

आप सांसद स्वाति मालीवाल ने उठाया मुद्दा :आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने इस मुद्दे पर विरोध जताते हुए दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर ट्रक भरकर कूड़ा डलवाया था. इस बार के चुनाव में कूड़े का पहाड़ लोगों के लिए कितना बड़ा मुद्दा है इसपर ईटीवी भारत ने गाजीपुर स्थित लैंडफिल साइट के पास मुल्ला कॉलोनी में रह रहे लोगों से बातचीत की तो उन्होंने समस्याएं बताते हुए अपना दर्द बयां किया. हर दिन करीब 3,300 टन कचरा निस्तारित नहीं हो पा रहा.

रोजाना 11,300 टन तीनों लैंडफिल साइटों पर पहुंचता है कूड़ा (ETV BHARAT)
लोगों को कूड़ा का समाधान निकालने वाली सरकार का इंतजार (ETV BHARAT)
रोजाना 11,300 टन तीनों लैंडफिल साइटों पर पहुंचता है कूड़ा : दिल्ली नगर निगम के निर्माण समिति के पूर्व चेयरमैन जगदीश ममगाई के मुताबिक रोजाना 11,300 टन कूड़ा तीनों लैंडफिल साइटों पर पहुंचता है, लेकिन 9,700 टन ही निस्तारित हो पाता है. हर दिन 3,300 टन कूड़ा बिना निस्तारण के रह जाता है, जिससे समस्या बढ़ती जा रही है. सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि कूड़े को निस्तारित कर मिट्टी में तब्दील करने के बाद उसे रखने के लिए भी जगह नहीं है. दिल्ली सरकार ने 2020 के बाद तीनों लैंडफिल साइटों पर कूड़ा नहीं डालने का दावा किया था, लेकिन नई लैंडफिल साइट तय नहीं हुई और मजबूरी में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में ही कूड़ा डाला जा रहा है.
रोजाना 11,300 टन तीनों लैंडफिल साइटों पर पहुंचता है कूड़ा (ETV BHARAT)
बदबू और बीमारियों से बेहाल हैं यहां के लोग : गाजीपुर लैंडफिल साइट के पास मुल्ला कॉलोनी में 28 साल से रह रहीं बिल्किस कहती हैं कि कूड़े के पहाड़ से बदबू इतनी ज्यादा आती है कि सांस लेना मुश्किल हो जाता है. कई बार यह बदबू दिमाग पर चढ़ जाती है और सिर दर्द होने लगता है. मकान हमारा है. बच्चे यहीं पढ़ते हैं. इसलिए मजबूरी में रह रहे हैं, लेकिन कोई रहना नहीं चाहता.
बदबू और बीमारियों से बेहाल हैं लैंडफिल साइट्स के लोग (ETV BHARAT)

मच्छरों के चलते फैल रहा डेंगू और मलेरिया :25 साल से मुल्ला कॉलोनी में रह रहे शहाबुद्दीन ने ईटीवी भारत को बताया कि कूड़े के पहाड़ के पास बहने वाला नाला हमेशा भरा रहता है.गंदगी के कारण इलाके में बीमारियां फैल रही हैं. हर सरकार कहती है कि कूड़ा हटाएंगे, लेकिन कभी नहीं हटता. मच्छरों का प्रकोप इतना ज्यादा है कि डेंगू और मलेरिया आम हो गया है. महेंद्र कुमार का कहना है कि गरीबों को बदबू में रहने के लिए छोड़ दिया गया है. सरकार कोई भी आए, हमारी परेशानी नहीं समझती. पैसे वालों के लिए हर सुविधा मिलती है, लेकिन हमें सिर्फ वादे मिलते हैं.

लोगों को कूड़ा हटाने वाली सरकार का इंतजार :मोहम्मद जुल्फिकार 32 साल से इसी इलाके में रह रहे हैं. उन्होंने बताया किकूड़े की बदबू से घर में मेहमान तक नहीं आना चाहते. सरकार हर चुनाव में इस समस्या को हल करने का दावा करती है, लेकिन कूड़े का पहाड़ जस का तस है. अब चुनाव आया है, तो फिर से नेता कूड़ा हटाने की बात करेंगे, लेकिन हमें भरोसा नहीं रहा.

चुनाव में कूड़े का पहाड़ बना है बड़ा मुद्दा :अल्ताफ आलम का कहना है कि प्रदूषण और बदबू के कारण लोग लगातार बीमार हो रहे हैं. हर चुनाव में कूड़े का पहाड़ मुद्दा बनता है, लेकिन 5 साल बाद भी यह पहाड़ नहीं हटता. इस बार भी सिर्फ वादे होंगे, हमें नहीं लगता कि सरकार इसे हटाने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी.

क्या राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंभीर होंगे:गाजीपुर, भलस्वा और ओखला के आसपास रहने वाले लाखों लोगों के लिए स्वच्छता और कूड़े का समाधान इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा है. सवाल यह है कि क्या कोई भी राजनीतिक दल इसे अपनी प्राथमिकता में रखेगा या यह सिर्फ एक चुनावी बहस बनकर रह जाएगा. दिल्ली को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने के लिए जवाबदेही, संसाधन और ठोस नीतियों की जरूरत है, लेकिन क्या इस बार नेता सिर्फ वादे करेंगे या वास्तव में कुछ बदलाव लाएंगे?

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