जयपुर.फ्रांस का पेरिस दुनिया के उन्नत और सुंदर शहरों में गिना जाता है. इस तरह भारत में जयपुर को भी पेरिस कहा जाता है. यहां की विरासत, प्राचीन इमारतें, स्थापत्य कला और वास्तुकला का जिक्र तो खुद यूनेस्को ने भी किया है. गुरूवार को जयपुर की इसी सांस्कृतिक धरोहर को निहारने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों जयपुर पहुंचे, यहां विशेष कर जंतर-मंतर को लेकर उन्होंने रुचि दिखाई, जो न सिर्फ देश की सबसे बड़ी वेधशाला है, बल्कि यहां बनाए गए यंत्रों के जरिए सवाई जयसिंह ने समरकंद के उलूकबेग तक ज्योतिषीय सारणियों तक में संशोधन करवाने का काम किया था. आज भी इन्हीं यंत्रों के आधार पर बारिश का पूर्वानुमान लगाने से लेकर जयविनोदी पंचांग तक तैयार किया जाता है.
दिशा के आधार पर वर्षा का पूर्वानुमान :सवाई राजा जयसिंह ने साल 1734 में जयपुर में सबसे बड़ी वेधशाला जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था. विश्व विरासत में शामिल जयपुर का जंतर-मंतर में रियासत कालीन परंपरा के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन सबसे बड़े सम्राट यंत्र से वायु परीक्षण किया जाता है. इस वायु परीक्षण के लिए ज्योतिषाचार्य सम्राट यंत्र की ऊंचाई पर पहुंचते हैं, और एक ध्वज लहराकर वायु की दिशा के आधार पर वर्षा का पूर्वानुमान करते हैं. सम्राट यंत्र की ऊंचाई 105 फीट है. इस यंत्र का निर्माण चूने और पत्थर से किया गया है. अपनी भव्यता और विशालता के कारण ही इसे सम्राट यंत्र नाम दिया गया. इस यंत्र क सबसे ऊपर एक छतरी बनी हुई है. ये यंत्र समय ज्ञान, ग्रह नक्षत्रों की क्रांति, विषुवांश और समय ज्ञान के लिए स्थापित किया गया था.
सबसे बड़ा जंतर-मंतर :इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जंतर-मंतर का विश्व विरासत सूची में नाम है. देशभर में सवाई जयसिंह की ओर से बनाए गए पांच जंतर-मंतर (जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और बनारस) में सबसे बड़ा जयपुर में ही मौजूद है, जहां सम्राट यंत्र, जय प्रकाश यंत्र, राम यंत्र, राज यंत्र, दक्षिणा यंत्र, ध्रुव यंत्र, दीर्घ क्रांति यंत्र, लघु क्रांति यंत्र, राशिवलय यंत्र, नाड़ीवलय यंत्र, उन्नताश यंत्र और दिशा यंत्र जैसे पत्थर के बने यंत्र मौजूद हैं. जिनके आधार पर आज भी जयविनोदी पंचांग निकाला जाता है. इन यंत्रों के माध्यम से सुई की नोंक के दसवें हिस्से तक की गणना की जा सकती है. जंतर-मंतर प्राचीन गणना के साथ आधुनिक गणना का समानीकरण है.