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केदारनाथ उपचुनाव से पहले कांग्रेस में 'कलह', गुटबाजी ने मेहनत पर फेरा पानी, कैसे पार होगी बड़ी चुनौती?

उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष के बीच समन्वय की कमी, नियुक्तियों के साथ ही पर्यवेक्षकों पर टकराव की स्थिति

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 4 hours ago

CONGRESS IN KEDARNATH BY ELECTION
केदारनाथ उपचुनाव से पहले कांग्रेस में 'कलह (Etv Bharat)

देहरादून: केदारनाथ उपचुनाव की घोषणा होने के बाद कांग्रेस में गुटबाजी का दौर शुरू हो गया है. केदारनाथ विधानसभा सीट पर चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड कांग्रेस की गुटबाजी सतह पर आ गई है. प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के एक निर्णय से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा अपने आप को असहज महसूस कर रहे हैं. तल्खी इतनी बढ़ गई है कि कोई कार्य करें उसमें हाई कमान रोक लगा दे रहा है. हाईकमान और प्रदेश के कुछ बड़े नेता कोई ना कोई आपत्ति लगाकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का काम बाधित करने में लगे हुए हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या कारण है कि कांग्रेस केदारनाथ उपचुनाव में सक्रिय भूमिका में नजर नहीं आ रही है.

कांग्रेस पार्टी ने कुछ दिनों पूर्व पार्टी प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नेतृत्व केदारनाथ प्रतिष्ठा रक्षा यात्रा निकालकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. इसके बाद पार्टी प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने उपचुनाव से पहले कांग्रेस हाई कमान की ओर से पर्यवेक्षकों के नाम मांगे. जिसमें युवा विधायक और उप नेता प्रतिपक्ष भवन कापड़ी और वीरेंद्र जाति का नाम भेजा गया. जिनकी हाई कमान की ओर से मंजूरी मिलने के बाद विधिवत घोषणा कर दी गई थी, लेकिन अचानक अन्य दो पर्यवेक्षकों के नाम सामने आए. इसमें पूर्व प्रदेश अधयक्ष गणेश गोदियाल बतौर मुख्य पर्यवेक्षक और विधायक लखपत बुटोला को पर्यवेक्षक के तौर पर नामित किया गया है. पर्यवेक्षक प्रकरण में ताजा मोड़ आने के बाद पार्टी के भीतर गुटबाजी शुरू हो गई है.

एक तरफ जहां केदारनाथ प्रतिष्ठा रक्षा यात्रा में कांग्रेस पुरजोर तरीके से केदारनाथ मंदिर सोने की परत और दिल्ली में बनाये जा रहे केदारनाथ मंदिर स्वरूप का मामला प्रमुखता से उठाया, तो वहीं उपचुनाव से पहले कांग्रेस की गुटबाजी ने इस मेहनत पर पानी फेर दिया है. आलम यह है कि चुनाव की घोषणा होने के बाद कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय में कार्यकर्ता और नेता नजर ही नहीं आ रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि हाई कमान के फैसलों से केदारनाथ उपचुनाव को लेकर प्रदेश अध्यक्ष और शीर्ष नेतृत्व व उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच कोआर्डिनेशन की कमी है. हाई कमान यानी प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा की तरफ से कोई वर्चुअल बैठक या देहरादून में कार्यकर्ताओं के साथ कोई बैठक नहीं की गई. यही वजह कांग्रेस की हताशा और निराशा को दर्शा रही है.

एक तरफ हरियाणा में यह माना जा रहा था कि कांग्रेस वहां सरकार बनाने जा रही है लेकिन अंदरूनी गुटबाजी की वजह से कांग्रेस की सरकार हरियाणा में बनते बनते रह गई. सूत्र बताते हैं कि कुमारी शैलजा के के पास उत्तराखंड में होने जा रहे केदारनाथ विधानसभा के उपचुनाव में भूल सुधार किए जाने का बेहतरीन मौका था, लेकिन उनकी निष्क्रियता के कारण कांग्रेस पार्टी के लिए केदारनाथ उपचुनाव भी चुनौती बनता जा रहा है. पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि प्रदेश प्रभारी बनने के बाद उनके जितने भी उत्तराखंड दौरे हुए वो मात्र कुछ घंटे के ही रहे हैं. एक दिन भी उन्होंने कार्यकर्ताओं ,संगठन से जुड़े पदाधिकारियों के साथ संवाद स्थापित करने की जहमत नहीं उठाई. दिल्ली में एयर कंडीशन कमरों में उनकी ओर से पार्टी के नेताओं के साथ मीटिंग की गई, लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं से उन्होंने मिलना भी मुनासिब नहीं समझा.

दरअसल देहरादून के पछुआदून में करन माहरा की तरफ से बनाए गए कार्यकारी जिला अध्यक्ष की नियुक्ति पर भी प्रदेश प्रभारी ने एक्शन लिया था. पार्टी प्रदेश अध्यक्ष माहरा को पत्र लिखकर उनके कार्यकाल की सभी नियुक्ति रद्द की थी. इतना ही नहीं उस पत्र को सार्वजनिक भी कर दिया गया था जिसको लेकर माहरा को सफाई देनी पड़ी थी. सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे माहौल में कांग्रेस उपचुनाव जीत पाएगी? क्योंकि हाई कमान का प्रदेश कांग्रेस से समन्वय नहीं नजर आ रहा है.

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