नई दिल्ली:गर्मी शुरू होते ही दिल्ली में पीने के पानी को लेकर त्राहि-त्राहि होने लगती है. राजधानी का अधिकतम पारा 52 पार कर रहा है तो ऐसे में पानी की डिमांड और ज्यादा हो गई है. डिमांड ज्यादा होने के साथ हरियाणा से मिलने वाला पानी भी कम हो गया है. इससे स्थिति गंभीर और ज्यादा चिंताजनक बन गई है. दरअसल दिल्ली के पास पानी का अपना कोई ठोस स्रोत नहीं है. इसलिए दिल्ली हमेशा हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर निर्भर रहा है. दिल्ली को हरियाणा के मुनक नहर और यूपी के गंग नहर/मुरादनगर के जरिए पानी मिलता रहा है.
अभी फिलहाल दिल्ली को हरियाणा से कच्चा पानी यमुना नदी के जरिए मिलता है. यमुना जल विवाद को लेकर दिल्ली और हरियाणा सरकार कई बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है. हर बार फौरी तौर पर समस्या का समाधान होता आया है. अब जब राजधानी पर एक बार फिर जलसंकट गहरा रहा है, तो इस पर चर्चा होना और सवाल उठना लाजमी है कि आखिरी दिल्ली के पास पानी को लेकर अपने क्या स्रोत हैं और पानी के वितरण का प्रबंधन किस तरह का है? दिल्ली को कितना पानी रोज चाहिए? इन सभी को सिलसिलेवार तरीके से समझना होगा.
दिल्ली के पास पानी के स्त्रोत:दिल्ली पानी को लेकर हमेशा अपने पड़ोसी राज्यों पर ही निर्भर रहता है. भीषण गर्मी में राजधानी पानी की किल्लत से जूझने लगती है. वहीं, दिल्ली और हरियाणा सरकार के बीच पानी को लेकर सियासत भी गरमा जाती है. दिल्ली जहां हरियाणा पर कम पानी छोड़ने के आरोप लगाती है, तो हरियाणा उस पर पानी की बर्बादी और पर्याप्त पानी छोड़ने जाने की बात कहता रहा है. लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली के पास पानी के अपने कोई ठोस स्रोत उपलब्ध नहीं हैं. यमुना नदी में हरियाणा की तरफ से छोड़े जाने वाले पानी पर निर्भर करता है दिल्ली को कितने पानी की सप्लाई हर रोज होगी.
वहीं, दिल्ली को यूपी की तरफ से अपर गंग नहर के जरिए हैदरपुर और ओखला साइड से भी पानी मिलता रहा है. हालांकि, मौजूदा सरकार पानी के उत्पादन के अपने स्रोतों को मजबूत बनाने का दावा लंबे समय से करती आ रही है. हालांकि, दिल्ली की ओर से भी यमुना के बाढ़ के मैदानों और अन्य क्षेत्रों में विभिन्न रेनी वेल (कुएं) और ट्यूबवेल के जरिए भी पानी उत्पादन होता है.
ऐसे पता चलता है हरियाणा द्वारा छोड़े जाने वाले पानी का:अक्सर दिल्ली और हरियाणा सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद रहता है कि हरियाणा सरकार की तरफ से दिल्ली को जो हर रोज पानी मिलना चाहिए, वो यमुना नदी में नहीं छोड़ा जा रहा है. इस मामले पर गौर करें, तो यमुना के वॉटर लेवल के आधार पर इसका मानक तय किया जाता है. ताजा उदाहरण है कि, एक मई को यमुना जल स्तर 674.5 फीट रिकॉर्ड किया गया था, जो औसतन 674.5 फीट लगातार बनाए रखना होता है. लेकिन जानकारी के मुताबिक, इस साल एक मई से यमुना का वॉटर लेवल लगातार गिर रहा है. इसके पीछे की बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि मई माह शुरू होने के साथ हरियाणा ने यमुना में पानी छोड़ना बंद कर दिया है.
हरियाणा की तरफ से यमुना में आने वाले पानी पर ही दिल्ली में पानी की सप्लाई तय होती है. पिछले साल 2023 के अप्रैल, मई और जून माह में वजीराबाद में 674.5 फीट वॉटर लेवल था. आंकड़ों पर नजर डालें तो एक मई को वजीराबाद में यमुना का जलस्तर 674.5 फीट रिकॉर्ड किया था, जो 8 मई तक गिरकर 672 फीट पर आ गया. वहीं 20 मई को यह जलस्तर 671 फीट, 24 मई को 670.2 फीट और 28 मई को 669.8 फीट पर पहुंच गया.
यमुना में पर्याप्त पानी नहीं छोड़ने का क्या असर होता है?
जवाब: अगर हरियाणा की ओर से यमुना में कच्चा पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं छोड़ा जाएगा, तो इसका बड़ा असर दिल्ली के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स पर पड़ता है. यमुना का यह पानी वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में आता है. अगर इसकी मात्रा कम होती है तो डब्ल्यूटीपी में उपचारित पानी की मात्रा घट जाती है. इसका सीधा असर दिल्ली में पानी की सप्लाई पर पड़ता है, जिसकी वजह से दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में पानी की सप्लाई में कटौती करनी पड़ती है. इसकी वजह से ही अब दिल्ली में पानी का संकट गहराता नजर आ रहा है. पड़ोसी राज्य हरियाणा से मिलने वाले कच्चे पानी (रॉ वॉटर) की कमी के चलते पिछले एक सप्ताह से कई इलाकों में पानी की गंभीर समस्या बनी हुई है.
दिल्ली-हरियाणा के बीच क्या है यमुना जल विवाद?
जवाब: दिल्ली और हरियाणा के बीच हमेशा से यमुना जल विवाद रहा है. यमुना नदी के जल के बंटवारे से जुड़ा विवाद आज का नहीं, बल्कि सालों पुराना है. यमुना नदी के पानी के बंटवारे का विवाद पांच राज्यों से जुड़ा है. इनमें दिल्ली के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जुड़े हैं. बात अगर सबसे पहले यमुना जल समझौते की करें, तो यह 1954 में सिर्फ दो राज्यों हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच हुआ था. इसके तहत यमुना के जल में हरियाणा का हिस्सा 77 फीसदी और उत्तर प्रदेश का हिस्सा 23 फीसदी तय किया गया था. लेकिन इसमें राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के हिस्से का जिक्र नहीं किया गया. तब इन राज्यों ने भी अपनी हिस्सेदारी मांगी, जिसके बाद यह विवाद गहरा गया.
इसके बाद फरवरी, 1993 में दिल्ली और हरियाणा के बीच भी एक समझौता हुआ, जिसके तहत मुनक नगर के जरिए दिल्ली को पानी देने पर समझौता हुआ. दिल्ली को पानी देने के लिए अतिरिक्त जल वाहक प्रणाली के निर्माण पर सहमति बनी थी. 12 मई, 1994 को 5 राज्यों के बीच यमुना जल बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसके तहत उन राज्यों को उनके हिस्से का कच्चा पानी उपलब्ध कराया जाता है. हालांकि इस समझौते का सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली को ही मिला था, जबकि हरियाणा को घाटा उठाना पड़ा. समझौते की धारा 7(3) में कहा गया कि यदि कभी पानी की मात्रा अनुमानित मात्रा से कम हो जाती है, तो सबसे पहले दिल्ली की पेयजल संबंधी जरूरतों को पूरा किया जाएगा.
दिल्ली को दूसरे राज्यों की तुलना में क्यों चाहिए ढाई गुणा ज्यादा पानी?
जवाब:दिल्ली की लगातार बढ़ती आबादी के चलते पड़ोसी राज्यों से ज्यादा पानी की हिस्सेदारी की मांग भी लगातार की जाती रही है. दिल्ली लगातार इस बात का दवाब डालती रही है कि उसके हिस्से की पानी की आपूर्ति बढ़ाई जाए. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया जा चुका है. दिल्ली की तरफ से हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तर्क दिया गया कि वह प्राप्त पानी का केवल 40 फीसदी ही पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जबकि करीब 8 फीसदी से ज्यादा पानी यमुना में ही चला जाता है. इससे हरियाणा और यूपी को ही लाभ मिलता है. इसके चलते दिल्ली को और ढाई गुणा ज्यादा पानी मिलना चाहिए. हालांकि इसे लेकर अभी विवाद सुलझा नहीं है.