उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

पूर्व सैनिकों ने धूमधाम से मनाया नूरानांग सम्मान दिवस, 1962 युद्ध के रणबांकुरों को किया याद - NURANANG SAMMAN DIWAS

देहरादून में पूर्व सैनिकों ने नूरानांग सम्मान दिवस धूमधाम से मनाया.

NURANANG SAMMAN DIWAS
पूर्व सैनिकों ने धूमधाम से मनाया नूरानांग सम्मान दिवस (PHOTO- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 17, 2024, 10:44 PM IST

देहरादूनः चौथी गढ़वाल राइफल्स के पूर्व सैनिकों ने 17 नवंबर रविवार को बड़ी धूमधाम से नूरानांग सम्मान दिवस मनाया. सन 1962 के भारत चीन युद्ध में बटालियन के रणबांकुरों ने अपने परंपरागत युद्ध कौशल और शौर्य का परिचय देते हुए चीन की सेना को भारी नुकसान पहुंचा था.

युद्ध कौशल की परंपरागत मातृभूमि की रक्षा और देश प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण आज भी अविस्मरणीय है. इस युद्ध में बटालियन के तीन ऑफिसर, चार जेसीओ, 148 अन्य पद और कई गैर लड़ाकू सैनिकों ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देकर भारत की रक्षा की थी. युद्ध समाप्त होने के बाद भारत सरकार ने कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल बीएम भट्टाचार्य को महावीर चक्र और राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को महावीर चक्र मरणोपरांत के साथ ही गढ़वाल राइफल को बैटल ऑनर ऑफ नूरानांग से नवाजा गया था.

बता दें कि नेफा सेक्टर अरुणाचल प्रदेश के तवांग में इन वीर शहीदों की याद में एक मेमोरियल बनाया गया है. जिसे जसवंतगढ़ के नाम से भी जाना जाता है. रिटायर्ड मेजर जनरल एमके यादव ने बताया कि 1962 में युद्ध का अंतिम चरण था और दुश्मन का सामना कर रही सेना की इकाइयां जनशक्ति और गोला बारूद की कमी से जूझ रही थी.

17 नवंबर 1962 को राइफलमैन जसवंत सिंह की बटालियन पर बार-बार चीनी हमले हो रहे थे. और पास ही चीनी मीडियम मशीन गन खतरनाक साबित हो रही थी. इसी बीच जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं ने खतरा उठाने का निर्णय लिया और चीनी एमएमजी का पीछा किया. मशीन गन की मात्र 12 मीटर की दूरी पर पहुंचने के बाद जसवंत ने बंकर पर ग्रेनेड फेंककर कई चीनी सैनिक मारे और मशीन गन पर कब्जा कर लिया. लेकिन इस दौरान स्वचालित गोलाबारी की चपेट में आकर वह शहीद हो गए.

उन्होंने बताया कि 1962 के चीन-भारत युद्ध में सेना की किसी यूनिट को दिए जाने वाला युद्ध सम्मान नूरानांग एकमात्र युद्ध सम्मान था. इसलिए हर साल 17 नवंबर को इस युद्ध सम्मान समारोह को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं.

ये भी पढ़ेंः1962 युद्ध में राइफल मैन ने दिखाया था पराक्रम, जसवंत रावत का गांव आज भी विकास से कोसों दूर

ABOUT THE AUTHOR

...view details