लातेहारः एक वक्त था जब लातेहार का नाम सुनकर ही नक्सली घटनाओं की तस्वीर आंखों के सामने उभरकर आती थी. चुनावों के वक्त तो खौफ, दहशत और कर्फ्यू का आलम रहता था. लोग डर से अपने घरों में ही दुबके रहते थे. लेकिन आज का वक्त है जब लातेहार के इस गांव में चुनाव को लेकर त्योहार जैसा माहौल है. इस रिपोर्ट से जानिए, सरयू गांव में आए बदलाव की कहानी.
लातेहार का सरयू गांव बदलाव का एक जीता जागता उदाहरण है. यह गांव कभी नक्सलवाद की राजधानी के रूप में कुख्यात था. चुनाव आते ही गांव में रहने वाले लोग भयभीत हो जाते थे. लेकिन पुलिस प्रशासन, सरकार और आम लोगों के सामूहिक प्रयास से आज गांव की स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है. अब चुनाव में इस इलाके के लोगों में त्यौहार जैसा उत्साह देखा जाता है.
लातेहार के सरयू और इसके आसपास में बसे गांवों की कहानी किसी रोमांचक कहानी से काम नहीं है. एक दशक पूर्व की बात करें तो यह इलाका पूरी तरह नक्सलियों के कब्जे में था. नक्सली इसी गांव के आसपास में बसे जंगलों में बैठकर चुनाव बहिष्कार की रणनीति बनाते थे और यहीं से फरमान भी जारी करते थे. नक्सलियों के फरमान जारी होने के बाद ग्रामीण मतदान करने की बात तो दूर मतदान के बारे में सोचना भी मुनासिब नहीं समझते थे. स्थिति ऐसी थी कि कब चुनाव आया और कब चुनाव खत्म हो गया ग्रामीणों को पता भी नहीं चलता.
डीसी राहुल पुरवार बने थे सरयू में बदलाव के प्रणेता
सरयू और इसके आसपास में बसे गांव में विकास और ग्रामीणों के जीवन में बदलाव लाने का सबसे पहला प्रयास लातेहार के तत्कालीन उपायुक्त राहुल पुरवार ने किया था. वर्ष 2011-12 में जब सरयू जाने में भी लोग डरते थे. उस समय डीसी रहते हुए राहुल पुरवार ने यहां दो दिवसीय आवासीय कैंप लगाया था. जहां जिला के तमाम बड़े अधिकारी दो दिनों तक गांव में ही रुके थे.