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वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल के स्वामित्व से जुड़े विवाद में नया ट्विस्ट, मामले के हल को सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखेगी ईआईएच - WILD FLOWER HALL HOTEL CASE

वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल स्वामित्व मामले में नया ट्विस्ट आया गया है. मामले के हल के लिए ईआईएच सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखेगी.

वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल
वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल (FILE)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 25, 2024, 8:51 PM IST

शिमला: राजधानी के समीप छराबड़ा में स्थित होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल की ओनरशिप यानी स्वामित्व के मामले में नया मोड़ आया है. ईस्ट इंडिया होटल्स (ईआईएच) व एमआर लिमिटेड कंपनी ने मामले को सुलझाने के लिए सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखने की बात कही है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में ईआईएच ने बताया कि वह इस मामले को हल करने के लिए राज्य सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रख रहे हैं.

अदालत में पेश एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने कहा कि यदि आज ही कंपनी की ओर से कोई प्रस्ताव आता है तो राज्य सरकार दो सप्ताह में उस प्रस्ताव पर उसकी गुणवत्ता के आधार पर विचार करेगी. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ कर रही हैं. अदालत ने सभी पक्षकारों को प्रस्ताव पर 18 नवंबर तक प्रगति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया. ईआईएच की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए.

क्या है मामले की मौजूदा वस्तुस्थिति:उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल का कब्जा हिमाचल सरकार को सौंपने के आदेश दिए थे. अदालत ने इस संबंध में वित्तीय मामले निपटाने के लिए दोनों पक्षों को एक चार्टेड अकाउंटेंट नियुक्त करने के आदेश भी जारी किए हुए हैं. सरकार के आवेदन का निपटारा करते हुए अदालत ने कहा था कि ओबेरॉय समूह आर्बिट्रेशन अवार्ड की अनुपालना तीन माह की तय समय सीमा के भीतर करने में असफल रहा है. ऐसे में प्रदेश सरकार होटल का कब्जा और प्रबंधन अपने हाथों में लेने की पात्र हो गई.

मामले के अनुसार वर्ष 1993 में वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल में आग लग गई थी. इसे फिर से फाइव स्टार होटल के रूप में विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए गए थे. निविदा के तहत ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया और राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ साझेदारी में कार्य करने का फैसला लिया था. संयुक्त उपक्रम के तहत ज्वाइंट कंपनी मशोबरा रिजॉर्ट लिमिटेड के नाम से बनाई गई. करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था. ऐसा न करने पर कंपनी को 2 करोड़ रुपए जुर्माना प्रति वर्ष राज्य सरकार को अदा करना था. वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन को ट्रांसफर किया.

सरकार ने रद्द कर दिया था करार:6 वर्ष बीत जाने के बाद भी कंपनी पूरी तरह होटल को उपयोग लायक नहीं बना पाई. वर्ष 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया. सरकार के इस निर्णय को कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई. बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था. सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी. हाईकोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए आर्बिट्रेटर के पास भेजा. आर्बिट्रेटर ने वर्ष 2005 में कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए संपत्ति वापस लेने का हकदार बताया.

इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने बैंच के समक्ष चुनौती दी थी. डबल बैंच ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि मध्यस्थ की ओर से दिया गया फैसला सही और तर्कसंगत है. कंपनी के पास यह अधिकार बिल्कुल नहीं कि करार में जो फायदे की शर्तें मंजूर करें और जिससे नुकसान हो रहा हो, उसे नजरअंदाज करें. अब दो सप्ताह में सरकार के साथ मसले के हल का प्रस्ताव रखा जाएगा.

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