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जशपुर में राजसी दशहरा, 55 फीट के 'रावण' का दहन, उड़ाया गया नीलकंठ

जशपुर में राजसी अंदाज के तहत 55 फीट के रावण का पुतला जलाया गया. रावण दहन के बाद नीलकंठ उड़ाने की परम्परा निभाई गई.

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 4 hours ago

Dussehra 2024
जशपुर दशहरा 2024 (ETV Bharat)

जशपुर : शहर के रणजीता स्टेडियम में 55 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया गया. जशपुर के रणजीता स्टेडियम में बने रावण के पुतले को दहन करने के लिए भगवान बालाजी के नेतृत्व में भगवान राम की सेना बालाजी मंदिर से रवाना हुई. राजपुरोहितों की टीम ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मंदिर के गर्भ गृह से भगवान बालाजी की प्रतिमा को निकाल कर लकड़ी से निर्मित रथ पर बैठाया. यहां सैकड़ों भक्त रस्सी से भगवान बालाजी के रथ को खींचतेत नजर आए. उसके बाद इस रथ को जय स्तंभ चौक, सिटी कोतवाली होते हुए रणजीता स्टेडियम लेकर पहुंचे.

रावण दहन के बाद हुई आतिशबाजी:इस दौरान राजपरिवार के सदस्यों ने स्टेडियम के पास बने विशेष पूजा स्थल में अपराजिता माता की पूजा-अर्चना कर विजय का आर्शीवाद लिया. इसके बाद रावण का दहन किया गया. रावण दहन के बाद रंग-बिरंगे पटाखों की आतिशबाजी से माहौल जगमगा गया. लगभग एक घंटे तक चले इस आतिशबाजी का लोगों ने जमकर आनंद उठाया. रावण दहन के बाद भगवान बालाजी की आरती के बाद नीलकंठ उड़ाने के साथ ही जशपुर का दस दिवसीय दशहरा महोत्सव संपन्न हुआ.

जशपुर का राजसी दशहरा (ETV Bharat)

विधि विधान से की गई शस्त्र पूजा: जशपुर महोत्सव की परम्परा को जशपुर राजपरिवार के सदस्य 27 पीढ़ियों से निभाते आ रहे हैं. राज परिवार के सदस्य और पूर्व सांसद रणविजय सिंह जूदेव का मानना है कि हजार सालों से यहां दशहरा पर्व मनाया जाता है. इस उत्सव में धर्म, जाति, संप्रदाय के बंधनों को पीछे छोड़ सब एक साथ नजर आते हैं. नवरात्र में नौ दिनों तक होने वाले अनुष्ठान का विशेष महत्व होता है. जशपुर रियासत की सत्ता को संचालित करने वाले देव बालाजी भगवान के मंदिर और काली मंदिर से अस्त्र-शस्त्रों को लाकर यहां पूजा की जाती है.

ऐसे होती है पूजा की शुरुआत:राजपुरोहित पंडित विनोद मिश्रा ने बताया कि यह अनुष्ठान विश्व कल्याण की प्रार्थना के साथ राज परिवार के सदस्यों, आचार्यों, बैगाओं और नागरिकों द्वारा शुरु किया जाता है. झांकी के रूप में पक्की डाड़ी से पवित्र जल गाजे-बाजे के साथ देवी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ लाया जाता है. जहां कलश स्थापना कर अखंड दीप प्रज्वलित की जाती है. इसी के साथ नियमित रूप से 21 आचार्य के मार्गदर्शन में राज परिवार के सदस्य सहित नगर और गांवों से मां काली की पूजा शुरु होती है.

21 आचार्य करते हैं अनुष्ठान:नवरात्रि की पूजा यहां के 800 साल पहले स्थापित काली मंदिर में होती है. यहां 21 आचार्य हर दिन विश्व कल्याण के लिए अनुष्ठान करते हैं. इस मंदिर की स्थापना राज परिवार ने की थी, जिसमें मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा आचार्य खगेश्वर मिश्रा की ओर से की गई, लेकिन दशहरा महोत्सव में बैगा, पुजारी, आचार्य सभी एक पंरपरा का पालन करते हैं.

वनदुर्गा को किया जाता है आमंत्रित: नवरात्र के दौरान मां काली और बालाजी मंदिर में नियमित रूप से हवन, पूजन किया जाता है. षष्ठी के दिन वनदुर्गा को दशहरा के अवसर पर इस विशेष अनुष्ठान में शामिल करने के लिए आमंत्रण दिया जाता है. आमंत्रण के लिए षष्ठी के दिन शाम में विशेष झांकी निकलती है. ये झांकी देवी मंदिर से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थिति ग्राम जुरगुम जाती है. वनदुर्गा के साथ मां काली की सेना के रूप में 64 योगिनियों को भी आमंत्रण दिया जाता है. योगिनियों के साथ वे बुरी आत्माएं आमंत्रित होती हैं, जिन्हें सतकर्म के लिए मां काली ने अपने नियंत्रण में ले लिया था.

जानिए क्या है मान्यताएं? :मान्यता है कि यहां पर तांत्रिक बेल का पेड़ है, जिसमें आम के पौधे भी उगे हैं. षष्ठी के दिन आमंत्रण देने के बाद वनदुर्गा को सप्तमी के दिन लेने के लिए भी आचार्य झांकी के साथ जाते हैं. यहां से सप्तमी के दिन वनदुर्गा के प्रतीक के रूप में बेल के फल को लाया जाता है. उसे देवी मंदिर में स्थापित कर पूजा की जाती है. इन सभी परंपराओं का निर्वहन इस साल भी किया गया.

ऐसा था आज का नजारा: जशपुर में शनिवार को रणजीता मैदान में नगर के विभिन्न स्थलों से निकली मां दुर्गा की शोभा यात्रा भी पहुंचती है. यहां कृत्रिम लंका का निर्माण किया जाता है, जिसमें भव्य रावण सहित कुंभकर्ण, मेघनाथ और अहिरावण के पुतले जलाए जाते हैं. साथ ही हनुमान लंका दहन करते हैं. इस दिन नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ माना जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि रावण वध के समय रावण ने हनुमान को उनके वास्तविक रूप में पहचान लिया था. तब हनुमान ने शिव के नीलकंठ रूप में रावण को दर्शन दिए थे. इसके बाद ही रावण को मुक्ति मिली थी. यहां के लोगों की मान्यता है कि यदि नीलकंठ पूर्व और उत्तर की ओर उड़ता है, तो पूरे विश्व के लिए यह साल शुभ होता है. नीलकंठ यदि अन्य दिशाओं की ओर उड़ता है, तो प्राकृतिक आपदाओं सहित अन्य परेशानियों का संकेत होता है.

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