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PGI में 50 युवाओं का सफल कॉक्लियर इम्प्लांट, अब 95 फीसदी सुन सकते हैं ज्यादातर युवा

cochlear implant in PGI Lucknow : लखनऊ स्थित पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के डॉ. अमित केसरी ने किया इम्प्लांट.

लखनऊ पीजीआई
लखनऊ पीजीआई (Photo credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 4 hours ago

लखनऊ : दिमागी बुखार व दूसरे संक्रमण से सुनने की क्षमता गवां चुके युवाओं में कॉक्लियर इम्प्लांट (सीआई) सफल है. संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ(पीजीआई) ने दो वर्ष में पढ़ने और नौकरी पेशा वाले 50 युवाओं का कॉक्लियर इम्प्लांट किया है. इनकी उम्र 18 से 45 वर्ष के बीच है. इनमें से ज्यादातर युवा अब 95 फीसदी सुन सकते हैं. बचे कुछ युवा 60 फीसदी तक ही सुन सकते हैं. इम्प्लांट के बाद युवा सामान्य लोगों की तरह ही पढ़ाई कर रहे हैं. पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के डॉ. अमित केसरी ने यह कॉक्लियर इंप्लांट किए हैं. अक्टूबर में यह पेपर इंडियन जर्नल में प्रकाशित हुआ है.


90 फीसदी से अधिक सुनाई देने लगा :पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के डॉ. अमित केसरी ने बताया कि 50 युवाओं में किए गए कॉक्लियर इंप्लांट के अच्छे परिणाम आए हैं. इम्प्लांट के बाद यह 90 से 95 फीसदी तक सुन सकते हैं. इंप्लांट के बाद इन युवाओं में एक उम्मीद जगी है. अब यह सामान्य युवाओं की तरह पढ़ाई, नौकरी व अन्य दूसरे कामकाज निपटा रहे हैं. अब इन युवाओं को सुनाई न देने की वजह से स्कूल व कार्यालय में सहपाठी व अन्य से इन्हें हीन भावना व ताने सुनने से निजात मिल गई है.

जानिए क्या है कॉक्लियर इम्प्लांट :डॉ. अमित केसरी ने कहा कि कॉक्लियर इम्प्लांट एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसकी मदद से सुनने में परेशानी या बहरापन वाले लोग सुन सकते हैं.
ये होते हैं कारण
- आनुवांशिक
- दिमागी बुखार
- ऑटो इम्यून डिजीज
- संक्रमण


साढ़े पांच लाख का आता है खर्च : पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के डॉ. अमित केसरी का कहना है कि युवाओं में न सुनाई देने की समस्या जन्मजात नहीं होती है. यह सुन नहीं सकते हैं, लेकिन बोल व समझ सकते हैं. इनमें दिमागी बुखार, ऑटो इम्यून डिजीज व संक्रमण की वजह से सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती है. संक्रमण की वजह से सुनने वाली नसें सूख जाती हैं, जिसकी वजह से 10 से 15 साल बाद दोनों कानों से सुनाई देना बंद हो जाता है. हेयरिंग हेड भी काम नहीं करता है. ऐसे में इम्प्लांट ही आखिरी विकल्प बचता है. इम्प्लांट में साढ़े पांच लाख का खर्च आता है.



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