हजारीबाग: दीपावली में धन-धन ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा होती है. दूसरे दिन भारतीय समाज में पुराना सूप बजाकर दरिद्रता दूर करने की परंपरा पिछले कई सदियों से चली आ रही है. धीरे-धीरे शहरी क्षेत्र में यह परंपरा लुप्त होते जा रही है. लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी बड़े ही नियम के साथ यह परंपरा देखने को मिलती है.
भारत एक गांव का देश है. इसकी आत्मा भी गांव में बसती है. अभी भी कई ऐसी परंपरा है जो शहर में खत्म होती जा रही है. लेकिन ग्रामीण परिवेश में उसे जीवित रखा गया है. इसी में एक है दीपावली के दूसरे दिन पुराने और टूटे हुए सूप को बजाकर दरिद्रता दूर करने की. सूर्योदय के पहले टूटी हुई सूप लेकर पूरे घर में घूम-घूम कर उसे बजाता है. हर कोने में ले जाकर सूप को खटखटाता है और कहता है कि दरिद्रता भाग और लक्ष्मी जी आए. आम भाषा में लोग कहते हैं 'दलिदर भाग मां लक्ष्मी अंदर आए' कहते हैं. इस तरह की बातें इसलिए कही जाती है क्योंकि जो नकारात्मकता घर में है वह बाहर भागे और सकारात्मक यानी मां लक्ष्मी घर के अंदर आएं.
हिंदू धर्म में सूप का विशेष महत्व है. इसे शुभ का संकेत भी माना जाता है. जैसे अनाज को सूप शुद्ध करता है और खराब अंश बाहर करता है. टूटा हुआ सूप बजाने से घर का अशुभ बाहर हो जाता है. दिवाली के दूसरे दिन सूप बजाने के पीछे का धार्मिक महत्व यह भी है. कहा जाता है कि इससे दरिद्रता दूर हो जाती है. इसकी आवाज मात्र से ही दरिद्रता घर से जाने लगती है और मां लक्ष्मी का वास होता है.