अयोध्या मंदिर पहुंचे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के 350 श्रद्धालु नई दिल्ली:दिल्ली से पद यात्रा कर काफी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग अयोध्या पहुंचे और प्रभु श्री राम के दर्शन किए.मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के 350 श्रद्धालु छह दिन की पदयात्रा कर के लखनऊ से अयोध्या श्री राम मंदिर, राम लला के दर्शन करने पहुंचे. इस दल का नेतृत्व मंच के संयोजक राजा रईस और प्रांत संयोजक शेर अली खान ने किया. दर्शन के बाद सभी श्रद्धालुओं की आंखों में गर्व के आंसू और जुबान पर श्री राम का नाम था.
राजा रईस और प्रांत संयोजक शेर अली खान लखनऊ से छह दिन की पदयात्रा करके 350 मुस्लिम श्रद्धालुओं के साथ दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचे थे. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मुस्लिम श्रद्धालुओं के साथ यात्रा में मंच की सीता रसोई भी चल रही थी, जो श्रद्धालुगण के लिए जलपान और भोजन की सात्विक व्यवस्था कर रही थी. इस तरह लखनऊ से अयोध्या के बीच लगभग 150 किलोमीटर की दूरी को लाव लश्कर के साथ इस यात्रा को छह दिनों में पूरा किया.
मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने बताया कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का यह दल 25 जनवरी को लखनऊ से चला था और रोजाना 25 किलोमीटर पदयात्रा कर के दर्शन करने पहुंचा था. शाहिद ने बताया कि इस मौके पर श्रद्धालुओं ने कहा कि इमाम ए हिंद राम के गरिमामयी दर्शन का यह पल उनके पूरे जीवनकाल के लिए सुखद स्मृति के रूप में रहेगा. मुस्लिम श्रद्धालुओं ने श्री राम मंदिर परिसर से एकता अखंडता संप्रभुता और सौहार्द का संदेश दिया.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मानना है कि जब तक देश में असदुद्दीन ओवैसी जैसे तथाकथित मुसलमान नेता रहेंगे तब तक इस देश का मुसलमान अशिक्षित, पीड़ित, पिछड़ा, गरीब और असुरक्षित रहेगा. मंच के संयोजक राजा रईस ने यह बातें अयोध्या के श्री राम मंदिर में राम लला के दर्शन के बाद कही. उन्होंने कहा कि राम हम सभी के पूजनीय थे, हैं और रहेंगे.
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राजा रईस और शेर अली खान ने कहा कि हमारे नबी ने फरमाया है देश से मुहब्बत आधा ईमान है. देश और इंसानियत सर्वोपरि है. धर्म, मजहब, जात, पात... ये सब छोटी चीज है. धर्म, पूजा पद्धति, ऊपर वाले को याद करने का तरीका भले ही अपने अपने अकीदे के हिसाब से होता है लेकिन किसी भी मजहब में यह नहीं सिखाया जाता है कि दूसरे धर्म की निंदा करो, मजाक उड़ाओ,या उन पर तशद्दुद करो.यह सभी ईमान, इंसानियत, इस्लाम और वतन की तौहीन है.
उन्होंने कहा कि मंच का मानना है कि हमारा मुल्क, हमारी सभ्यता, हमारा संविधान नहीं सिखाता है आपस में बैर रखना. अगर कोई अलग धर्म का इंसान किसी अलग धर्म के इबादतगाह या पूजा स्थल पर चला जाए तो इसका मतलब यह कतई नहीं मानना चाहिए कि उसने खुद का धर्म और मजहब छोड़ दिया है. क्या दूसरे की खुशी में शामिल होना जुर्म है . मंच का मानना है कि अगर यह जुर्म है तो फिर हर हिंदुस्तानी को यह जुर्म करना चाहिए.
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