रांची: सांसद और विधायकों द्वारा रिश्वत लेकर वोट देने या सदन में सवाल पूछने पर आपराधिक मुकदमों से मिली छूट वाले विशेषाधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचुड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव मामले में आए फैसले को पलट दिया है. संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि रिश्वत से जुड़े मामले में सांसद और विधायक मुकदमों से नहीं बच सकते हैं. इस फैसले का सीधा असर झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पड़ सकता है. क्योंकि संसद रिश्वत कांड मामले में झामुमो के शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1998 में सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय बेंच द्वारा 3:2 के फैसले से आपराधिक मुकदमें से छूट मिल गई थी. इसी केस का हवाला देकर झामुमो विधायक सीता सोरेन ने राज्यसभा हॉर्स ट्रेडिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत की मांग की थी लेकिन पूरा मामला उलटा पड़ गया.
कानूनी सलाह लेगा झामुमो- मनोज पांडेय
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झामुमो को बड़ा झटका लगा है. पार्टी प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी मीडिया के मार्फत मिली है. अब इसपर कानूनी सलाह लिया जाएगा कि यह फैसला कब से लागू माना जाएगा. यह देखना है कि आदेश में क्या है. इसी के आधार पर पार्टी अपना स्टैंड क्लियर करेगी.
झारखंड की राजनीति पर पड़ेगा दूरगामी असर- प्रतुल
प्रदेश भाजपा ने भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया है. प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि संविधान की धारा 105 और 194 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. पैसे लेकर वोट देने या सदन में भाषण देने वाले सांसदों और विधायकों को भी अब मुकदमें से छूट नहीं मिल सकती है. 1998 के फैसले के बाद एक धारणा बन गई थी कि नोट फॉर वोट मामले में विधायक और सांसद कानून से भी ऊपर हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का झारखंड में दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकता है. झामुमो के चार सांसदों और विधायक मामले में पुनर्विचार होने की संभावना बढ़ गयी है.
बहू सीता की याचिका से मुसीबत में फंसे गुरुजी!
दरअसल, जामा से झामुमो की विधायक सीता सोरेन पर साल 2012 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी आरके अग्रवाल से डेढ़ करोड़ रु लेकर वोट देने का आरोप लगा था. उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था. उनके धुर्वा स्थित आवास की कुर्की भी हुई थी. बाद में उन्होंने सीबीआई कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से जेल भेज दिया गया था. उन्होंने हाईकोर्ट में इसको चुनौती दी थी लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई थी. तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने ससुर सह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1993 के संसद रिश्वत कांड में 1998 में मिली राहत का हवाला देते हुए क्रिमिनेल केस से छूट की मांग की थी. तब साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने सीता की याचिका को वृहद पीठ को भेज दिया था. उन्होंने पूर्व के फैसले पर दोबारा विचार करने का फैसला दिया था. उन्होंने कहा था कि क्या किसी सांसद या विधायक को वोट के बदले नोट लेने की छूट दी जा सकती है. क्या कोई ऐसा कर आपराधिक मामलों से बचने का दावा कर सकता है.
शिबू सोरेन से जुड़ा क्या है संसद रिश्वत कांड
1993 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार थी. तब भाजपा ने अल्पमत का हवाला देते हुए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था. लेकिन झामुमो के सांसद शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो, सूरज मंडल और साइमन मरांडी ने पैसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था. इसकी वजह से नरसिम्हा राव की सरकार बच गई थी. इसमें जनता दल समेत अन्य सांसदों ने भी मदद की थी. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही थी. तब झामुमो सांसदों ने दलील दी थी कि बरामद पैसे पार्टी फंड के थे. फिर 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संसद रिश्वत कांड का खुलासा किया था. तब शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया था कि नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए वोट के बदले चारों सांसदों को 50-50 लाख रुपए की घूस मिली थी. इसी के बाद सीबीआई जांच शुरु हुई थी.