भोपाल। हाल ही में देश में 18वीं लोकसभा चुनाव के परिणाम आये हैं. जनता ने लगातार तीसरी बार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को बहुमत देकर देश की कमान सौंपी है. लेकिन इस बार का लोकसभा चुनाव इतना आसान नहीं था, न सत्ता पक्ष के लिए न विपक्ष के लिए. लगातार 10 साल से सत्ता में काबिज भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्ष ने काफी हद तक एकजुट होकर प्रयास किया. विपक्ष के नेताओं की रैलियों, जनसभाओं में आपने एक बात जरुर सुनी होगी, 'भाजपा सत्ता में आयेगी तो संविधान बदल देगी, बाबा साहेब के संविधान को खत्म कर देगी'. विपक्ष के भाजपा पर इस आरोप के पीछे कई कारण थे.
भाजपा के कई प्रत्याशियों का यह कहते हुए वीडियो सामने आना कि, इस बार संविधान बदलना है. इसके अलावा सबसे बड़ा कारण बीजेपी का नारा 'अबकी बार 400 पार' था. विपक्षी दलों ने इसको खूब भुनाया. अपनी रैलियों, जनसभाओं में कहा कि ये 400 पार का नारा इसलिए दे रहे हैं कि इन्हें संविधान बदलना है. ये अबकी बार सरकार में आये तो दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देंगे. अब सवाल उठता है कि दो बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली बीजेपी ने तब संविधान क्यों नहीं बदला, आरक्षण क्यों नहीं खत्म किया. तो क्या संविधान बदलने के लिए 400 सीटें जीतना जरूरी है. क्या इससे पहले भाजपा ने संविधान में संशोधन नहीं किया. आईये जानते हैं क्या कहते हैं नियम और पिछले 10 साल भाजपा और 10 साल कांग्रेस की सरकार में संविधान में क्या-क्या बदलाव हुआ.
संविधान संशोधन का प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद- 368 में संविधान में संशोधन का प्रवाधान दिया गया है. लेकिन संविधान में संशोधन करना इतना आसान नहीं है. संविधान में संशोधन के लिए दोनों सदनों, राज्यसभा और लोकसभा में दो तिहाई बहुमत जरूरी होता है. संविधान के संघीय विषयों में संशोधन के लिए आधे से ज्यादा राज्यों की सहमति भी जरूरी होती है. कई विषय ऐसे भी हैं जो राज्यों से जुड़े हैं. ऐसे नियमों में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों में बहुमत के अलावा वहां के विधानसभा के आधे सदस्यों की सहमति जरूरी होती है. भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के पिछले दोनों कार्यकाल में लोकसभा में तो जरूरी बहुमत था लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं था. लेकिन अगर इस बार एनडीए को 400 सीटें मिल जातीं तो संभवत: राज्यसभा में भी बहुमत हो जाता.
देशहित और समाज कल्याण के मामले में सभी देते हैं साथ
संविधान संशोधन के नियम जानकर अब आप सोच रहे होंगे कि संविधान में बदलाव करना बहुत टेढ़ी खीर है. लेकिन संविधान के लागू होने के बाद से अब तक 105 बार संविधान संशोधन हो चुके हैं. जिस सरकार के पास दोनों सदनों में बहुमत रहता है वो अपने दम पर संशोधन बिल पास करा लेती है अन्यथा देशहित और सर्वसमाज के लाभ से जुड़ें मामलों में सभी दल एक होकर संशोधन बिल का समर्थन कर देते हैं. इसका सबसे ताजा उदहारण जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का है. भाजपा के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बाद भी तमाम विपक्षी दलों ने इस बिल का समर्थन किया था और बिल राज्यसभा में 61 सदस्यों के विरोध के मुकाबले 125 सदस्यों के समर्थन से पास हो गया था. आईये जान लेते हैं नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पिछले दो कार्यकाल और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दो कार्यकाल में कितनी बार संविधान में संशोधन किया गया.