जांजगीर चांपा: भक्त शुक्रवार को बड़े ही भक्ति भाव के साथ अक्षय तृतीया का त्योहार मना रहे हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम के जन्मोत्सव के तौर पर मनाया जाता है. मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर को कृष्णजी ने अक्षय पात्र दिया था. कहा जाता है कि क्षय पात्र रखा भोजन और अनाज कभी भी समाप्त नहीं होता. मान्यता ये भी है कि देव और दानवों के किए गए समुद्र मंथन से जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने अपने कंठ पर रखा था. कहा जाता है कि हलाहल विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान शंकर के सिर पर मिट्टी के मटके से जल की बूंद अर्पित की गई. इसी के चलते अक्षय तृतीया के दिन मिट्टी के बने घड़े का जल पीया जाता है.
अक्षय तृतीया पर क्यों पीना चाहिए घड़े का पानी: हमारा शरीर पंच तत्वों से मिल कर बना है. जिसमे जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी शामिल है. इन तत्वों को कमी से मानव शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है. मान्यता है कि बैसाख माह के तृतीया पक्ष से मौसम मे बदलाव आता है और शरीर का अग्नि तत्व और भी तेज होने लगता है, जिसके कारण लोग आज के दिन से मिट्टी के घड़े का पानी पीना शुरु करते है. आयुर्वेद विभाग के जिला आयुर्वेद अधिकारी के पद से रिटायर्ड डॉ परस शर्मा ने अक्षय तृतीया के महत्त्व को बताया उनका कहना है कि हमारे पूर्वज किसी भी तीज त्योहारों को धर्म से जोड़ कर रखते थे, जिसके पीछे आध्यात्मिक कारण के साथ साथ वैज्ञानिक कारण भी हुआ करते थे. आम तौर पर जल को जीवन माना गया है. गर्मी के दिनों मे जल का संग्रहण धातु के पात्र मे रखने से जल गर्म हो जाता है. जिसे पीने बाद भी प्यास नहीं बुझती. इसी कारण कुम्हारों के बनाए गए मिट्टी के घड़े का पानी पीने से मन तृप्त होता है बल्कि सेहत भी बलवान होती है.