लखनऊः साल 2024 उत्तर प्रदेश के राजनीतिक उठा पटक के लिए भी काफी चर्चाओं में रहा है. साल 2014 के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को इस साल के लोकसभा चुनाव में कुछ बेहतर परिणाम मिले हैं. जो उसके बीते एक दशक में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक हैसियत को धरातल में पहुंचने के बाद फिर से खड़े होने की उम्मीद जागी है. कांग्रेस के लिए साल 2012 का विधानसभा चुनाव आखिरी ऐसा चुनाव था जब पार्टी को 10% से अधिक वोट हासिल हुए थे. इसके करीब 12 साल बाद साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को उससे अधिक वोट प्रतिशत मिला है. एक दशक में कांग्रेस उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने सियासी जमीन को पूरी तरह से खो चुकी थी. लेकिन 2024 में उसे फिर से थोड़ी उम्मीद मिली है. पार्टी लोकसभा चुनाव में मिले समर्थन से अब 2027 में अपने लिए सियासी जमीन भी तलाशना शुरू कर दिया है. इसी को देखते हुए साल के अंत आते-आते राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उत्तर प्रदेश की सारी प्रदेश कार्यकारिणी को ही भंग करने सिरे से कार्यकर्ताओं को जोड़ने और सत्ता संघर्ष की शुरुआत कर दी है.
2009 में आखिरी बार 22 सांसदो को मिली थी जीत:ऐसे तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सियासत से 35 साल से अधिक समय से वनवास काट रही है. पर इन 35 सालों में साल 2009 तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने वजूद को बचाए रखने में कामयाब थी. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 22 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इसके बाद के चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन के साथ-साथ अपना वोट का जो जनाआधार उसके पास सत्ता न होने के बाद भी मौजूद था. वह पूरी तरह से खिसकता सकता चला गया. आलम यह हुआ कि महज 13 सालों में ही कांग्रेस 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को वोट प्रतिशत ढाई प्रतिशत पर पहुंच गया था. 2024 के लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को दोबारा से संजीवनी दी है. पार्टी ने 80 लोकसभा सीटों में से 6 जीतने के साथ एक करीब 14% वोट प्रतिशत भी हासिल करने में कामयाब रही.
17 सीटों पर लड़ा चुनाव, 6 पर मिली जीतः2024 की लोकसभा चुनाव का बिगुल बजाने से पहले उत्तर प्रदेश की कमान पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के हाथों में थी. पार्टी ने चुनाव से पहले उन्हें हटाकर अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया था. इसके साथ ही लोकसभा चुनाव करीब आते ही पार्टी में इंडिया एलाइंस को मजबूत करने के लिए मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया. 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें पार्टी को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जबकि 11 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी. इसमें से महाराजगंज, कानपुर, फतेहपुर सिकरी जैसे लोकसभा सीटों पर पार्टी 25000 से भी कम मतों से चुनाव हार गई थी.
स्मृति ईरानी को दी पटकनी राहुल ने जीता रायबरेलीः2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में महेश एक सीट ही जीत पाई थी. जबकि इससे पहले 2014 में कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी सीट गांधी परिवार के कारण मिला था. 2019 में रायबरेली सीट तो सोनिया गांधी जीतने में कामयाब हो गई लेकिन अमेठी सीट से राहुल गांधी को भाजपा की फायर ब्रांड नेता स्मृति ईरानी ने चुनाव हार दिया था. 2024 की लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही रायबरेली सीट से सोनिया गांधी ने न लड़ने की घोषणा कर दी. ऐसे में बीते 12 सालों के प्रदर्शन के आधार पर कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में खाता खुलने भी मुश्किल लग रहा था. कयास लगाए जा रहे थे कि राहुल गांधी वायनाड से ही चुनाव लड़ेंगे और वह उत्तर प्रदेश नहीं आएंगे.
डेढ़ लाख वोटों से हरायाःलेकिन कांग्रेस ने अपने रणनीति में बदलाव करते हुए राहुल गांधी को रायबरेली की सीट से उतरा, जबकि अमेठी सीट गांधी परिवार के करीबी रहे किशोरी लाल शर्मा को दी. इन दोनों लोकसभा सीटों पर चुनाव का जिम्मा खुद प्रियंका गांधी ने संभाल रखा था. जब चुनाव के परिणाम आए तो राहुल गांधी ने रायबरेली सीट जीतकर एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में खुद की वापसी कराई. वहीं दूसरी तरफ अमेठी सीट गवाने का जो दर्द कांग्रेस को था वह दूर हो गया. स्मृति ईरानी अमेठी लोकसभा सीट पर डेढ़ लाख से अधिक वोटों से चुनाव हार गई.
संगठन में फेर बदल की तैयारीःसाल के अंत आते-आते कांग्रेस ने 2027 की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया. पार्टी ने अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए और अपने पूर्व वोट बैंक को जोड़ने के लिए कवायद शुरू कर दी. इसी कड़ी में सबसे पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उत्तर प्रदेश की प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया. 2009 में प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के बाद से उत्तर प्रदेश में प्रदेश कार्यकारिणी का गठन सीधे दिल्ली हेडक्वार्टर था. बीते तीन प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, बृजलाल खाबरी और अजय राय को दिल्ली से ही प्रदेश कार्यकारिणी का गठन करके भेज दिया गया. लेकिन पार्टी ने लोकसभा चुनाव के परिणाम के महत्व को समझते हुए 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी करने और इंडिया अलायंस में खुद को और मजबूत साबित करने के लिए प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर नए सिरे से प्रदेश के कार्यकर्ताओं को जोड़ने और कार्यकारिणी में शामिल करने की प्रक्रिया को शुरू किया है.
'लड़की हूं लड़ सकती हूं' के बाद इंदिरा फैलोशिप प्रोग्रामःकांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश का प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव बनाया था, जिसके बाद 2022 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश में चुनाव में पार्टी को मजबूत करने के लिए 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' का नारा देते हुए 40% सीटों पर महिला उम्मीदवारों को उतारा था. हालांकि प्रियंका गांधी का यह प्रयोग बुरी तरह से सफल रहा था.