देहरादून: जिला सहकारी बैंक देहरादून के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेता डॉक्टर केएस राणा ने बीजेपी सरकार पर सहकारी समितियों के चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है. इस मामले को लेकर बुधवार 26 फरवरी को केएस राणा ने कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय देहरादून में प्रेस वार्ता की और अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने सरकार पर मनमाने तरीके से सहकारी समितियों के चुनाव कराने और उसे रोकने का भी आरोप लगाया.
केएस राणा ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि पहले तो इस सरकार ने सहकारी समिति के चुनावों को करीब डेढ साल तक टाले रखा. हालांकि जब कुछ लोग उत्तराखंड हाईकोर्ट गए और कोर्ट ने देरी किए बिना चुनाव कराने के आदेश दिए तब कहीं जाकर सरकार ने सहकारी समितियों के चुनाव कराए.
केएस राणा का कहना है कि पहले तो सरकार ने कोर्ट में चुनाव के लिए नंवबर की तारीख दी, जिसका प्रोगाम भी जारी कर दिया गया था. हालांकि कुछ कारण बताकर तारीख को आगे बढ़ा दिया गया. इसके बाद दिसंबर की डेट दी गई. आखिर में उसे भी निरस्त कर दिया. जनवरी में सरकार ने फिर से तारीख की घोषणा की. और आठ फरवरी को अधिसूचना भी जारी करी दी. इसी अधिसूचना के आधार पर 24 और 25 फरवरी को प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव हुए.
केएस राणा के मुताबिक 24 फरवरी को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर का निर्वाचन हो गया. अगले दिन 25 फरवरी को सहकारी समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों का चुनाव होना था, जो लोग संचालक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर) में चुनकर आते है, एक समिति में करीब 11 लोग होते हैं. वही आगे वोट देकर अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं. साथ ही समिति के अन्य प्रतिनिधियों का भी चुनाव होना होता है.
केएस राणा का आरोप है कि जैसे ही 24 फरवरी के चुनाव का रिज्लट आया, तभी रात को 9 से 10 बजे के बीच एक सूचना आती है कि 25 फरवरी के चुनाव को स्थगित कर दिया गया. केएस राणा का कहना है कि जब उनके नेताओं ने अधिकारियों से इसका कारण पूछा तो वो कोई जवाब नहीं दे पाए. केएस राणा का कहना है कि ये क्या कोई लोकतंत्र है?
केएस राणा ने सवाल किया कि बीजेपी सरकार की ये मनमानी कब तक चलेगी? केएस राणा ने बताया कि सहकारी समिति चुनाव अधिनिमय की धारा 17 में साफ लिखा है कि चुनाव शुरू होने के बाद निरस्त नहीं किया जा सकता है. उस चुनाव को रोका नहीं जा सकता है. इसीलिए हाईकोर्ट ने आजतक किसी भी चुनाव को रोका नहीं है. धारा-16 में चुनाव रोकने या रद्द करने का कारण भी दिया है. चुनाव सिर्फ किसी प्रत्याशी की मौत, आपदा या फिर बवाल होने पर ही रोका जा सकता है. इस चुनाव में न कोई हिंसा हुई न ही कोई आपदा आई न ही किसी प्रत्याशी की मौत हुई. फिर चुनाव क्यों रोका गया?
केएस राणा ने चुनाव रोकने का कारण भी बताया. केएस राणा ने आरोप लगाया कि सरकार ये चुनाव नए पैटर्न से करना चाहती थी. नया पैटर्न में पुराने सदस्यों को जो करीब 50 सालों से समितियों में लेन-देन करते आ रहे है, उनको सरकार ने बाहर का रास्त दिखा दिया. बिना कारण के ऐसे सदस्यों को मतदान से वंचित कर दिया गया.
केएस राणा का आरोप है कि सरकार ने नए सदस्य बनाए और उनसे ही चुनाव कराना चाह रही थी, जिसके खिलाफ कुछ लोग उत्तराखंड हाईकोर्ट गए. कोर्ट ने सरकार को कहा कि आप पुराने पैटर्न से ही चुनाव कराएं. कोर्ट ने कहा कि आप किसी भी सदस्य को चुनाव में भाग लेने से कैसे वंचित कर सकते हैं, लेकिन सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी नए पैटर्न से ही चुनाव कराया. पुराने सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं दिया. फिर भी 24 फरवरी को चुनाव हुआ और संचालक जीतकर आए. लेकिन 25 फरवरी होने वाले चुनाव को फिर से रोक गिया, जिसका कारण सरकार को कोर्ट का डर था. सरकार कोर्ट के नोटिस से डर गई और घबरा कर चुनाव रोक दिए.
कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी का जवाब भी आया है. बीजेपी की प्रदेश प्रवक्ता कमलेश रमन ने कहा कि कांग्रेस की मानसिकता सिर्फ आरोप लगाने की बन चुकी है. कांग्रेस जब भी हारती तो वो सिस्टम या फिर भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाना शुरू कर देती है. जनता ने कांग्रेस को सिरे से नकार दिया है. इसीलिए बौखलाहट और निराशा ने कांग्रेस ऐसे आरोप लगा रही है.
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