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अगर बच्चों में नहीं है सब्र तो फिर ये बीमारी है, समय रहते नहीं किया इलाज तो हो सकता ये... - ADHD in childrens

अगर आपके बच्चे में सब्र करने की बिल्कुल भी क्षमता नहीं है, तो समझ लीजिए आपके बच्चे को अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर (एडीएचएडी) हैं.मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर गरिमा सिंह ने बताया, कि चार से पांच प्रतिशत बच्चे एडीएचए‌डी की चपेट में होते हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 20, 2024, 11:50 AM IST

लखनऊ: अगर आपके बच्चे में सब्र करने की बिल्कुल भी क्षमता नहीं है, तो समझ लीजिए आपके बच्चे को अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर (एडीएचएडी) हैं. हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक यह कोई जन्मजात बीमारी नहीं है. इलाज से इस बीमारी को रोका जा सकता है.

मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर गरिमा सिंह ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)
बलरामपुर अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर गरिमा सिंह ने बताया, कि चार से पांच प्रतिशत बच्चे एडीएचए‌डी की चपेट में होते हैं. चार से अधिक उम्र के बच्चों में लक्षण नजर आते हैं. सामान्य में उम्र बढ़ने के साथ ऐसी गतिविधियां कम हो जाती हैं, लेकिन एडीएचएडी पीड़ित बच्चों में वह बरकरार रहता है. केजीएमयू मानसिक स्वास्थ्य विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रभात सिठोले ने बताया, कि जरूरत से ज्यादा चंचल बच्चों की सेहत पर विपरीत प्रभाव डलता है. ऐसे बच्चों की मानसिक सेहत सुधारने के लिए घर से लेकर स्कूल तक ध्यान देने की जरूरत है. ऐसे बच्चों को नशे के लत हो सकती हैं. लापरवाही से वाहन चला सकते हैं, जिससे सड़क हादसे हो सकते हैं.डॉ. प्रभात ने बताया, कि बच्चों में बीमारी की पहचान कठिन है. शुरुआत में माता-पिता बच्चे को बाल रोग विशेषज्ञों के पास ले जाते हैं. उन्होंने बताया, कि दवा संग माता-पिता और शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है. केजीएमयू मानसिक स्वास्थ्य विभाग के डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने बताया, कि डायबिटीज, किडनी, दिल की बीमारी में इलाज लंबा चलता है. इनमें कई ऐसी दवाएं दी जाती हैं, जिनसे सेक्स लाइफ प्रभावित होती है. ऐसे मरीजों को डॉक्टर से परेशानी साझा करनी चाहिए.इसे भी पढ़े -लोहिया संस्थान में नई व्यवस्था; भर्ती मरीजों को बेड पर मिलेंगी दवाएं व सर्जिकल उपकरण, जानिए कब से लागू होगा डोजियर सिस्टम - Lohia Institute Dossier System

ध्यान भटकाने की करें कोशिश:डॉ. गरिमा के मुताबिक इन बच्चों को एक साथ लंबे समय तक नहीं बैठाए. 20 से 25 मिनट बाद उन्हें ध्यान भटकाने के लिए बाहर भेजें. शांत माहौल मुहैया कराएं. क्लास में पहली और दूसरी लाइन में बैठाएं. उन्होंने बताया, कि वे बच्चे माता-पिता या शिक्षक के सामने कम गलतियां करते हैं, लेकिन अकेले लिखने में सामान्य से ज्यादा गलतियां करते हैं.

डॉ. गरिमा ने बताया, कि एडीएचडी बच्चे के शरीर पर शारीरिक रूप से भी असर करता है. वे स्थिर होकर एक जगह नहीं बैठ पाते हैं. आमतौर पर आपकी सीट पर टैप करते या भागते रहते हैं. जब उन्हें बैठने के लिए कहा जाता है, तो वे 20 मिनट तक स्थिर नहीं बैठ पाते हैं. वे ज्यादा बात कर सकते हैं और बातचीत को बनाए रखने में परेशानी हो सकती है. वे इधर-उधर भागते भी रह सकते हैं. इन कारणों से उन्हें दोस्त बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है.

इन बातों का रखें ध्यान:अतिसक्रिय - बच्चा बेचैन महसूस करता है. अपने इमप्लसिव बिहेवियर को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. असावधान, ध्यान न देना, इसमें बच्चे का ध्यान भटकता रहता है, बच्चा किसी पर फोकस नहीं कर पाता है. दोनों संकेतों का संयोजन - ऊपर लिखे दोनों संंकेत बच्चों में दिखते हैं.

लक्षण:डॉ. गरिमाने बताया, कि ऐसे बच्चों को संभालना मुश्किल होता है. वह कम उम्र से ही चिड़चिड़े या आक्रामक होते हैं. उनमें आगे चलकर व्यवहार संबंधी विकार विकसित होने की संभावना अधिक होती है. किसी को भी बोलने का मौका नहीं देंगे. उन्हें अपनी बात रखने की इतनी जल्दबाजी होती है, कि अपनी बात तुरंत रखना चाहेंगे.

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