प्रयागराज :संगम के पावन तट पर लगे महाकुंभ के पवित्र मेले में दूर-दूर से लोगों का आना हो रहा है. यहां आने के बाद लोग पुण्य की डुबकी लगाने के बाद साधु संतों का आशीर्वाद लेने भी पहुंच रहे हैं. इस भीड़ में एक से बढ़कर एक साधु संन्यासी पहुंचे हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो आपकी और हमारी उम्मीदों से बिल्कुल अलग हैं. ऐसे ही एक छोटे संन्यासी को देखकर हर कोई उनकी तरफ खिंचा चला जा रहा है.
संन्यासी दक्षपुरी जी महाराज से खास बातचीत (Video credit: ETV Bharat) सबसे बड़ी बात यह है कि महज 5 साल की उम्र में हरियाणा के रहने वाले नागा संन्यासी बन चुके दक्षगिरी जी महाराज अखाड़े के साथ जुड़कर लगभग 10 वर्षों से संन्यासी और नागा का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. वर्तमान में 15 साल की उम्र में उन्होंने साधु-संन्यासियों के साथ रहते हुए उन्हीं की तरह जीवन जीना सीख लिया है, इनके पीछे साधु और फिर लोग बनने की कहानी भी बेहद रोचक है. फिलहाल नागा संन्यासियों के साथ बैठकर माला फेरते हुए इस नन्हे संन्यासी को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रहती है.
दरअसल, प्रयागराज में निरंजनी अखाड़े के शिविर के बाहर नागा संन्यासियों के साथ बैठे 15 साल के संन्यासी दक्षपुरी जी महाराज ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि वह मूलरूप से हरियाणा के हिसार जिले के रहने वाले हैं. बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था. उनकी मां एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं. बचपन से ही उनको पूजा पाठ और साधु संतों के साथ रहना बेहद पसंद था, इसलिए उन्होंने 5 साल की अवस्था में ही घर छोड़ने का फैसला लिया. मां ने उनका पूरा साथ दिया और वह घर छोड़कर श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा से जुड़ गए 10 वर्षों तक उन्होंने शिक्षा दीक्षा लेने के बाद इस कुंभ में नागा बनने का फैसला लिया. उनका कहना है कि उनकी मां ने उन्हें कभी नहीं रोका. वह बार-बार यही इच्छा जताती थी कि उनका एक बेटा सनातन की रक्षा के लिए जुटा रहे और यही वजह से मैंने अपनी मां की इच्छा के साथ चलते हुए निरंजनी अखाड़े के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया.
इस बारे में उनके गुरु और नागा संन्यासी अजय गिरी महाराज ने बताया कि कुछ घरों में ऐसी मान्यता होती है कि यदि उनकी पहली संतान होगी तो वह गुरु को समर्पित कर देंगे, क्योंकि उनके माता-पिता को संतान की उत्पत्ति नहीं हो रही थी. इस वजह से उनकी मां के द्वारा यह माना गया था कि पहली संतान होने पर वह गुरु के चरणों में उसे समर्पित करेंगे. जिसके बाद उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे को गुरु चरण में देने की इच्छा जाहिर करते हुए हमारे पास भेज दिया. उन्होंने कहा कि 5 साल की उम्र से ही दक्ष हमारे साथ हैं. पहले तो उनकी शिक्षा दीक्षा चलती रही, लेकिन बाद में उनका सनातन के प्रति झुकाव देखकर हमने उन्हें संन्यास दिलवाने का फैसला लिया.
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