वाराणसी: भगवान भास्कर की आराधना का लोकआस्था का महापर्व डाला छठ या सूर्यषष्ठी जो कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किया जाता है. इस बार डाला छठ का महापर्व सात नवंबर को किया जायेगा. वास्तव में इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय के साथ ही कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है. जो तीन दिवसीय नियम-संयम व्रत के बाद चौथे दिन अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को अघ्र्य देकर पारन किया जाता है. देखा जाये तो इस आस्था के लोकमहापर्व की शुरुआत पांच नवंबर से हो रहा है, जो आठ नवंबर को अरुणोदय काल में अर्ध्य के साथ ही समाप्त होगा.
इस बारे में काशी विद्वत परिषद के पूर्व संगठन मंत्री ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया, कि डाला षष्ठी या कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि छह नवंबर को रात 09 बजकर 37 मिनट पर लग रही है, जो सात नवंबर को रात 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगी. वहीं, सात नवंबर को सूर्यास्त सायंकाल 05 बजकर 28 मिनट पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देना होगा. वहीं, आठ नवंबर को प्रात: 06 बजकर 32 मिनट पर सूर्योदय अरुणोदय काल में द्वितीय अर्ध्य के बाद व्रत का पारन होगा.
इस तरह होता है पालन: पंडित ऋषि ने बताया, कि इस व्रत की शुरुआत मंगलवार 5 नवम्बर चतुर्थी को अर्थात, नहाय-खाय वाले दिन से होगी. चूंकि इस व्रत में स्वच्छता का विशेष महत्व होता है, इसलिए प्रथम दिन घर की साफ-सफाई कर, स्नानादि के बाद इस दिन तामसिक भोजन लहसून-प्याज इत्यादि का त्याग कर दिन में एक बार भात (चावल) एवं कद्दू की सब्जी का भोजन कर जमीन पर शयन करना चाहिए. दूसरे दिन छह नवंबर को खरना, अर्थात पचंमी को दिन भर उपवास कर सायंकाल गुड़ से बनी खीर का भोजन किया जाता है. तीसरे प्रमुख दिन, अर्थात डाला छठ सात नवंबर को निराहार रहकर बांस की सूप और डालियों में विभिन्न प्रकार के फल, मिष्ठान, नारीयल, ऋतुफल, ईख आदि रखकर किसी नदी, तालाब, पोखरा एवं बावरी के किनारे दूध तथा जल से अघ्र्य दिया जाता है. और रात जागरण किया जाता है. यह अर्ध्य अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को होता है. दूसरे दिन प्रात: सूर्योदय के समय या अरुणोदय काल में सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता है.
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