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छठ पर अंबाला की घग्गर नदी के जहरीले पानी में अर्घ्य देने को मजूबर लोग, प्रशासन पर लगाया मदद न करने का आरोप

छठ पर्व पर अंबाला के प्रवासी घग्गर नदी के केमिकल युक्त पानी में सूरज को अर्घ्य देने को मजूबर है.

PRAYERS IN POISONOUS WATER
घग्गर नदी में केमिकल वाला पानी (Etv Bharat)

By ETV Bharat Haryana Team

Published : 7 hours ago

अंबाला:लोकआस्था का महापर्व छठ आज से शुरू हो गया है. 8 नवंबर तक चलने वाले इस पर्व में श्रद्धालु नदी या तालाब में डुबकी लगाकर उगते और डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं. पर्व के मद्देनजर कई घाटों की मरम्मत की जा रही है तो कई जगहों पर कृत्रिम तालाब बनाया जाता है. अंबाला में घग्गर नदी के घाटों पर छठ का ये पर्व मनाया जाता है. घग्गर नदी का पानी काफी ज़हरीला हो गया है, जिसके चलते इस बार श्रद्धालु इस दूषित पानी में डूबकी लगाने को मजबूर है.

बता दें कि घग्गर नदी में पानी हिमाचल और पंजाब राज्यों सें आता हैं, जहां बीच रास्तों में दोनों राज्यों की कई फैक्ट्रियों का पानी घग्गर नदी में पहुंचता है, जो इसे जहरीला बना देता है. ऐसे में श्रद्धालु इस केमिकल युक्त पानी में डूबकी लगाने को मजबूर है. इसका कारण है नजदीक में कोई नदी या बड़ा तालाब का न होना. श्रद्धालुओं ने कहा कि प्रशासन की ओर से उनकी कोई मदद नहीं की जाती, सारी व्यवस्थाएं उन्हें खुद करनी पड़ती है.

घग्गर नदी में केमिकल वाला पानी (Etv Bharat)

क्या है छठ :पंडित उमा शंकर मिश्रा के अनुसार छठ महापर्व की शुरुआत मां सीता ने की थी. इसके अलावा महाभारत काल में कर्ण ने भी छठ पूजा का व्रत रखा था और छठ पूजा की थी. शास्त्रों के अनुसार सूर्य भगवान की बहन मां छठी मैया है. वो भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं. पार्वती माता के छठे रूप को ही छठी माता कहा जाता है.

उगते और डूबे सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य: जिन महिलाओं को बच्चे नहीं होते हैं. खासतौर पर वो महिलाएं इस पर्व को करती हैं. इसके अलावा अपने पुत्र की लंबी आयु को लेकर भी इस व्रत को किया जाता है मान्यता ऐसी है कि मां छठी का ध्यान करते हुए अगर कोई व्यक्ति कुछ मांगता है, तो मां उनकी मनोकामनाएं हमेशा पूरी करती है. छठ महापर्व में डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व चतुर्थ तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाएगा.

पवित्रता के साथ बनाया जाता है प्रसाद: 5 नवंबर 2024 को आस्था का महापर्व नहाए खाए से शुरू हो गया है. आज व्रत करने वाले भक्त दिन में एक बार ही प्रसाद का ग्रहण करेंगे. इस प्रसाद को पवित्रता के साथ बनाया जाता है. इस प्रसाद में कच्चा चावल, कद्दू, चना और दाल को पीतल, मिट्टी या फिर कांस्य के बर्तन में पकाया जाता है, इसके बाद व्यक्ति इसको ग्रहण करते हैं.

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