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बुंदेलखंड के 'बाबा केदारनाथ' को बेहद पसंद है ये खास स्वीट डिश, विदेश तक इसकी महक - KEDARNATH OF BUNDELKHAND

छतरपुर जिला स्थित जटाशंकर धाम के मशहूर स्वीट डिश कलाकंद की धूम विदेश तक है. भोलेनाथ को ये मिठाई अतिप्रिय है.

Kedarnath of Bundelkhand
जटाशंकर धाम के भोलेनाथ को कलाकंद का प्रसाद (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 19, 2025, 6:25 PM IST

छतरपुर : 'बुंदेलखंड के केदारनाथ' के नाम से मशहूर जटाशंकर धाम के बाबा भोलेनाथ को कलाकंद बेहद पसंद है. मान्यता है कि कलाकंद का भोग लगाने से सारी मुरादें पूरी होती हैं. इसी को देखते हुए देश ही नहीं बल्कि विदेश के भक्त जटाधारी के दर पर आकर भोले को कलाकंद चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं. जटाशंकर धाम पर महाशिवरात्रि के अलावा हर महीने की अमावस्या को भक्तों का तांता लगता है. कलाकंद की दुकानों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है.

जटाशंकर धाम के भोलेनाथ को कलाकंद का प्रसाद

किसी देव को लड्डू चढ़ते हैं तो किसी देव को खीरपूड़ी का भोग लगाकर प्रसन्न किया जाता है, लेकिन छतरपुर जिले में बुंदेलखंड के केदारनाथ कहे जाने वाले जटाशंकर धाम के जटाधारी भगवान भोलेानाथ की अगल ही महिमा है. इस प्राचीन मंदिर की अगल कहानी भी है. कभी 100 से ज्यादा डकैतों का धाम पर वास हुआ करता था. डकैत भी भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनके मनपसंद प्रसाद कलाकंद का भोग लगाते थे. सैकड़ो सालों से चले आ रहे भोलेनाथ को आज भी कलाकंद का प्रसाद लगता है. दरअसल, छतरपुर जिले के बिजावर तहसील से 11 किलोमीटर की दूरी पर भीषण जंगल मे बैठे जटाधारी का जटाशंकर धाम सिद्ध माना जाता है. यहां जो भी भोलेनाथ को कलाकंद प्रसाद में चढ़ाता है. समझो उसके कष्ट दूर होना तय हैं.

जटाशंकर धाम के कलाकंद की महक विदेश तक (ETV BHARAT)

जटाशंकर धाम का कलाकंद विदेश तक जाता है

जटाशंकर धाम की अधिकांश मिठाई की दुकानों पर कलाकंद मिलता है. भक्त भोलेनाथ को प्रसाद में सिर्फ कलाकंद ही चढ़ाते हैं. दुकानदारों का कहना है "यहां का कलाकंद देश ही नहीं विदेश तक जाता है. जटाशंकर धाम पर शिवरात्रि के दिन भक्तों का रेला आता है तो हर महीने की अमावस्या पर भीड़ उमड़ती है. कलाकंद जितना भी बनाओ, कम पड़ जाता है. इसलिए हर महीने कलाकंद की खपत बढ़ रही है."

जटाशंकर भगवान को कलाकंद का प्रसाद चढ़ाने से मनोकामना पूरी (ETV BHARAT)

डकैतों से जुड़ा है कलाकंद का इतिहास

जानकर लोगों की मानें तो जटाशंकर धाम का इतिहास डकैतों से जुड़ा है. डकैत मूरत सिंह, डकैत बब्बाजू इसी धाम पर अपनी फरारी काटते थे. उस समय ये इलाका बेहद घने जंगल में आता था. आसपास आदिवासी लोग रहने के कारण दूध भी शुद्ध मिलता था. दूध से ही दानेदार कलाकंद को बनाया जाता है. डकैत भी भोलेनाथ को खुश करने के लिए कलाकंद का प्रसाद अर्पण करते थे. तभी से इस स्थान पर कलाकंद का प्रसाद लगता है. दुकानों के अनुसार कलाकंद की उम्र सबसे कम होती है. केवल एक दिन में खा लिया जाए तो मजा ही कुछ अगल रहता है, क्योंकि यह दानेदार होता है. दूध से लिपटा होता है. सूखे मेवे के चूरा का भी इसमें उपयोग होता है. दूध को ढाई-तीन घंटे कढ़ाही में उबाला जाता है तब कलाकंद की स्वाद उभर कर आता है.

मिठाई कारोबारी विवेक बड्डगैया कलाकंद के बारे में बताते हुए (ETV BHARAT)

जटाशंकर में दो प्रकार का कलाकंद बनता है

मिठाई कारोबारी विवेक बड्डगैयाबताते हैं "यहां कलाकंद दो प्रकार का बनता है. एक कम मीठा का, जो शहर के लोगों के लिए होता है और दूसरा ज्यादा मीठा, जो ग्रामीण लोग पसंद करते हैं." व्यापारी राहुल छिरोलियाकहते हैं "हर अमस्या, पूर्णिमा के साथ ही सोमवार को बहुत ज्यादा भक्त आते हैं. ये भोलेनाथ का दिन होता है, जो भी भक्त मनोकामना मांगते हैं तो कलाकंद का भोज चढ़ाने से पूरी हो जाती है."

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