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लखनऊ में इमाम हुसैन की याद में आज निकलेगा चेहल्लुम का जुलूस - chehlum 2024

लखनऊ में इमाम हुसैन की याद में आज चेहल्लुम का जुलूस निकलेगा. चलिए जानते हैं इस बारे में.

chehlum 2024 held in memory of Imam Hussain in Lucknow uttar pradesh news
लखनऊ में आज निकलेगा इमाम हुसैन की याद में जुलूस. (photo credit: etv bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 26, 2024, 12:48 PM IST

लखनऊः चेहल्लुम हजरत इमाम हुसैन की शहादत के तौर पर मनाया जाता है. जब हजरत इमाम हुसैन अपने लश्कर के साथ कर्बला में लड़ रहे थे तब मोहर्रम महीने की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन यजीदियो से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे. इमाम हुसैन हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम के नवासे थे जिन्होंने मोहर्रम की 10 तारीख को अपनी कुर्बानी कर्बला में दी थी उसके ठीक 40 दिन के बाद चेहल्लुम त्यौहार को मनाया जाता है जो की उनका 40वां होता है. चेहल्लुम का जुलूस सोमवार को दोपहर 1 बजे नाजिम साहब विक्टोरिया स्ट्रीट इमामबाड़ा से तालकटोरा इमामबाड़ा तक जाएगा. जुलूस से पहले मौलाना कल्बे जवाद मजलिस को खिताब करेंगे। इस जुलूस में 200 से ज्यादा अंजुमन शामिल होंगी.

चेहल्लुम के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग चाहें वह किसी भी समुदाय के हो वह सिया, सुन्नी सभी वर्ग के सामुदायिक लोग इमामबाड़ा या फिर मजार पर इकट्ठा होकर हजरत इमाम हुसैन की शहादत की कहानियां सुनते है. मुस्लिम समुदाय के लोग उनकी वीरता की कहानियां सुनते है और अपने आप को गमजदा महसूस करते है हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम समुदाय के लोग लंगर फतिहा का इंतजाम करते है. हजरत इमाम हुसैन की वीरतापूर्वक कहानियां काफी हद तक प्रेरणादायक होती है.

मुस्लिम समाज में चेहल्लुम की अहमियत इसलिए अधिक है क्योंकि हजरत इमाम हुसैन की शहादत के 40 दिन बाद उसको मनाया जाता है. इनकी वीरता की कहानी दुनिया भर में मशहूर है. मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि हमारे कौम के जो नौजवान हैं, उन्होंने कोशिश की है. एक हफ्ते पहले से चल रही थी उसी की कड़ी में पहले अंजुमन ए मातमी की मीटिंग की थी, फिर अपने तमाम बुजुर्गों उलमा से मुलाकात की. क्योंकि इधर कुछ सालों से चेहल्लुम के जुलूस के अंदर कुछ ऐसी चीजें शामिल की जा रही हैं, जिससे जुलूस की जो शान है, जो अजमत है, जो तकद्दुस है वो कम हो रहा है. तो उन नौजवानों ने अपनी इस बेकारी को अंजुमनों के सामने भी रखा, और उसके बाद उलमा के सामने भी रखा कि इसको रोकना चाहिए. इसको कम करना चाहिए. तो वहीं उलमा ने लिखित तौर पर सबको तहरीर लिखकर दी और लोगों से अपील की गई है कि जो पुराना, सैकड़ों सालों से हमारे जुलूस चले आ रहे हैं, उसको उसी तरह से जुलूस उठाए जाएं. उसमें जो नई चीजें जोड़ी जा रही हैं, उनको खत्म किया जाए.

उन्होंने कहा कि जुलूस जो है शहादती इमाम हुसैन से मुत्तलिक है. ये कोई त्योहार का जुलूस नहीं है, बल्कि गम का जुलूस है. इस दौरान इंसान का आंख और दिल दोनों ही रोए. पहले के जुलूस में ताबूत होती थी, झुनझुना, गहवारा और जरी होती थी. ऐसे में गम महसूस होता था, लेकिन अब के जुलूस में फोटो, झंडे, और दूसरी चीजें दाखिल कर दी गई हैं तो अलम और ताबूत को देखकर आपका दिल गमगीन होगा, फोटो और झंडे को देखकर आपका दिल गमगीन नहीं होगा.

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