लखनऊ: प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से नवजात शिशुओं को फेंकने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. कभी झाड़ियों में तो कभी कूड़ेदान में नवजात को फेंक दिया गया. यह अमानवीय कृत्य समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्ष में चाइल्ड लाइन को जिले में लावारिस छोड़े गए 269 नवजात मिले हैं. इनमें 96 लड़के और 117 लड़कियों को मां-बाप का तिरस्कार सहना पड़ा. इन नवजात को लावारिस हालत में फेंकने की वजह बिना शादी के मां बनना या फिर बेटे की चाहत में बेटियों को फेंक दिया जाना ही माना जा रहा है.
रेस्क्यू के बाद डॉक्टरों की निगरानी में होते हैं नवजात
बाल आयोग की सदस्य सुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि हर साल इसी तरह के आंकड़े चौंकाने वाले होते हैं. जब बच्चों को रेस्क्यू किया जाता है. उसके बाद हमें जानकारी मिलती है, तो हम मौके पर जाते हैं. उस समय हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. क्योंकि, उनकी स्थिति ऐसी होती है. छोटे से चार घंटे का या एक दिन के बच्चे होते हैं, जिसे उसके माता-पिता सड़क पर छोड़ जाते हैं.
उन्होंने कहा कि वर्ष 2021-23 में प्रदेश में 70 बच्चे रेस्क्यू किए गए थे. इसमें से बहुत से बच्चे कूड़े कचरे से रेस्क्यू किए गए, तो बहुत सारे बच्चे किसी मंदिर या खुली सड़क से रेस्क्यू किए गए हैं. सभी बच्चे नवजात थे. किसी के इतिहास का कोई पता नहीं चला. यह सभी बच्चे ऐसी जगह से रेस्क्यू किए गए हैं. जहां पर न कोई सीसीटीवी कैमरा लगा था और न ही आने-जाने वाले किसी व्यक्ति ने देखा था. ऐसे में इन बच्चों के माता-पिता का पता लगाना संभव नहीं.
उन्होंने कहा कि इन बच्चों को जब रेस्क्यू किया जाता है, तो सबसे पहले इन्हें डॉक्टर के ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है. क्योंकि, बहुत सारे बच्चे ऐसे होते हैं. जिनके बचने की भी संभावना नहीं होती है. डॉक्टर की निगरानी में बच्चों को तब तक रखा जाता है, जब तक बच्चे बिल्कुल स्वस्थ नहीं हो जाते हैं.
सरकार उठाती है पूरा खर्चा
उन्होंने कहा कि सड़क या कहीं अन्य जगह से रेस्क्यू किए हुए नवजात बच्चों को डॉक्टरों की निगरानी के बाद राजकीय बाल शिशु गृह में शिफ्ट किया जाता है. जहां पर उन्हें देखने के लिए आया होती हैं और वहां पर गृह इंचार्ज भी होते हैं. हर तीन बच्चों की देखरेख एक आया करती है. बाल गृह में बच्चों के लिए पौष्टिक आहार से लेकर के उनकी पढ़ाई तक का खर्चा सरकार उठाती है. इसके अलावा राइट टू एजुकेशन का हक भी राजकीय बाल गृह बच्चों को दिलाता है. सरकार इन बच्चों के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं करती हैं. इसके लिए अलग से सरकार के द्वारा फंड आता है. जिससे इन बच्चों की देखरेख और उनकी शिक्षा दीक्षा की जाती है.
गोद लेने का भी है प्रावधान
उन्होंने बताया कि बहुत सारे ऐसे दंपति होते हैं, जो संतान सुख से वंचित रहते हैं. उन्हें संतान नहीं होती है. ऐसे दंपति राजकीय बाल गृह में आते हैं और अपने बारे में सारी जानकारी देते हैं. उसके बाद छोटे बच्चे को गोद लेते हैं. इसकी प्रक्रिया लंबी है, क्योंकि दंपति के घर का पूरा बुरा बाल आयोग के पास भेजा जाता है. वहीं, बालगृह बच्चे को जिस दंपति को देने वाले होते हैं, उनके बारे में पूरी जानकारी एकत्रित करते हैं. सारी प्रक्रिया होने के बाद सारे दस्तावेज जमा करने के बाद तब नवजात की जिम्मेदारी दंपति के हाथों दी जाती है इसके बाद भी बालगृह नवजात को दंपति के हवाले सौंपने के बाद भी समय-समय पर बच्चे से मिलने के लिए जाते हैं. उसकी देखरेख किस तरह से हो रही है. उसकी परवरिश किस तरह से हो रही है. इसके बारे में जानते हैं.
खराब स्थिति में मिलते हैं नवजात
उन्होंने बताया कि साल 2023 में एक बच्चे को गोंडा जिले से रेस्क्यू किया गया. बच्चा महज एक दिन का ही था. नवजात बहुत ही बुरी स्थिति में ग्रामीणों को मिला था. गांव में हल्ला होने के बाद दो पक्ष के लोग आपस में ही लड़ाई कर रहे थे. एक भूमिहार था और दूसरा पंडित था. दोनों को ही संतान नहीं थी. दोनों आपस में लड़ाई कर रहे थे कि वह इस बच्चे को पालेंगे. इसके बाद गांव की एक लड़की ने चाइल्ड लाइन नंबर पर फोन करके इस बात की खबर दी रातों-रात लखनऊ से टीम रवाना हुई और बच्चे का रेस्क्यू किया. यहां तक की ग्रामीण चाइल्डलाइन के खिलाफ ही खड़े हो गए. लेकिन किसी तरह उसे बच्चों को लेकर वापस लखनऊ लौट, जहां पर बाल गृह में बच्चे को रखा गया. डॉक्टर के निगरानी में बच्चा था और बच्चों की स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर थी. पूरे 6 महीने के बाद बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हो पाया था.