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CAG रिपोर्ट में खुलासा: दिल्ली में शराब की कीमतें बढ़ीं, जानिए उपभोक्ताओं को कैसे हुआ बड़ा नुकसान ? - DELHI LIQUOR SCAM CAG REPORT

किस तरह दिल्ली की नई शराब नीति ने उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ डाला, विस्तार से समझिए...

CAG रिपोर्ट में शराब घोटाले को लेकर खुलासा
CAG रिपोर्ट में शराब घोटाले को लेकर खुलासा (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 25, 2025, 3:51 PM IST

Updated : Feb 25, 2025, 4:04 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट ने दिल्ली की शराब नीति में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा किया है, जिससे न केवल सरकारी खजाने को 2,002.68 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, बल्कि उपभोक्ताओं को भी भारी नुकसान हुआ. सीएजी की रिपोर्ट से स्पष्ट किया गया है कि कीमतों में हेरफेर, ब्रांड एक्सक्लूसिविटी और मोनोपॉली के कारण उपभोक्ताओं को महंगी शराब खरीदने पर मजबूर होना पड़ा, जबकि विकल्पों की संख्या घट गई और गुणवत्ता पर भी सवाल उठे थे. ऐसे में आइए जानते हैं किस तरह दिल्ली की नई शराब नीति ने उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ डाला.

कीमतों में भारी वृद्धि से उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ा असर:दिल्ली विधानसभा में पेश की गई सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, नई शराब नीति के तहत थोक विक्रेताओं को अपनी मनचाही एक्स-डिस्टिलरी प्राइस निर्धारित करने की अनुमति दी गई थी. इससे लाइसेंसधारकों ने इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हुए कीमतों को मनमाने ढंग से बढ़ाया, जिसका असर सीधा उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ा.

कीमतों में 20 से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि:सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, शराब की कीमतों में 20 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी गई थी, जिससे आम आदमी की खरीद क्षमता पर सीधा असर पड़ा. उदाहरण के लिए जैसे कोई शराब की बोतल पहले 800 रुपए में मिलती थी तो वो नई शराब नीति के बाद 1000 रुपए या इससे अधिक दाम में बिकने लगी. मूल्य में वृद्धि का मुख्य कारण मोनोपॉली और कार्टेलाइजेशन था, जिसकी वजह से बाजार में प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया. उपभोक्ताओं को विकल्पों की कमी के कारण अधिक दाम पर शराब खरीदनी पड़ी.

विकल्पों की कमी से उपभोक्ताओं की पसंद हुई सीमित:नई नीति के तहत शराब निर्माताओं को केवल एक ही थोक विक्रेता के साथ समझौता करने के लिए बाध्य किया गया, जिससे कुछ चुनिंदा थोक विक्रेताओं का बाजार पर एकाधिकार हो गया था. सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, तीन कंपनियों को 192 ब्रांडों के विशेष आपूर्ति अधिकार प्राप्त थे, जिससे ये कंपनियां यह तय कर सकी कि कौन-से ब्रांड बाजार में बिकेगा और उसकी क्या कीमत होगी. 367 पंजीकृत ब्रांडों में से सिर्फ 25 ब्रांडों ने दिल्ली की कुल शराब बिक्री का 70 प्रतिशत हिस्सा कब्जा कर लिया था. इससे उपभोक्ताओं के पास विकल्प के रूप में कम ब्रांड थे और उन्हें निर्धारित कीमतों पर चुनिंदा ब्रांडों की शराब खरीदना पड़ा.

शराब की गुणवत्ता में गिरावटःसीएजी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि गुणवत्ता जांच व सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया था, जिससे उपभोक्ताओं की सेहत को गंभीर खतरा पैदा हुआ था. लाइसेंस जारी करने के समय गुणवत्ता जांच रिपोर्ट गायब थी या ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स के मानक के अनुरूप नहीं थी. कई रिपोर्ट्स 1 साल से पुरानी, बिना तारीख के या अवैध लैब्स से आई थी. शराब में भारी धातुओं जैसे- मिथाइल, अल्कोहल जैसे हानिकारक तत्वों की जांच रिपोर्ट भी गायब थी, जिससे उपभोक्ताओं की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ा था. इसको लेकर उपभोक्ता भी लगातार सवाल खड़े करते रहे हैं.

शिकायतों के निवारण की कमीःसीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के पास उपभोक्ताओं की शिकायतें सुनने या निवारण के लिए कोई प्रभावी प्रणाली नहीं थी. उपभोक्ताओं को कीमतों में वृद्धि, ब्रांड विकल्पों की कमी और गुणवत्ता समस्याओं पर सहारा नहीं मिला. कीमतों में हेरफेर व एक्सक्लूसिविटी के कारण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन हुआ, लेकिन नियामक तंत्र की कमी के कारण उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिल पाया. यदि पारदर्शी शिकायत निवारण प्रणाली लागू की जाती तो उपभोक्ताओं को अत्यधिक कीमतों और गुणवत्ता की समस्याओं का समाधान निकलता.

सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की नई शराब नीति ने न केवल दिल्ली सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाया, बल्कि उपभोक्ताओं के हितों को भी प्रभावित किया. कीमतों में वृद्धि, विकल्पों की कमी, नकली शराब, मिलावट और अवैध व्यापार के कारण उपभोक्ताओं को आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा. इन कारणों से ये रिपोर्ट दिल्ली की शराब नीति की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है.

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Last Updated : Feb 25, 2025, 4:04 PM IST

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