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Rajasthan: दौसा में 41 साल बाद विधानसभा उपचुनाव, जातिगत राजनीति में फंसी सीट, प्रत्याशियों की तलाश में दोनों पार्टी

उपचुनाव में दौसा सीट हाई प्रोफाइल मानी जा रही है. यहां से अभी तक किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है.

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 3 hours ago

Updated : 3 hours ago

दौसा विधानसभा उपचुनाव
दौसा विधानसभा उपचुनाव (ETV Bharat GFX)

दौसा : प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद अब प्रदेश की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर चुनावी चौसर सज कर तैयार हो चुकी है. प्रदेश में दोनों ही बड़े दल भाजपा और कांग्रेस के शीर्ष नेता सातों विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. ऐसे में प्रदेश की दौसा विधानसभा सीट एक बार फिर से उपचुनाव में हॉट सीट बनती जा रही है. 18 अक्टूबर से नामांकन की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन दौसा में प्रत्याशियों के नाम अभी तक फाइनल नहीं हुए हैं, इसलिए पहले दिन किसी भी कैंडीडेट ने अपना नामांकन नहीं भरा.

बता दें कि वर्तमान सांसद मुरारीलाल मीना के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दिया था, जिसके चलते दौसा विधानसभा सीट खाली हो गई थी. ऐसे में करीब 41 साल बाद दौसा में एक बार फिर से उपचुनाव हो रहे हैं. 1982 में उस समय विधायक सोहनलाल बंशीवाल का निधन होने के कारण दौसा में उपचुनाव हुए थे. सोहनलाल बंशीवाल जिले के सिकराय से वर्तमान विधायक विक्रम बंशीवाल के दादा थे. इस दौरान 1983 में हुए उपचनाव में सिकराय से भाजपा के वर्तमान विधायक विक्रम बंशीवाल के ताऊ राधेश्याम बंशीवाल भाजपा के सिंबल पर दौसा से उपचुनाव जीते थे.

दौसा विधानसभा उपचुनाव. (ETV Bharat dausa)

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जातिवाद की राजनीति में बंटा दौसा :वहीं, दौसा विधानसभा उपचुनाव की जानकारी के लिए ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय स्थित एक चाय की थड़ी पर पहुंची, जहां जिले के कुछ वरिष्ठ पत्रकार दौसा की राजनीति पर चर्चा कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि अब दौसा की राजनीति में सिर्फ जातिवाद की राजनीति की हवा घुल गई है. यहां पार्टियों का कोई वर्चस्व नहीं है. जिले के पत्रकार संतोष तिवाड़ी ने बताया कि दौसा के किसी भी चुनाव में टिकट वितरण के बाद पार्टियां विलुप्त हो जाती है और जातिवाद हावी होता है. पूर्वी राजस्थान का दौसा विधानसभा गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है. ऐसे में यहां जातिगत राजनीति होती है, इसीलिए राजनीतिक पार्टियां भी जातिगत आधार पर ही टिकट देती हैं.

सामान्य वर्ग को साधने के प्रयास में कांग्रेस :साथ ही उन्होंने बताया कि दोनों ही पार्टियां उपचुनाव में सभी वर्गों को साधने के प्रयास में जुटी हुई हैं, जिसके चलते कांग्रेस चाहती है कि इस बार सामान्य वर्ग के किसी मजबूत नेता को टिकट दें, लेकिन सामान्य वर्ग को टिकट देने के चलते कांग्रेस अपने वोट बैंक को भी पक्ष में रखना चाहती है. वहीं, सांसद मुरारीलाल मीना भी चाहते हैं कि उपचुनाव में किसी ऐसे व्यक्ति को कांग्रेस का टिकट मिले, जो आगामी समय में उनके लिए कोई नई मुसीबत ना खड़ी करे. वहीं, बीजेपी की बात करें तो शंकर लाल शर्मा सामान्य वर्ग में सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं, लेकिन कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीना भी अपने भाई जगमोहन के लिए दौसा से दावेदारी जता रहे हैं. इसी के चलते दोनों ही पार्टियां अभी टिकट फाइनल नहीं कर पाई हैं.

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प्रदेश सरकार की दशा और दिशा तय करेंगे उपचुनाव :इसी प्रकार पत्रकार विनोद पाराशर ने बताया कि प्रदेश में सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव प्रदेश सरकार की दशा और दिशा दोनों तय करेंगे. उन्होंने बताया कि दौसा में अब तक कांग्रेस और भाजपा ने जो भी फैसले लिए हैं, वो जातिगत आधार पर ही लिए गए हैं. टिकट वितरण के बाद स्थिति और भी ज्यादा साफ हो जाएगी.

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