उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

जल्द शुरू होगा पीजीआई और केजीएमयू में बोन मैरो ट्रांसप्लांट, जानिए कितना आता है खर्च - BONE MARROW TRANSPLANT

यूपी में अब जल्द ही पीजीआई और केजीएमयू में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरु होगी.

Etv Bharat
केजीएमयू में बोनमैरो ट्रांस्प्लांट (photo credit; Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 23, 2024, 6:35 PM IST

लखनऊ: हाल फिलहाल में बोन मैरो की दिक्कत से बहुत से मरीज परेशान हो रहे हैं. प्रदेश में फिलहाल कहीं भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट नहीं होता है. जिसके कारण मरीजों को खास दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. केजीएमयू कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने बताया, कि बोन मैरो (अस्थि मज्जा) हड्डियों के अंदर मौजूद एक नरम और स्पंजी जैसा ऊतक होता है. यह शरीर के लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि, यह मौजूद स्टेम कोशिकाएं, रक्त कोशिकाओं और प्रतिरक्षा प्रणाली बनाने वाली कोशिकाओं का उत्पादन करती हैं. जब यह उत्पादन करना बंद कर देते हैं, तो दिक्कतें शुरू होने लगती है. उस स्थिति में मरीज को बोनमैरो ट्रांस्प्लांट की जरूरत होती है.

केजीएमयू कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने बताया, कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट 1991 में एसजीपीजीआई में ही शुरू की गई थी. उसकी नींव मेरे ही समय में रखी गई थी, जब मैं एसजीपीजीआई में कार्यरत थी. बोन मैरो ट्रांसप्लांट यानी की अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण यह वह तकनीक है, जिसमें हड्डियों के अंदर तरल पदार्थ यानी टिशु खत्म हो जाते हैं. उस समय पर मरीज को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में मरीज का बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ता है. एसजीपीजीआई में अभी बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो रहा है. लगभग 200 से ज्यादा ट्रांसप्लांट हो गए हैं.

केजीएमयू कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने दी जानकारी (video credit; Etv Bharat)

केजीएमयू में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट हुए हैं. लेकिन, यहां पर डेडीकेटेड यूनिट नहीं है. क्योंकि इसके लिए प्रॉपर डेडीकेटेड यूनिट चाहिए. आदित्य बिरला कैपिटल फाउंडेशन से मैंने सीएसआर पैसा लिया है. अब केजीएमयू में बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट की भी स्थापना हो रही है, जो 2025 अप्रैल मई तक पूरी हो जाएगी. उन्होंने कहा, कि एसजीपीजीआई में जब मैंने बोन मैरो ट्रांसप्लांट स्थापित किया था, उस समय यह देश का चौथा सेंटर था. सरकारी मेडिकल संस्थान में हम लोग जो बोन मैरो ट्रांसप्लांट करते हैं, वह भाई-बहन वाले ट्रांसप्लांट में लगभग 10 से 12 लाख का आता है. ऑटोलॉगोस ट्रांसप्लांट 5 से 6 लाख का आता है.

इसे भी पढ़ें -यूपी में अभी SGPGI में होता है बोन मैरो ट्रांसप्लांट, अगले साल से KGMU में भी होगा, पढ़िए डिटेल - SGPGI MEDICAL FACILITY

निजी अस्पतालों की तुलना में कम पैसों में ट्रांसप्लांट:केजीएमयू कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने बताया, कि जहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट की बात आती है, वहां लाखों रुपए का खर्चा होता है. लेकिन, बात अगर सरकारी मेडिकल संस्थानों के किया जाए तो सरकारी योजनाओं के आधार पर और सरकारी मेडिकल संस्थान में इलाज के आधार पर बहुत ही कम पैसों में यहां पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है. अगर निजी की तुलना में देखे तो 11 से 12 लाख कुछ भी नहीं है. क्योंकि, बोन मैरो ट्रांसप्लांट अगर किसी निजी संस्थान में होता है, तो इसकी कीमत करीब 25 से 30 लाख है, या इससे अधिक हो सकती है. लेकिन, सरकारी मेडिकल संस्थान में 11 से 12 लाख में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है. निजी की तुलना में यह बेहद कम है.

एसजीपीजीआई में दो प्रकार के प्रत्यारोपण:एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो. आरके धीमान ने बताया, कि एसजीपीजीआई में मुख्य दो प्रकार के प्रत्यारोपण होते हैं. पहला किडनी प्रत्यारोपण और दूसरा बोन मैरो प्रत्यारोपण होते हैं. लिवर अभी शुरुआती स्टेज में है. पिछले वर्ष लिवर प्रत्यारोपण हुआ था. किडनी प्रत्यारोपण लगभग डेढ़ सौ मरीज के होते हैं. हमारी कोशिश है कि आगामी वर्ष तक यह आंकड़ा 500 तक पहुंच जाए. वहीं, पिछले वर्ष बोन मैरो ट्रांसप्लांट 40 हुए हैं. हमारी पूरी कोशिश है, कि इसकी संख्या आगामी वर्ष में और बड़े हमारे अभी दो ओटी संचालित नहीं है. जब यह दो ओटी संचालित होने लगेगी तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट और लिवर ट्रांसप्लांट की संख्या बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि प्रदेश में बोन मैरो ट्रांसप्लांट फिलहाल कहीं नहीं होता है. एसजीपीजीआई में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है. हमारी कोशिश है, कि इसे और बढ़ावा मिले इसके अलावा बोन मैरो ट्रांसप्लांट केजीएमयू में भी शुरू हो, तो उनको भी एसजीपीजीआई मदद करेगा और उनसे कोऑर्डिनेटर करेगा.

प्रो. आरके धीमान ने बताया, कि अस्थि मज्जा विफलता तब होती है, जब मरीज की अस्थि मज्जा पर्याप्त प्लेटलेट्स, लाल रक्त कोशिकाओं या सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण नहीं करती है. बोन मैरो विफलता अधिग्रहित अनुवांशिक भी हो सकता है. इसके मुख्य लक्षणों में रक्तस्राव, चोट लगना और थकान शामिल हैं. उपचार में रक्त आधान और स्टेम सेल प्रत्यारोपण शामिल हैं. उन्होंने बताया कि डॉक्टर एक खाली सुई का उपयोग करके मज्जा कोशिकाओं की एक छोटी मात्रा (एस्पिरेशन) और मज्जा से भरी हड्डी का एक छोटा टुकड़ा (बायोप्सी) निकालता है. फिर इसकी जांच लैब में होती है.

बोन मैरो के लक्षण

  • एनीमिया की समस्या.
  • शारीरिक कमजोरी होना.
  • बिना वजह फ़्रैक्चर होना.
  • शरीर में सूजन आना.
  • तेज़ बुखार होना.
  • वज़न तेजी से घटना.
  • अत्यधिक थकान होना.
  • प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना.
  • चक्कर आना.
  • हड्डियों में दर्द होना.

यह भी पढ़ें -केजीएमयू में नए साल से मरीजों के लिए कौन सी नई सुविधा शुरू होगी, जानिए - TRAUMA CENTER 2 WILL START IN KGMU

ABOUT THE AUTHOR

...view details