सरगुजा : आजादी के कई साल बीतने के बाद भी कुछ गांवों में सड़क नहीं बनने से लोगों की मुसीबतें कम नहीं हुई हैं. सरगुजा में रविवार को युवक की मौत के बाद उसके शव को कंधे पर लादकर आठ किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा. इस घटना का वीडियो अब सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है. विधायक अब फारेस्ट लैंड क्लियरेंस के बाद सड़क बनने की बात कह रहे हैं.
शव को कंधे पर लादकर चले 8 किमी : यह पूरा मामला लखनपुर विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत पटकुरा के आश्रित ग्राम घटोंन का है. इस गांव के निवासी 18 वर्षीय इसपाल तिग्गा की तबीयत खराब होने पर परिजनों ने उपचार के लिए शहर के एक हॉस्पिटल में भर्ती कराया. उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई.
कंधे पर शव लेकर चलने को मजबूर ग्रामीण (ETV Bharat)
युवक की मौत के बाद परिजन उसके शव को लेकर वहां से ग्राम पटकुरा तक पहुंचे लेकिन पटकुरा से घटोंन तक सड़क मार्ग नहीं होने के कारण शव को वाहन से बाहर निकालना पड़ा. इसके बाद परिजन शव को झेलगी(कपड़े) में डालकर पहाड़ पर चढ़े.
परिजन ने आठ किलोमीटर की दूरी शव को कंधे पर लादकर झेलगी के सहारे पूरी की. इस दौरान किसी ने घटना से जुड़ा वीडियो बना लिया. अब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
"फारेस्ट विभाग से अनुमति मिलना शेष": इस मामले में क्षेत्र के लुंड्रा विधायक प्रबोध मिंज ने बताया कि लब्जी से सकरिया, जामा से लोटा ढोढ़ी, लब्जी से पाकजाम, लब्जी से खिरहिरी तक सड़क निर्माण प्रस्तावित है. स्वीकृति मिलने पर काम कराया जाएगा. इन क्षेत्रों में सड़क निर्माण की समस्या काफी पुरानी है.
ये दुर्भाग्यपूर्ण है. पिछली सरकार व जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया. मैंने पहले ही बजट में सड़क स्वीकृत कराई है. पटकुरा से घटोंन तक 5 किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए प्रस्ताव वर्ष 2024-25 के बजट में शामिल है. यह भूमि फारेस्ट के अधीन है. फारेस्ट विभाग से अनुमति मिलना शेष है. : प्रबोध मिंज, विधायक, लुंड्रा विधानसभा
सड़क मार्ग नहीं होने से बढ़ी परेशानी : विधानसभा लुंड्रा व विकासखंड लखनपुर के अंतर्गत पटकुरा से आठ किलोमीटर की दूरी पर घटोंन ग्राम स्थित है. जंगल पहाड़ों पर बसे इस गांव में दो दर्जन से ज्यादा परिवार रहते हैं. जंगलों से घिरा होने के कारण आए दिन यहां हाथियों की मौजूदगी बनी रहती है. सड़क मार्ग नहीं होने के कारण ग्रामीणों के बीमार होने पर उन्हें अस्पताल लेकर जाना बड़ी चुनौती होती है. इस पहुंचविहीन गांव के ग्रामीणों को शिक्षा, स्वास्थ्य, राशन और अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए पैदल ही पटकुरा तक का सफर करना पड़ता है.