बिलासपुर: लोकसभा चुनाव को लेकर बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में जातिगत चुनावी महौल बन रहा है. दोनों ही पार्टी पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को साधने और चुनाव अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगे हैं. पार्टियों यह जानती हैं कि बिलासपुर में पिछड़ा वर्ग की आबादी अधिक है. इसे ध्यान में रखते हुए इसी वर्ग के उम्मीदवार का दोनों पार्टियों ने उतारा है. ताकि उनके प्रत्याशी की जीत पक्की हो जाए. लेकिन पिछड़ा वर्ग के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि अन्य समाज की उपेक्षा दोनों पार्टियों को भारी भी पड़ जाए.
राजनीतिक पार्टियों ने जुटाया है यह आंकड़ा: बिलासपुर लोकसभा सीट में 20 लाख मतदाता है. राजनीतिक दलों ने अपने स्तर पर जातिगत आंकड़े तैयार किए हैं. जिसके अनुसार, लगभग 10 लाख 94 हजार मतदाताओं में 2 लाख 65 हजार आदिवासी, 2 लाख 25 हजार साहू समाज, 1 लाख 50 हजार यादव समाज, 1 लाख 35097 कर्मीचारी, 92 हजार मरार और पटेल, 75 हजार ब्राह्मण समाज, 15 हजार सूर्यवंशी और सतनामी, 5000 अन्य मतदाता है. इसके अलावा मुस्लिम समाज के मतदाता भी बड़ी संख्या में है. 2019 के चुनाव में 12 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था, जबकि बाकी मतदाता वोट डालने मतदान केंद्र तक पहुंचे ही नहीं थे.
ओबीसी वर्ग को साधने में जुटी कांग्रेस और बीजेपी: कांग्रेस और बीजेपी यह जानती है कि सबसे ज्यादा संख्या में इन्हीं दो समाज के मतदाता हैं. बिलासपुर लोकसभा में सबसे ज्यादा संख्या वाली साहू समाज और दूसरे नंबर पर यादव समाज आता है. दोनों पार्टियां ओबीसी वर्ग को साधने के चक्कर में सामान्य और एससी-एसटी वर्ग को भूल गई है. देखा जाए तो 20 लाख की जनसंख्या में 10 लाख से भी ज्यादा की संख्या सामान्य और एसटी-एससी वर्ग की है. कहीं उनकी अनदेखी दोनों पार्टियों के लिए गेम खराब न कर दे.