पटना: लोकसभा जाने की चाह बिहार के कई दिगग्ज नेताओं का सपना ही बनकर रह गया. इस लिस्ट में राज्य से सीएम से लेकर फिल्म दुनिया से जुड़े लोग मौजूद है. वहीं, कई ऐसे नेता भी है जिनकी किस्मत बार-बार उनसे संघर्ष कराने पर लगी हुई है. इस लिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, प्रकाश झा, हिना शहाब, अब्दुल बारी सिद्दीकी, मीसा भारती, कन्हैया कुमार, शेखर सुमन, अख्तरुल इमान, जगन्नाथ मिश्रा और सदानंद सिंह शामिल है, जिनके लोकसभा जाने का सपना पूरा ही नही हो पा रहा हैं.
तीन बार के सीएम भी लोकसभा नहीं जा पाए: वहीं, इस लिस्ट में बिहार के पूर्व सीएम भी शामिल है. बात करें जगन्नाथ मिश्रा कि तो वह तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. वहीं, कांग्रेस के सदानंद सिंह भी लंबे समय तक राजनीति में रहे, इस बीच दोनों दिग्गज नेताओं का निधन भी हो गया, लेकिन दोनों के लोकसभा जाने का सपना पूरा नहीं हो पाया.पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी सारण से चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन सांसद बनने का सपना पूरा नहीं हुआ है वहीं पूर्व सीएम जीतन नाम मांझी तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके है. तीनों बार हार मिली है। फिर से इस बार चुनाव गया से लड़ रहे हैं.
शहाबुद्दीन की पत्नी भी तलाश रही जीत: बाहुबली शहाबुद्दीन कभी सिवान से चार बार सांसद (1996, 1998, 1999 और 2004) रह चुके थे. उनके निधन के बाद उनकी पत्नी हिना शहाब सिवान से लगातार चुनाव लड़ रही है, लेकिन उनके सांसद बनने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. वह इस बार भी निर्दलीय चुनाव लड़ रही है. इसके अलावा राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी भी लोकसभा का चुनाव लड़ते रहे है, लेकिन मधुबनी और दरभंगा से सांसद बनने का सपना उनका भी पूरा नहीं हो सका है.
प्रकाश झा, शेखर सुमन भी शामिल: फिल्मकार प्रकाश झा तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. शेखर सुमन, कुणाल जैसे अभिनेताओं का भी सांसद बनने का सपना अब तक पूरा नहीं हो पाया है. तो वहीं, जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी बेगूसराय से चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. हालांकि वह इस बार दिल्ली से भाग्य आजमा रहे है. बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी नीलम देवी भी चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन उनका भी सपना पूरा नहीं हुआ है.
जनता में कम होती विश्वसनीयता बनी वजह:राजनीतिक विशेषज्ञ बिहार के दिग्गज नेताओं के लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाने के पीछे स्थानीय मुद्दा भी बता रहे है. साथ ही गठबंधन को भी इसकी बड़ी वजह बता रहे है. राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है कि कई बार निर्दलीय भी चुनाव जीत जाते है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी नहीं जीत पाती. इसके पीछे का कारण है जनता के बीच उनकी कम होती विश्वसनीयता.