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पंडित नेहरू भी जिनकी हर बात मानने को होते थे मजबूर! ऐसे थे बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह

बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की आज 137वीं जयंती है. उनका अंदाज कुछ ऐसा था कि पंडित नेहरू भी उनकी हर बात मान लेते थे.

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 5 hours ago

Shri Krishna Singh Jayanti
श्री कृष्ण सिंह की जयंती (Etv Bharat)

पटना: बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंहजिन्हें लोग बिहार केसरी के नाम से जानते हैं, उनकी आज 137वीं जयंती है. उनकी जयंती समारोह को राज्य सरकार सरकारी सम्मान के साथ मनाती है. श्रीकृष्ण सिंह की शख्सियत के बारे में यह कहा जाता है कि उनकी बात को देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी नहीं काट पाते थे. आज पूरा बिहार अपने बिहार केसरी की जयंती पर उनको याद कर रहा है.

आधुनिक बिहार के निर्माता: श्री कृष्ण सिंह को लोग श्री बाबू के नाम से भी पुकारते थे. आधुनिक बिहार के निर्माता श्री बाबू ने देश में सबसे पहले बिहार में जमींदारी प्रथा को खत्म किया था. जातिवाद को मिटाने के लिए देवघर के प्रसिद्ध बाबाधाम मंदिर में खुद साथ जाकर दलित श्रद्धालुओं का प्रवेश शुरू करवाया था. उनके शासनकाल में बिहार ने विकास की रफ्तार पकड़ी थी. आजादी के बाद बिहार में जितने भी बड़े उद्योग या शिक्षण संस्थान खुले, वह श्री कृष्ण सिंह के कार्यकाल में ही खुला. बिहार की राजनीति में जब तक वह सक्रिय रहे उन्होंने परिवारवाद को समझा और उसे पास फटकने नहीं दिया.

बिहार केसरी डॉ. श्री कृष्ण सिंह की जयंती (ETV Bharat)

श्री बाबू के कार्यकाल में बिहार का विकास: श्री कृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे. आजादी से पहले 1937 से लेकर 1961 तक वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनके 24 वर्षों के मुख्यमंत्री के काल में बिहार में विकास के अनेक क्राय किए गए. श्री कृष्ण सिंह ने हटिया में भारी उद्योग निगम स्थापित किया. देश की प्रथम बहुद्देशीय सिंचाई विद्युत परियोजना दामोदर नदी घाटी बांध परियोजना का निर्माण उन्हीं की पहल पर हुआ.

उनके कार्यकाल में हुआ कई निर्माण:उन्होंने पहला स्टील प्लांट बोकारो में बनवाया, बरौनी डेयरी की शुरुआत की, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा बनाया. गंगोत्री से गंगासागर के बीच गंगा नदी पर पहला रेल और सड़क पुल राजेंद्र पुल का निर्माण भी कराया. श्री कृष्ण सिंह ने भागलपुर के सबौर, समस्तीपुर के पूसा और रांची में एग्रीकल्चर कॉलेज भी स्थापित किए. श्री बाबू के शासनकाल में ही कोसी प्रोजेक्ट का निर्माण किया गया, नेशनल हाईवे के साथ ही स्टेट हाईवे का जाल बिछाया गया. वहीं पलामू जिले के नेतरहाट बिहार के गरीब मेधावी छात्रों का पहला सरकारी आवासीय विद्यालय खोला गया था.

ऐसे थे बिहार के पहले सीएम श्री कृष्ण सिंह (ETV Bharat)

जयंती पर प्रपौत्र ने किया याद: बता दें कि श्री कृष्ण सिंह के प्रपौत्र अनिल कुमार सिन्हा आज भी अपने दादाजी को याद कर भावुक हो जाते हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने अपने दादा जी से जुड़ी हुई अनेक रोचक बातें साझा की.

सवाल - बिहार केसरी श्री कृष्णा सिंह की आज जयंती है, कितना याद करते हैं अपने बाबा को?

जबाव - बाबा के बारे में मेरे पिता जी बताते थे कि उन्हें खाना का बहुत शौक था. इंसुलिन लगाकर रसगुल्ला खाते थे यही कारण था कि उनका वजन बहुत बढ़ा हुआ था. जब भी टूर पर मुजफ्फरपुर या बेगूसराय जाते थे तो अपने लोगों को बता देते थे कि अरहर की दाल अच्छे से बनाकर रखना. वहां रुक के खाना खाना, लोगों से मिलना यह उनका शौक था. उस समय ट्रांसपोर्ट की उतनी सुविधा नहीं थी, तो पालकी में या बैलगाड़ी पर बैठकर वह क्षेत्र भ्रमण करते थे. आजकल के नेता हेलीकॉप्टर पर बैठकर क्षेत्र में घूमते हैं.

खाने के थे शौकीन (Etv Bharat)

पंडित नेहरू के साथ उनके बहुत अच्छे संबंध थे जब भी कोई किताब नेहरू जी उनको देते थे तो बताते थे कि नेहरू जी हम यह किताब पढ़ चुके हैं. नेहरू जी श्री बाबू को इतना पसंद करते थे कि वह उनको अपने मंत्रिमंडल में गृह मंत्रालय तक का पद देने वाले थे लेकिन दादाजी ने कहा था कि वह बिहार की सेवा करना चाहते हैं. बिहार में जमींदारी आंदोलन को खत्म करने का श्रेय उन्हीं को जाता है. श्री बाबू के कार्यकाल में ही अति पिछड़ों को और दलितों को देवघर के मंदिर में जाने का मौका मिला था.

सवाल - क्या थी उनकी मुहिम?

जबाव - दादा जी दलित एवं पिछड़ों को देवघर स्थित बाबा धाम मंदिर में एंट्री को लेकर आंदोलन कर रहे थे. विनोबा भावे भी यह आंदोलन शुरू कर चुके थे लेकिन देवघर के पंडा के विरोध के कारण वह सफल नहीं हो पाए. पूरा समाज उस समय श्री बाबू के इस आंदोलन के खिलाफ था. श्री बाबू के पिताजी तक को इसे रोकने के लिए कहा गया. घर में पूरे समाज का प्रेशर था लेकिन फिर भी श्री बाबू नहीं माने और हाथ पकड़ कर दलितों को बाबा धाम मंदिर में प्रवेश दिलवाया.

पंडित नेहरू भी मानते थे हर बात (Etv Bharat)

सवाल - कहा जाता है कि श्री बाबू की बात काटने की हिम्मत प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भी को भी नहीं थी?

जवाब - यह सही बात है, बहुत लोगों को नहीं मालूम है कि बरौनी में जो रिफाइनरी है वह केंद्र सरकार बिहार में नहीं देना चाहती थी. बरौनी का उर्वरक फैक्ट्री भी केंद्र सरकार बिहार के बाहर लगाना चाहती थी. श्री बाबू ने नेहरू जी को कहा कि अगर ये बिहार नहीं आएगा तो वह पद से इस्तीफा दे देंगे. केंद्र सरकार के खिलाफ श्री बाबू ने अनशन किया, तब जाकर बरौनी में दोनों कारखाने खोले गए और नेहरू जी को दोनों कारखाना देना पड़ा.

सवाल - बिहार में उद्योगों के क्षेत्र में सबसे ज्यादा विकास श्री बाबू के कार्यकाल में कैसे हुआ?

जवाब -आजादी के बाद देश में कोई बहुत बड़ा फंड नहीं था. देश का जीडीपी बहुत कम था लिमिटेड रिसोर्सेस के बीच बिहार में श्री बाबू ने उद्योग शुरू करने का काम किया. बिहार और झारखंड की उस समय 9 शुगर फैक्ट्री हुआ करती थी. बहरागोड़ा में यूरेनियम का इलाका था. दामोदर घाटी परियोजना, बीआईटी सिंदरी, नेतरहाट सब कुछ उन्हीं के समय में शुरू हुआ.

वहीं अनिल सिन्हा ने कहा कि आज बहुत दुख होता है कि उनके द्वारा शुरू की गई योजना झारखंड में अभी भी चल रही है लेकिन बिहार में सब कुछ बंद हो गया. यहां एक भी फैक्ट्री तक नहीं लग पाई.

बिहार केसरी डॉ. श्री कृष्ण सिंह (ETV Bharat)
सवाल - बिहार के बड़े राजनेताओं के परिवार राजनीति में सक्रिय हैं, आपके बाबा ने इतनी बड़ी राजनीतिक विरासत छोड़ी फिर भी आप राजनीति में क्यों नहीं गए?

जबाव -आज हम लोग श्री बाबू की चौथी पुस्त हैं. बिहार की राजनीति में बहुत सारे मंत्री और मुख्यमंत्री बने कितने लोगों के पास पत्रकार जाकर अभी भी उनसे उनका हल जानते हैं. राज्य में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही बुरी है. उनके पिताजी भी राजनीति में आए थे बिहार सरकार में मंत्री भी बने. आज की राजनीति में चार पुस्त बीतने के बाद भी कोई यह नहीं कह सकता है कि उन लोगों ने कोई गलत काम किया है. समाज सेवा उनके खून में है और पूरी जिंदगी वे लोगों की सेवा करते रहेंगे.

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