जबलपुर :मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की फटकार के बाद भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की मेडिकल रिपोर्ट का डिजिटलीकरण करने के संबंध में हलफनामा पेश किया गया. हाईकोर्ट जस्टिस सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ को सरकार की तरफ से बताया गया कि अगामी 6 माह में डिजिटलीकरण का कार्य पूर्ण हो जायेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने गठित की थी मॉनिटरिंग कमेटी
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2012 में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन सहित अन्य की ओर से दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए भोपाल गैस पीड़ितों के उपचार व पुनर्वास के संबंध में 20 निर्देश जारी किए थे. इन बिंदुओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित कर मॉनिटरिंग कमेटी का गठित की थी. कोर्ट के निर्देश थे "मॉनिटरिंग कमेटी प्रत्येक 3 माह में अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट के समक्ष पेश करेगी. पेश रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे." इससे संबंधित याचिका पर हाईकोर्ट द्वारा सुनवाई की जा रही है.
पिछली सुनवाई में राज्य सरकार ने क्या बताया था
याचिका के लंबित रहने के दौरान मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं का परिपालन नहीं किए जाने के खिलाफ भी अवमानना याचिका 2015 में दायर की गई थी. पिछली सुनवाई के दौरान गैस त्रासदी से प्रभावित मरीजों की मेडिकल रिपोर्ट का डिजिटलीकरण करने के संबंध में सरकार की तरफ से बताया गया था "वर्ष 2014 से पूर्व के मेडिकल रिकॉर्ड बहुत पुराने हैं, इसलिए प्रतिदिन केवल 3000 पृष्ठों को ही स्कैन किया जा सकता है. अनुमान के अनुसार इस कार्य में लगभग 550 दिनों का समय लगेगा."
हाई कोर्ट ने अंतिम कार्ययोजना बनाने के दिए थे निर्देश
युगलपीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था "निर्धारित बिंदुओं पर कार्य पूर्ण करने के प्रति गंभीरता नहीं है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के सचिव तथा निदेशक बीएमएचआरसी को एक सप्ताह में संयुक्त बैठक कर डिजिटलीकरण के लिए अंतिम कार्य योजना तैयार करने निर्देश जारी किये थे." याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से हलफनामा पेश करने हुए बताया गया "अतिरिक्त स्कैनर मशीनों लगाकर छह गैस राहत अस्पतालों में स्कैनिंग क्षमता बढ़ाई गई है."
डिजिटलीकरण के पूरे काम में लगेंगे 6 माह
सरकार ने हाई कोर्ट को बताया "प्रतिदिन 20000 पृष्ठों की स्कैनिंग का कार्य किया जा रहा है. इस प्रकार लगभग 17 लाख पृष्ठों वाले पूरे रिकॉर्ड की स्कैनिंग करने में लगभग 6 महीने का समय लगेगा." युगलपीठ ने अपने आदेश में यह सुनिश्चित करने निर्देश जारी किये हैं "पुराने मेडिकल रिकॉर्ड की स्कैनिंग का कार्य चरणबद्ध तरीके से शीघ्रता पूर्ण किया जाए." याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र के रूप में अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पैरवी की.