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आदिवासी समाज की अनोखी परंपरा 'डंडार विदाई', जानिए-पुरुष व महिलाएं क्या करते हैं - TRIBAL SOCIETY UNIQUE TRADITION

आदिवासी समाज की अनोखी और प्राचीन परंपरा डंडार विदाई के साथ ही 8 माह तक पुरुष डांस नहीं कर सकेंगे. अब महिलाओं की बारी है.

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आदिवासी समाज में ऐसे दी जाती है डंडार विदाई (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 7, 2024, 12:53 PM IST

बैतूल :आदिवासी समाज में आज भी कई परंपराएं जीवित हैं. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है डंडार विदाई. डंडार विदाई परंपरा के तहत इसकी विदाई के बाद पुरुष करीब 8 माह तक डांस नहीं कर सकते. पुरुषों पर डंडार नृत्य करने पर प्रतिबंध लग जाता है. इसके बाद अब डांस करने की बारी आदिवासी समाज की महिलाओं की है. फागुन पर्व से महिलाओं का फागुन डांस शुरू होगा, जोकि एक माह चलेगी.

आदिवासी समाज में ऐसे दी जाती है डंडार विदाई

जनजाति गौरव दिवस समिति के कोषाध्यक्ष भगवत तुमडाम ने बताया "गांव के भगत भुमका गायकी और पुरुष वर्ग जिसमें युवा भी शामिल होते हैं, सभी मिलकर डंडार बनाते हैं. इसके बाद क्षेत्र के 3 से 5 बाजारों में जाकर डंडार नृत्य करते हैं. बाजार में घूम-घूमकर दुकानदारों से सहयोग एकत्रित करते हैं. इस सहयोग में प्राप्त सामग्री से सामूहिक भोज और पूजन की व्यवस्था की जाती है. इसके बाद क्षेत्र की खेड़ापति माता मंदिर में पहुंचकर विधिविधान से पूजा पाठ कर डंडार की विदाई दी जाती है."

आदिवासी समाज की अनोखी परंपरा 'डंडार विदाई (ETV BHARAT)

आखड़ी पर्व पर महिलाओं के डांस पर लगता है प्रतिबंध

डंडार विदाई के साथ ही पुरुषों पर डांस करने पर प्रतिबंध लागू हो जाता है. ये पाबंदी जुलाई माह तक लागू रहती है. अखाड़ी पर्व पर विधि विधान से पूजा पाठ कर डंडार को दोबारा शुरू किया जाता है. इसके बाद पुरुषों पर नाचने का प्रतिबंध समाप्त होता है और पुरुष डंडार लेकर फिर नाचना शुरू कर देते हैं. वहीं इस दौरान आखड़ी पर्व पर महिलाओं के डांस पर प्रतिबंध लग जाता है.

युवाओं ने उठाई परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी

जनजाति गौरव दिवस समिति के सचिव दीपक उइके ने बताया "आदिवासी समाज में डंडार विदाई कई पीढ़ियों से चलती आ रही परंपरा है. इस परंपरा को आज के युवा भी आगे बढ़ा रहे हैं. हमारी कई ऐसी परंपराएं हैं, जो आदिवासियों की पहचान हैं. इन परंपराओं को बनाए रखना आज बहुत जरूरी है. आधुनिकता के कारण कई लोग इन परंपराओं से दूर जा रहे हैं लेकिन यह परंपरा हमें अपनों से जोड़ती है. इसलिए इस परंपरा को जारी रखना युवाओं की जिम्मेदारी है."

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