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दिन में 3 बार स्वरूप बदलती हैं मां रेणुका देवी, अद्भुत है माता से जुड़ी कथा - Betul Chhawal Maa Renuka Dham

शारदीय नवरात्रि पर बैतूल के छावल में स्थित मां रेणुका धाम में उमड़ी भीड़, जानिए इस मंदिर का इतिहास

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 4 hours ago

BETUL CHHAWAL MAA RENUKA DHAM
बैतूल के छावल में स्थित मां रेणुका धाम में उमड़ी भीड़ (ETV Bharat)

बैतूल: आमला ब्लॉक के छावल में प्रसिद्ध मां रेणुका माता का धाम है. नवरात्रि में मां रेणुका के इस मंदिर में मातारानी की कृपा व संकटों से मुक्ति पाने के लिए भक्तजनों का तांता लगा है. वैसे तो माता की महिमा और इस धाम को लेकर कई चमत्कार लोगों के द्वारा बताए जाते हैं, लेकिन इस धाम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मां रेणुका हर दिन तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं.

जानिए मां रेणुका माता का धाम का इतिहास

बैतूल जिले के छावल में रेणुका धाम आस्था का केन्द्र माना जाता है. मंदिर का इतिहास 550 साल पुराना है. छोटी सी पहाड़ी पर बने इस मंदिर में मां रेणुका की स्वंयभू प्रतिमा है. मान्यता है कि हर पहर में मां अपने 3 स्वरूप में दर्शन देती हैं. भोर होते ही नन्हीं बालिका का स्वरूप, तो दोपहर में युवती के स्वरूप में मां के चेहरे का तेज बढ़ जाता है और शाम को मां रेणुका ममतामयी, सौम्य और करुणा भरे रूप में दिखाई देती हैं. मंदिर के पुजारी गणेश पुरी गोस्वामी का दावा है कि वह मां के इस चमत्कार को हर पहर महसूस करते हैं.

बैतूल के छावल में स्थित मां रेणुका धाम में उमड़ी भीड़ (ETV Bharat)

ज्योति का तेल लगाने से ठीक होते हैं कैंसर के मरीज

पुजारी के मुताबिक, नवरात्रि में शक्ति की देवी मां के 3 अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है. मंदिर में 60 साल से अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित है. ग्रामीण सहित बाहर से आने वाले श्रद्धालु मां रेणुका की कृपा के गवाह है. नवरात्र में दूर- दूर से श्रद्धालु माता के दरबार के पास अखण्ड ज्योति जलाते हैं. मां की महिमा अनूठी है. हर भक्त की मां मुराद पूरी करती हैं. मां के दरबार में वर्षों से चल रही अखंड ज्योति का तेल शरीर पर लगाने से कैंसर के मरीज तक ठीक हो जाते हैं. सच्चे मन से मातारानी के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है.''

बैतूल के छावल में स्थित मां रेणुका की अलौकिक प्रतिमा (ETV Bharat)

शारदीय नवरात्र में बढ़ जाती है भक्तों की संख्या

मां रेणुका के मंदिर में वैसे तो साल भर ही भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शारदीय नवरात्र में भक्तों की संख्या और भी बढ़ जाती है. यहां नवरात्र में बड़ा मेला भी आयोजित होता है. मन्नत पूरी होने पर यहां नीम गाड़ा खींचने की परंपरा भी है. छावल गांव के अलावा मां रेणुका महाराष्ट्र के माहूरगढ़, भैंसदेही के धामनगांव, बिसनूर और मासोद गांव में भी हैं. मान्यता है कि सभी जगह मां रेणुका की प्रतिमा का प्राकट्य हुआ है.

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दुकानदारों के लिए नहीं है व्यवस्था

पर्यटन विभाग द्वारा मां रेणुका धाम छावल में लगभग 5 वर्ष पूर्व 42 लाख रुपए की लागत से श्रृद्धालुओं के लिए बैठक व्यवस्था हेतु चबूतरा एवं टीन शेड, रेलिंग सहित अन्य निर्माण कार्य करवाए गए थे. वर्तमान में यहां व्यवस्थित दुकान नहीं लग पाती हैं, जिसके लिए काम्प्लेक्स और टीन शेड सहित पेयजल की उचित व्यवस्था की कमी श्रद्धालुओं को खल रही है.

मां रेणुका धाम की प्राचीन कहानी

भगवान परशुराम की माता रेणुका राजा प्रसेन जीत की पुत्री थी. रेणुका महर्षि जमदग्नि की पत्नी थी. रेणुका के 5 बेटे थे, जिनके नाम रुक्मवान, सुखेन, वसु, विश्वासु और परशुराम थे. रेणुका एक चन्द्रवंशी क्षत्रिय कन्या थी. रेणुका के पिता राजा रेणु ने एक यज्ञ किया था, जिससे उन्हें रेणुका की प्राप्ति हुई थी. रेणुका के पति महर्षि जमदग्नि के पास एक कामधेनू गाय थी, जिसे पाने के लिए कई राजा ऋषि लालायित थे. एक दिन राजा जमदग्नि ने अपने पांचवें पुत्र परशुराम को बुलाया, जो शिव का ध्यान कर रहे थे और उन्हें रेणुका का सिर काटने का आदेश दिया. परशुराम ने तुरन्त अपने पिता कि बात मान ली और अपने फरसे से अपनी मां का सिर काट दिया. जमदग्नि परशुराम की भक्ति और उनके प्रति आज्ञाकारिता से प्रसन्न हुए. परशुराम द्वारा अपनी मां को मारने के अपने पिता के आदेश का पालन करने के बाद उसके पिता परशुराम को वरदान देते हैं. परशुराम ने वरदान के तौर पर अपनी मां को वापस जीवित करने का वरदान मांगा. इसके बाद मां रेणुका फिर से जीवित हो गयी.

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