गोरखपुर : शहर में बंगाली समिति की दुर्गा पूजा 129 वर्षों से विविधता के साथ आयोजित होती चली आ रही है. दुर्गा पूजा में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां दशमी के दिन सिंदूर खेला का भी आयोजन होता है, इसमें महिलाएं बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं. इसकी शुरुआत जिला अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक रहे डॉ योगेश्वर रॉय ने 1895 में की थी.
बंगाली समिति के सचिव अभिषेक चटर्जी बताते हैं कि अस्पताल परिसर में प्रतिमा रूप में देवी दुर्गा की स्थापना कर लोगों ने पूजा पाठ शुरू किया था. बंगाली समाज की अगुवाई में पूजा की शुरूआत हुई थी और आसपास के लोगों ने भी इसमें बढ़कर भाग लिया था, हालांकि इसके बाद वर्ष 1896 में 2 वर्षों तक यह पूजा नहीं हो पाई थी, लेकिन इसके बाद यह फिर प्रारंभ हुई तो पूरे उत्साह के साथ बंगाली समिति की ओर से दुर्गा वाणी के मैदान पर दुर्गा पूजा आयोजित की जाती है. इसकी वजह से शहर के विभिन्न चौराहों पर धीरे-धीरे मूर्तियों की स्थापना का क्रम शुरू हुआ. आज यहां हजारों प्रतिमाओं की स्थापना होती है, जहां श्रद्धालु बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. बंगाली समिति के सचिव अभिषेक चटर्जी कहते हैं कि डॉ योगेश्वर राय ने हम लोगों को जो परंपरा दी है, उसे पूरी निष्ठा के साथ आज भी संभाला जा रहा है.
बंगाली समिति के सचिव अभिषेक चटर्जी बताते हैं कि मूर्ति की स्थापना से न सिर्फ बंगाली समाज इस पूजा पाठ से जुड़ा, बल्कि लोगों में भी इसको लेकर जागृति पैदा हो गई. इसके बाद एनई रेलवे बालक इंटर कॉलेज में दूसरी प्रतिमा की स्थापना की गई. धीरे-धीरे मूर्तियों की स्थापना का क्रम यहां शुरू हुआ और मौजूदा समय में जिले में 3994 मूर्तियां स्थापित की गई हैं. उन्होंने कहा कि जिला अस्पताल परिसर से इस प्रतिमा को एमएसआई इंटर कॉलेज और जुबली कॉलेज के मैदान में रखा गया. कई वर्षों तक यह परंपरा वहां चली. लोगों का उत्साह और उमंग इससे विशेष जुड़ता जा रहा था. 1928 में स्थाई बंगाली समिति की स्थापना हुई और बड़ा आयोजन नखास चौक के पास आयोजित किया गया.