अजमेर.अजमेर में सिलौरा ग्राम पंचायत के निकट जंगल क्षेत्र में पीतांबर की गाल नामक एक सुंदर प्राकृतिक स्थल है, जहां भगवान श्रीनाथजी की बैठक तीर्थ के रूप में पूजित है. जब औरंगजेब हिंदू मंदिरों को तोड़ रहा था, तब ब्रज से श्रीनाथजी को मेवाड़ लाया गया था. इस दौरान पीतांबर की गाल ही वो स्थान है, जहां श्रीनाथजी के रथ का पहिया थम गया था. श्रीनाथजी बसंत पंचमी से ढोल उत्सव तक यही विराजे थे और यही आसपास के ग्रामीणों ने श्रीनाथ जी के दर्शन कर फाग खेला था. यानी नाथद्वारा पहुंचने से पहले श्रीनाथजी इस स्थान पर होली खेल कर गए थे. वहीं, ये मनोहर स्थल कृष्ण भक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है. ऐसा आज भी माना जाता है कि बसंत पंचमी से ढोल उत्सव तक श्रीनाथजी आज भी यहां विराजते हैं.
यहां मौजूद हैं प्रभु पड़ाव के कई साक्ष्य :अजमेर शहर से 28 किलोमीटर की दूरी पर सिलौरा ग्राम पंचायत के निकट पहाड़ी की तलहटी में ये मनोहर प्राकृतिक स्थल है. यह पवित्र स्थान पीतांबर की गाल के नाम से विख्यात है. किशनगढ़-उदयपुर हाइवे से पितांबर की गाल की दूरी 3 किलोमीटर है. इस स्थान पर किसी भी दुपहिया या चौपहिया वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां तक पहुंचने के लिए गांव से सीसी रोड सीधे मंदिर तक जाती है. गांव के बीच से होकर पीतांबर की गाल पहुंचने से पहले एक गेट आता है और आगे चलने पर हल्की चढ़ाई मिलती है. श्रीनाथजी की बैठक से पहले नीचे आश्रम और हनुमान मंदिर है. यहां दर्शन और आशीर्वाद पाने के बाद सामने पहाड़ी से सटे मार्ग के जरिए श्रीनाथजी की बैठक तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.
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यहां से 5 मिनट पैदल चलने पर पीतांबर की गाल में श्रीनाथजी की बैठक है, जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं. यही पर श्रीनाथजी का 42 दिनों तक पड़ाव रहा था. भीतर मंदिर में आज भी यहां श्रीनाथजी मौजूद है और उनके शयन के लिए खाट लगी है. इसी स्थान के सीधे हाथ की ओर सात कदंब के वृक्ष हैं, जो श्रीनाथजी के 42 दिन के पड़ाव के साक्ष्य हैं. ऐसा माना जाता है कि जहां भी भगवान श्री कृष्ण के प्राचीन मंदिर हैं, वहां आसपास कदंब के पेड़ जरूर होते हैं. भगवान को कदंब के पेड़ से काफी लगाव था. इसलिए कदंब के पेड़ को कृष्ण भक्त पवित्र मानते हैं और उसके दर्शन करते हैं.
पीतांबर की गाल इसलिए हुई विख्यात :मुगल बादशाह औरंगजेब जब ब्रज और मथुरा में मंदिरों को तुड़वा रहा था, तब श्रीनाथजी की प्रतिमा को सुरक्षित ब्रज से मेवाड़ लाया गया. बताया जाता है कि इस मार्ग से होकर ही रथ में विराजे श्रीनाथजी मेवाड़ जा रहे थे, तभी इस स्थान पर उनके रथ का पहिया थम गया. काफी प्रयासों के बाद भी पहिया नहीं हिला. इसके बाद पीतांबर की गाल में ही श्रीनाथजी ने पड़ाव डाल दिया था. समीप ही प्राकृतिक जल स्त्रोत, कदंब के पेड़ भी मौजूद थे, जो पड़ाव के लिए उपयुक्त स्थान था. इसके अलावा पास में गांव भी था. आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति गांव से हो जाया करती थी. मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि बसंत पंचमी से होली तक श्रीनाथजी यही विराजमान रहे थे. उन्होंने बताया कि मान्यता है कि इन 42 दिनों में श्रीनाथजी आज भी यहां निवास करते हैं. होली के अवसर पर आसपास के ग्रामीणों के साथ यहां श्रीनाथजी ने फाग खेली थी. यानी होली यही मनाई थी. उन्होंने बताया कि होली के पर्व पर आज भी यहां ग्रामीण फाग खेलकर इस उत्सव को मनाते हैं.