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बालाघाट में नजर आया आदिवासी कल्चर, नाच गाने के साथ निकला चल समारोह, क्या है भुजरिया पर्व - Balaghat Bhujariya celebration

बालाघाट के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बड़े ही धूमधाम से भुजरिया पर्व मनाया गया. इस पर्व के अवसर पर महिलाएं पारंपरिक गीतों के माध्यम से प्रकृति प्रेम और खुशहाली का वर्णन करती हैं.

BALAGHAT BHUJARIYA CELEBRATION
बालाघाट में भूजारिया की धूम (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 21, 2024, 1:12 PM IST

बालाघाट: प्रकृति प्रेम और खुशहाली का पर्व भुजरिया यूं तो बुंदेलखण्ड में प्रमुखता से मनाया जाता है, लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में भी इसकी धूम कुछ कम नहीं होती. आदिवासी वनांचल क्षेत्रों में यह पर्व बड़े ही धूमधाम से हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है. भुजारिया पर्व का आदिवासी क्षेत्र से अलग ही जुड़ाव है. इसे कजलिया भी कहते हैं.

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में मना भुजरिया पर्व (ETV Bharat)

क्यों मनाया जाता है यह पर्व

अच्छी बारिश, अच्छी फसल, और सुख समृद्धि की कामना के लिए रक्षा बंधन के दूसरे दिन भुजरिया मनाया जाता है. इसे कजलियों का पर्व भी कहा जाता है. मंगलवार को भुजरियों का पर्व बडे़ ही धूमधाम से मनाया गया. कजलिया पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है. आईये जानते हैं इस पर्व के बारे में कि आखिरकार आदिवासी बाहुल्य अंचलों में कजलियां (भुजरिया) पर्व कैसे मनाया जाता है.

भुजारिया पर्व पर नृत्य करते पुरूष (ETV Bharat)

यह है मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसकी कहानी राजा आल्हा उदल की बहन से भी जुड़ी हुई है. बताया जाता है कि इस पर्व का प्रचलन राजा आल्हा के समय से है. कहा जाता है कि आल्हा कि बहन चंदा श्रावण मास में ससुराल से मायके आई तो नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था. महोबा के सपूत आल्हा उदल और मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएं बुंदेलखण्ड की धरती पर बड़े चाव से सुनी व समझी जाती है.

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में मना भुजरिया पर्व

श्रावण मास के अंतिम दिन रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरियों का पर्व बालाघाट जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में धूमधाम से मनाया गया. जहां पर पारम्परिक गीतों के साथ साथ आदिवासियों की खास प्रस्तूति शैला नृत्य की अनुपम झलक देखने मिली. आदिवासियों द्वारा शैला नृत्य खुशहाली की कामना के साथ किया जाता है. बताया जाता है कि इस नृत्य की प्रस्तूति से लोग अपनी खुशियों का इजहार करते हैं. इस नृत्य के माध्यम से आपसी भाईचारा व प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आराध्य देव से अच्छी बारिश अच्छी फसल और सुख समृध्दि की कामना की जाती है.

कजलिया पर महिलाओं ने निकाला चल समारोह (ETV Bharat)

आदिवासी लोग भुजारिया पर गाते हैं गीत

बता दें कि, एक सप्ताह पहले टोकनी में भुजरिया बोई जाती है. इसके बाद रक्षाबंधन के दूसरे दिन इसका विसर्जन किया जाता है. इसी भुजरियों के विसर्जन से ठीक पहले महिला और पुरुष नृत्य करके अपनी खुशहाली का संदेश देते हैं. जिसके बाद पारम्परिक गीतों के गायन के साथ भुजरियों का विसर्जन किसी नदी या तालाब में किया जाता है. इसके बाद सभी लोग एक दूसरे को भुजरियां देकर शुभकामनाएं देते हैं.

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भुजरिया की मान्यता पर आदिवासी नेता की जुबानी

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से भुजरियों के पर्व पर पूर्व विधायक दरबू सिंह उईकेने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि "ये पर्व परम्परागत तरीके से प्राचीन काल से मनाया जा रहा है. इसे श्रावण मास के अंतिम दिन राखी के बाद मनाया जाता है. यह मुख्यतः किसानों का त्योहार माना जाता है. किसान जो अब खरीफ की फसल लगा चुका है और आने वाला सीजन जो होगा वो रबी की फसल का होगा, तो किसान ने भुजरिया में गेहूं का दाना बोकर ये बता दिया है कि अब आने वाला सीजन गेहूं यानि रबी का है. इस भुजरियों के माध्यम से यही संदेश देने का काम किया जाता है. देखा जाए तो इसका महत्व किसानों से जुड़ा हुआ है और इसीलिए इसे गांव में धूमधाम से मनाया जाता है."

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