रीवा राजघराने की 500 साल पुरानी परंपरा खत्म, रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही इतिहास बदला - रीवा राजघराने की परंपरा बदली
अयोध्या के मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही रीवा राजघराने की 500 साल पुरानी परंपरा बदल गई. रीवा राजघराने में रखे सिंहासन में 500 वर्षों से राजाधिराज भगवान राम विराजमान हैं. सोमवार को श्री राम चांदी के रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले. Rewa royal family tradition
रीवा।अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो, इसके लिए सनातनी पिछ्ले 500 वर्षों से इंतेजार कर रहे थे. रीवा रियासत के राजघराने का भी भगवान राम से गहरा नाता है. वनवास के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्षमण जब राजपाठ छोड़कर निकले और चित्रकूट पहुंचे तो भगवान राम ने समूचे विंध्य का इलाका अनुज लक्ष्मण को सौंपा था. रीवा रियासत के बघेल राजवंश ने 500 साल पहले भगवान लक्ष्मण को अपना राजा मानते हुए उनका अनुसरण किया और भगवान राम को अपने सिंहासन यानी गद्दी पर विराजमान किया. खुद उनके सेवक बन गए.
लक्ष्मण को सौंपा था इलाका
बघेल वंश के राजाओं ने 200 साल बांधवगढ़ और 300 साल रीवा में राज किया. विंध्य में घने जंगलों के बीच बांधवगढ़ मौजूद है. वनवास के दौरान भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को जमुनापार से लेकर दक्षिण तक का पूरा इलाका सौंपा था और इसी के चलते बांधवगढ़ में वनवासी राम की बड़ी आस्था है. इसी मान्यता के चलते बघेल रियासत में राजाधिराज को गद्दी दी गई और खुद उसके सेवक बने. समूचे देश में रीवा रियासत ही एक ऐसी रियासत है जहां महाराज गद्दी में कभी भी नहीं बैठे, बल्कि राजाधिराज के विग्रह को बैठाया है.
अब बदली परंपरा
500 वर्षों के इतिहास में पहली बार आज यह परंपरा बदल दी गई. 22 जनवरी को राजाधिराज नगर भ्रमण पर निकले. बघेल राजवंश देश की पहली एसी रियासत है जहां के राजा और महाराजा कभी भी सिंहासन पर नही बैठे. तब से लेकर अब तक इस घराने की राजगद्दी पर राजाधिराज भगवान राम विराजमान हैं और मात्र दशहरे के दिन विधिवत राजसी अंदाज में पूजा अर्चना के बाद चल समारोह के साथ चांदी के रथ पर सवार होकर राजिधिराज भगवान राम नगर भ्रमण पर निकलते हैं.
भगवान राम की आस्था में रमे रीवा राजघराने ने आज 500 वर्षो पुरानी परंपरा बदल दी. बघेल राजवंश के 500 वर्षों के इतिहास में महाराज ने राजाधिराज भगवान श्रीराम को राजगद्दी पर बैठाया है. बघेल रियासत के पित्त पुरुष व्याघ्रदेव उर्फ बाघ देव गुजरात से चलकर आए विंध्य में आए और उन्होंने यह जानकारी दी थी कि यह समूचा इलाका भगवान राम के अनुज लक्ष्मण का था. चित्रकूट के आसपास इन्होंने अपना ठिकाना बनाया और राज्य का विस्तार करते हुए बांधवगढ़ तक पहुंच गए. पुष्पराज सिंह ने बताया कि रियासत की 37 वीं पीढ़ी भी इस परंपरा का निर्वाह करती आ रही है. अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ ही रीवा रियासत में खुशी मनाई जा रही है. पहली बार राजाधिराज को दूसरी बार नगर भ्रमण के लिए निकले.