सागर: दुनिया में भारत इकलौता देश है, जहां पर शेर और बाघ दोनों पाए जाते हैं. अगर एशियाई शेर की बात करें, तो कभी काठियावाड़ क्षेत्र इनका ठिकाना हुआ करता था. जो एमपी के मालवा, बुंदेलखंड और महाकौशल तक फैला हुआ था. लेकिन एमपी में पिछले 173 साल से शेर नहीं देखा गया है. जानकार बताते हैं कि आखिरी शेर 1851 में बुंदेलखंड के सागर में देखा गया था. सागर के पहले जबलपुर और प्रयागराज रेलवे ट्रैक पर एक मरा हुआ शेर मिला था. इसके बाद पिछले 173 सालों से इनकी दहाड़ सुनने को नहीं मिली है.
क्यों बेहद खास है एशियाटिक लायन
एशियाटिक लायन (एशियाई शेर) को भारतीय शेर के नाम से भी जाना जाता है, जो प्रमुख रूप से सिर्फ भारत में पाया जाता है. पहले ये पश्चिम और पूर्व मध्य एशिया में पाए जाते थे. लेकिन प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण ये विलुप्त प्राय हो गए. IUCN (International Union for Conservation of Nature) अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इसे विलुप्त प्राय मानते हुए रेड लिस्ट में रखा है. एशियाटिक लायन भारत में पश्चिम बंगाल व मध्य प्रदेश में पाए जाते थे. लेकिन इनका ठिकाना अब सिर्फ गुजरात तक सिमट कर रह गया है.
नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ. एए अंसारी (Etv Bharat) गिर राष्ट्रीय उद्यान वर्तमान में एशियाई शेर का एकमात्र आवास
गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्य वर्तमान में एशियाई शेर का एकमात्र आवास है. हालांकि एक जगह सिमटने के कारण एशियाटिक लायन को महामारी, प्राकृतिक आपदा, शिकार और मानव से संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है. इनके संरक्षण को लेकर वन्यजीव प्रेमी और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के चिंता जताने के बाद केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एशियाई शेर संरक्षण परियोजना शुरू की थी. जो 2018 से 2021 तक संचालित रही. इसके तहत एशियाई शेरों को होने वाले रोग के नियंत्रण, इलाज और वैज्ञानिक प्रबंधन का प्रयास किया गया है.
आखिरी बार सागर में नजर आया एशियाई शेर
नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ. एए अंसारी बताते हैं कि एशियाटिक लायन आज सिर्फ गुजरात में सिमट कर रह गया है. लेकिन कभी एमपी में भी उसका ठिकाना था. खासकर बुंदेलखंड और महाकौशल अंचल में शेर पाए जाने के प्रमाण एक एडवर्ड पर्सी स्टेबिंग द्वारा भारत की वाइल्ड लाइफ पर लिखी गई किताब में दिए गए हैं.
उन्होंने "द फॉरेस्ट ऑफ इंडिया - 2 " में उल्लेख किया है कि मध्य प्रदेश में आखिरी बार एशियाटिक लायन सागर में 1851 में देखा गया था. सागर के पहले जबलपुर इलाहाबाद(प्रयागराज) रेलवे ट्रैक पर मरा हुआ मिला था. स्टेबिंग ब्रिटिश काल के वन्य अधिकारी और कीटविज्ञानी थे. उन्हें वनों और वन संपदा की काफी जानकारी थी. इतना ही नहीं वे वनों के उजड़ने और रेगिस्तान में बदलने की भविष्यवाणी के लिए जाने जाते थे.