अशोकनगर : छोटे बच्चों के लिए मोबाइल टाइम पास और मनोरंजन का ऐसा साधन बन गया है, जो उन्हें अपने मार्ग से भटका रहा है. छोटे-छोटे बच्चे बाहर खेल कूद करने की बजाए आजकल मोबाइल स्क्रीन पर व्यस्त नजर आते हैं, जो उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. लेकिन अशोकनगर के दाउदी बोहरा समाज के बच्चे मोबाइल को 'बम' की तरह मानते हैं, और उससे दूरी बनाकर रखते हैं.
मोबाइल चलाना तो दूर, बच्चे मोबाइल को हाथ तक नहीं लगाते. इस आर्टिकल में जानें इन बच्चों की मोबाइल की लत छोड़ने की पूरी कहानी.
मोबाइल की लत से दूर बोहरा समाज के बच्चे
दरअसल, कुछ दिनों पहले दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉक्टर सैयदना अली कदर मुफद्दर सैफुद्दीन ने एक संदेश देते हुए फरमान जारी किया था. इस संदेश में उन्होंने दाऊदी बोहरा समाज से अपील करते हुए कहा कि 0 से 15 साल तक के बच्चों को उनके परिजन मोबाइल फोन से दूर रखें. इसके साथ ही उन्होंने समाज के पदाधिकारियों को इन परिवारों के बच्चों की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी भी सौंप दी. लिहाजा अब अशोकनगर जिले में रहने वाले बोहरा समाज के 18 परिवार के बच्चे मोबाइल चलाना तो दूर बल्कि उनसे हाथ भी लगाने से परहेज करते हैं.
18 परिवार के 90% बच्चों ने छोड़ा मोबाइल
अशोकनगर में दाऊदी बोहरा समाज के 18 परिवार रहते हैं. इन परिवारों में 0 से 15 साल तक के जो भी बच्चे हैं, उन्हें धर्मगुरु के संदेश के आधार पर मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाया गया है. इस खास पहले के तहत समाज के 90% बच्चों ने मोबाइल से पूरी तरह से तौबा कर ली है. इन बच्चों को मोबाइल से दूरी बनाने में परिजनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वहीं अब बच्चों के मनोरंजन के लिए सोशल एक्टिविटी और आउटडोर खेलों का सहारा लिया जा रहा है. इससे उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों बेहतर होगा.
मोबाइल छोड़ने का कारण खुद बताते हैं बच्चे
बोहरा समाज के बच्चों ने मोबाइल छोड़ने को लेकर "ईटीवी भारत" को कई तर्क दिए. बच्चों ने कहा, '' मोबाइल एक बम है. जितना बड़ा मोबाइल, उतना ही बड़ा ये बम है, इसलिए हमें मोबाइल से दूर रहना चाहिए.'' इसके अलावा बच्चों ने बताया कि मोबाइल देखने से हमारी आंखें खराब हो जाती हैं. अगर हम लगातार मोबाइल देखते रहेंगे तो इन्हें निकलवाना भी पड़ सकता है. जहीरा कहती हैं, '' मैंने मोबाइल हाथ में रखना बंद कर दिया है. मैं अपनी फिजिकल एक्टिविटीज करती हूं. जैसे वॉलीबॉल, फुटबॉल एंड बास्केटबॉल, बैडमिंटन.
मोबाइल की लत छोड़ने में पहले परेशानी, अब सब बेहतर
क्लास 2 में पढ़ने वाले मुकद्दल सैफी की मां नसरीन सैफी ने बताया, '' पहले तो धर्मगुरु के संदेश की वीडियो बच्चों को दिखाई. फिर हमने बच्चों को समझाइश दी, कि हमें मोबाइल बिल्कुल नहीं चलाना. फिर बच्चा मान गया. फिर हम लोगों ने खुद भी मोबाइल छोड़ बच्चों के साथ टाइम स्पेंड किया. उनके पापा जैसे ही दुकान से आते हैं, तो बच्चों के साथ क्रिकेट, बैडमिंटन सहित अन्य सोशल गेम खेलते हैं. बच्चों को ड्राइंग में बहुत इंटरेस्ट है, इसलिए आर्ट की तरफ इसका रुझान कर दिया. धीरे-धीरे मोबाइल से बच्चे को बिल्कुल दूर कर दिया.''