रांचीः वन संपदा को अपना सर्वस्व मानने वाले जनजातियों की कला कौशल को आप देखकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे. जंगल में वर्षा और जंगली जानवरों से बचाव के लिए पेड़ के पत्तों से खास तरह का पहनावा जनजाति महिलाएं तैयार करती हैं. झारखंड के सुदूरवर्ती गांव से महिला महोत्सव में शामिल होने के लिए पहुंचीं आदिवासी महिलाओं से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने इसकी उपयोगिता की विस्तार से जानकारी दी.
सखुआ के पत्ते से बनाया जाता है खास पहनावा
ईटीवी भारत से बात करते हुए सुकनी असुर कहती हैं कि यह खास पहनावा सखुआ के पत्ते से बनाया जाता है. इसे जनजाति चुकरु कहते हैं. चुकरु बारिश में वाटरप्रूफ की तरह काम करता है. घने जंगल और खेतों में काम करने के दौरान चुकरु बारिश से तो बचाता ही है, साथ ही जंगली जीवों से भी रक्षा करता है.
चुकरु बनाने का तरीका भी है खास
चुकरु बनाने के लिए पहले जंगल में पत्ता चुनकर लाया जाता है. उसके बाद उसकी अच्छी तरह से सफाई कर पत्तों को चादरनुमा कई परतों में तैयार किया जाता है. खास बात यह है कि इस चुकरु में पेड़ के पत्ते के सिवा किसी भी चीज का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसे बनाने की भी कला होती है, जो सभी महिलाएं नहीं जानती हैं. इस वजह से इसकी मांग ग्रामीण क्षेत्र में काफी होती है. वहीं चुकरु की कीमत 1000 रुपये तक होती है. सुकनी असुर के अनुसार चुकरु तीन साल तक खराब नहीं होता है.
गुंगू और ढेपे भी तैयार करती हैं आदिवासी महिलाएं