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आईआईटीएफ में आंध्र प्रदेश पवेलियन में उत्पादों के साथ दिखी वहां की संस्कृति, वसुंधरा ने बताया 'गांव से पवेलियन' तक का सफर

-500 वर्ग फुट में बनाया गया पवेलियन. -ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अलॉट किए गए स्टॉल. -बड़ी संख्या में स्टॉल पर पहुंच रहे लोग.

आईआईटीएफ में आंध्र प्रदेश पवेलियन पर दिख रही राज्य की संस्कृति
आईआईटीएफ में आंध्र प्रदेश पवेलियन पर दिख रही राज्य की संस्कृति (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : 4 hours ago

नई दिल्ली:दिल्ली के भारत मंडपम में इन दिनों 43वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले का आयोजन किया गया है, जहां रोजाना हजारों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. इस मेले में विभिन्न राज्यों के पवेलियन भी बनाए गए हैं, जो अपने उत्पादों व संस्कृति को प्रदर्शित कर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं. इसमें आंध्र प्रदेश पवेलियन पर काफी संख्या लोग पहुंचकर वहां की संस्कृति और उत्पादों से रू-ब-रू हो रहे हैं. खास बात यह है कि इस बार यहां सभी स्टॉल ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अलॉट किए गए हैं.

आंध्र प्रदेश पवेलियन में पवेलियन डायरेक्टर सुधाकर ने बताया, इस बार 500 वर्ग फुट पवेलियन लगाया गया है. इसमें कुल 30 स्टॉल लगाए गए हैं. हमने 'विकसित भारत 2047' की थीम के साथ सारा इंतजाम किया है. ग्रामीण क्षेत्र के जिन लोगों को स्टॉल अलॉट किए गए हैं वो सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से जुड़े हैं. उन्होंने कई उत्पाद लाकर यहां प्रदर्शित किए हैं. मुख्य रूप से पांच क्षेत्र इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर, फिशरीज, हॉर्टी कल्चर और सी प्रोडक्ट्स से लोगों को शामिल किया गया है. साथ ही आंध्र प्रदेश की ग्रामीण संस्कृति को दर्शाने वाले स्टॉल भी लगाए गए हैं.

आंध्र प्रदेश पवेलियन में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने लगाए स्टॉल (ETV Bharat)

एक से लेकर 'आठ' तक का सफर:आंध्र प्रदेश के नंदयाल गांव से अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में पहली बार स्टॉल लगाने वाली वसुंधरा ने अपने गांव से आईआईटीएफ तक आने के सफर के बारे में बताया. उन्होंने कहा, पांच वर्ष पहले जूट के बैग बनाने का काम शुरू किया था. तब मैं इस काम में अकेली थी, लेकिन आज मेरे साथ आठ लोग काम करते हैं. ट्रेड फेयर में कई बड़े विक्रेता आए हुए हैं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि यहां इन लोगों के साथ हिस्सा लेने का मौका मिलेगा.

परिवार का मिला भरपूर सपोर्ट: उन्होंने बताया, मैंने एमएससी बायोटेक से पढ़ाई की है. मेरे ससुराल वाले नहीं चाहते थे कि मैं जॉब करूं. लेकिन, मैंने इसका रास्ता निकाला और गांव में एक छोटे संस्थान में 10 दिन की ट्रेनिंग ली. इसके बाद मैंने जूट के बैग्स बनाना शुरू किया और पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज परिवार के सभी लोग मेरे काम से खुश हैं. गांव में मेरे बच्चों की देखभाल मेरे पति और ससुर ही करते हैं. सभी के सपोर्ट सपोर्ट से ही मैं यहां तक आ पाई हूं.

आंध्र प्रदेश पवेलियन में लगाई गई तिरुपति बालाजी की मूर्ति (ETV Bharat)

बहू की कामयाबी से सास गौरवान्वित:वहीं वसुंधरा के साथ आईं उनकी सास राम सुगना ने नम आंखों के साथ बताया, मैं कभी गांव से बाहर नहीं आई. बहू के साथ दिल्ली आकर काफी अच्छा लग रहा है. यहां इतने सारे लोग आए हैं, देख के बहुत अच्छा लग रहा है. मैं बहुत खुश हूं. वसुंधरा ने आगे कहा, मुझे बेहद खुशी है कि मैं अपने कमाए हुए पैसों से यहां अपनी सास के साथ आई हूं.

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