कोरबा :जिले केपाली का शिव मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है. इस शिव मंदिर का निर्माण 1200 साल पहले हुआ था. जितना पुराना इस शिव मंदिर का इतिहास है, उतना ही अटूट यहां आने वाले शिव भक्तों की आस्था है. राज्य भर से लोग प्राचीन शिव मंदिर में दर्शन करने यहां आते हैं. भारतीय संस्कृति और यहां के राजा-महाराजाओं की गौरवशाली विरासत का ये प्राचीन शिव मंदिर जीता जागता प्रमाण है. खास तौर पर सावन के महीने में राज्य भर से भक्त यहां आते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं.
गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक :कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर पाली स्थित है. पाली का शिव मंदिर, यहां के शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. लोगों का मानना है कि यहां आने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. एक किवदंती के अनुसार मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं. शिवमंदिर के स्थापत्यकला के अनुसार, गर्भगृह में सिर्फ एक ही शिवलिंग होना चाहिए. ऐसे में विशेषज्ञ अनुमान यह है कि प्राचीन काल में युद्ध के समय दो मंदिर नष्ट हो गए होंगे. इसी वजह से तीन शिवलिंग एक ही मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है.
पाली के शिव मंदिर का गौरवशाली इतिहास : आज करीब 1200 साल पहले 9वीं शताब्दी में बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य द्वारा प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था.
यह राजा विक्रमादित्य की पूजा स्थली थी. इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है. जिसपर खूबसूरत मूर्ति कला का नायाब नमूना देखने को मिलता है.
राजा विक्रमादित्य ने कराया था मंदिर का निर्माण : जिले के पुरातत्व मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री बताते हैं, "पत्थर पर उकेरी गई मूर्तियों का आर्किटेक्चर अबु पहाड़ियों के जय मंदिरों, सोहगपुर और खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर जैसा भी है. 9वीं शताब्दी में बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य ने इसका निर्माण कराया. जबकि 11वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासक जाज्वल्य देव प्रथम ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. विक्रमादित्य को महामंडलेश्वेर मालदेव के पुत्र जयमेयू के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर का लगभग 870 ईस्वी में शुरू किया गया था. इसके करीब 30 साल 900 ईस्वी में इसका काम पूरा हुआ था."