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काशी विश्वनाथ मंदिर में आज निभाई जाने वाली इस प्राचीन परंपरा को लेकर अलग-अलग मत, जानिए - Kashi Vishwanath temple

सावन मास के अंतिम सोमवार को बाबा के पंचबदन चल प्रतिमा (varanasi news) का झूले पर रखकर विशेष शृंगार किया जाता है. इसको लेकर मंदिर प्रशासन और महंत परिवार का अलग-अलग मत है.

काशी विश्वनाथ मंदिर में प्राचीन चल प्रतिमा परंपरा
काशी विश्वनाथ मंदिर में प्राचीन चल प्रतिमा परंपरा (Photo credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 19, 2024, 7:21 AM IST

वाराणसी : जिले के काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन और महंत परिवार एक बार फिर परंपरा निर्वाह को लेकर अलग-अलग तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं. दरअसल, मामला यह है कि सावन मास के अंतिम सोमवार को बाबा के पंचबदन चल प्रतिमा का झूले पर रखकर विशेष शृंगार किया जाता है. महंत परिवार में दो लोग दावा कर रहे हैं कि सोमवार को पंचबदन चल प्रतिमा मंदिर प्रांगण के बाहर से विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश करेगी, वहीं मंदिर प्रशासन का कहना है कि कोई भी बाहर से प्रतिमा मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं करेगी, जिसे लेकर अब संशय की स्थिति बनी हुई है.

मंदिर प्रशासन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है. जिसमें कहा गया है कि श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार के संबंध में पंचबदन चल रजत प्रतिमा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में लाए जाने के लिए मंदिर प्रशासन को दो पक्षों द्वारा अलग-अलग पत्र प्रेषित किए गए हैं. पर्वों पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती है. धाम काॅरिडोर निर्माण से पूर्व मंदिर क्षेत्र में स्थित स्थानीय चल प्रतिमा का प्रयोग शोभायात्रा के लिए किया जाता था. काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवारों द्वारा कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा किया जाता है. जारी विज्ञप्ति के अनुसार, कहा गया है कि दो तीन वर्षों तक स्व. कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर मंदिर न्यास द्वारा आपत्ति नहीं की गई, हालांकि उनके भाई लोकपति तिवारी ने हमेशा इस पर आपत्ति की.


विज्ञप्ति के अनुसार, कुलपति तिवारी की हाल ही में हो गई. मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी व दूसरे पक्ष से लोकपति तिवारी द्वारा अलग-अलग पत्र इस कार्यालय में प्रेषित किए जाने से यह संज्ञान में आया है कि इस परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व शृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपस में विवाद है. दोनों पत्रों में उभय पक्ष द्वारा मूल प्रतिमा के कब्जे अथवा परम्परा के असली दावेदार होने के परस्पर विरोधाभासी दावे किये गये हैं, इसके लिए दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट केस भी लड़ रहे हैं. कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत एक तरफ उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी द्वारा इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि उनके चाचा लोकपति तिवारी की ओर से बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा किया जा रहा है. जारी विज्ञप्ति के अनुसार, विधिक परीक्षण करने पर यह निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी.


जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ऐसे किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है. दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है तथा इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होती है. साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है. मंदिर न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं, जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा. अतः उपरोक्त वर्णित तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में काशी विश्वनाथ धाम क्षेत्र के भीतर ही काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा मंदिर की स्वयं की चल प्रतिमा से श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला शृंगार का परम्परागत निवर्हन किया जायेगा. इसकी पूरी तैयारी की जा चुकी है. ट्रस्ट के विद्वान अध्यक्ष एवं विद्वतजन की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी.

इस आयोजन के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा शोभायात्रा के नाम पर किसी बाहरी पक्ष द्वारा अपनी मूर्ति से कोई समानान्तर व्यवस्था करने का कोई भी प्रयास मंदिर द्वारा निर्धारित व्यवस्था के विरुद्ध होगा. यदि कोई व्यक्ति अपने घर की किसी मूर्ति या उसकी पूजा को मंदिर से संबंधित बताता है तो यह पूरी तरह से भ्रामक है. मंदिर न्यास का बाहरी मूर्तियों या किसी के घर व परिवार द्वारा की जा रही उनकी पूजा से कोई सरोकार नहीं है. मंदिर न्यास द्वारा सावन के अंतिम सोमवार 19 अगस्त को पूर्व से भी भव्य रूप से अपनी स्वयं की चल प्रतिमा के द्वारा बाबा विश्वनाथ के झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा. भविष्य में भी ऐसे सभी चल प्रतिमा संबंधी त्योहार मंदिर न्यास द्वारा स्वयं की मूर्तियों द्वारा ही निर्वहन किए जाएंगे.



काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत पं. वाचस्पति तिवारी ने बताया कि जिस तरह से उनके पूर्वजों ने मंदिर से जुड़ी परंपराओं का निर्वाहन किया, उसी क्रम में बाबा विश्वनाथ के झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वाहन किया जाएगा. श्रावण पूर्णिमा पर बाबा की पंचबदन सपरिवार प्रतिमा को विश्वनाथ मंदिर में झूले पर विराजमान कराये जाने के पहले महंत आवास पर बाबा का झांकी दर्शन होगा. टेढ़ीनीम स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर बाबा विश्वनाथ की पंचबदन प्रतिमा का विधि-विधान पूर्वक पूजन अर्चन किया जाएगा. महंत आवास पर मध्याह्न 12:00 बजे से शाम चार बजे तक झांकी के दर्शन होंगे. इस दौरान शिवांजलि के अंतर्गत भक्ति संगीत का कार्यक्रम होगा.

उन्होंने बताया कि इसके उपरांत परंपरानुसार मंदिर के अर्चक और महंत परिवार के सदस्य बाबा की पंचबदन प्रतिमा को सिंहासन पर विराजमान करके टेढ़ीनीम से साक्षीविनायक, ढुंढिराजगणेश, अन्नपूर्णा मंदिर होते हुए विश्वनाथ मंदिर तक ले जाएंगे. इस दौरान बाबा का विग्रह श्वेत वस्त्र से ढंका रहेगा. श्रावण पूर्णिमा (19 अगस्त) पर मंदिर की स्थापना काल से चली आ रही लोक परंपरा के अंतर्गत बाबा को माता पार्वती और भगवान गणेश के साथ झूले पर विराजमान कराया जाएगा. काशी विश्वनाथ मंदिर में झूलनोत्सव सायंकाल साढ़े पांच बजे के बाद आरंभ होगा. मंत्र से पूजन के बाद सर्वप्रथम गोलोकवासी महंत डा. कुलपति तिवारी के पुत्र और महंत परिवार के सभी सदस्य बाबा को झूला झुलाएंगे. महंत आवास पर होने वाले आयोजन के लिए शहर के कई गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया गया है. इनमें जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं.



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