वाराणसी : जिले के काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन और महंत परिवार एक बार फिर परंपरा निर्वाह को लेकर अलग-अलग तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं. दरअसल, मामला यह है कि सावन मास के अंतिम सोमवार को बाबा के पंचबदन चल प्रतिमा का झूले पर रखकर विशेष शृंगार किया जाता है. महंत परिवार में दो लोग दावा कर रहे हैं कि सोमवार को पंचबदन चल प्रतिमा मंदिर प्रांगण के बाहर से विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश करेगी, वहीं मंदिर प्रशासन का कहना है कि कोई भी बाहर से प्रतिमा मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं करेगी, जिसे लेकर अब संशय की स्थिति बनी हुई है.
मंदिर प्रशासन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है. जिसमें कहा गया है कि श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार के संबंध में पंचबदन चल रजत प्रतिमा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में लाए जाने के लिए मंदिर प्रशासन को दो पक्षों द्वारा अलग-अलग पत्र प्रेषित किए गए हैं. पर्वों पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती है. धाम काॅरिडोर निर्माण से पूर्व मंदिर क्षेत्र में स्थित स्थानीय चल प्रतिमा का प्रयोग शोभायात्रा के लिए किया जाता था. काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवारों द्वारा कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा किया जाता है. जारी विज्ञप्ति के अनुसार, कहा गया है कि दो तीन वर्षों तक स्व. कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर मंदिर न्यास द्वारा आपत्ति नहीं की गई, हालांकि उनके भाई लोकपति तिवारी ने हमेशा इस पर आपत्ति की.
विज्ञप्ति के अनुसार, कुलपति तिवारी की हाल ही में हो गई. मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी व दूसरे पक्ष से लोकपति तिवारी द्वारा अलग-अलग पत्र इस कार्यालय में प्रेषित किए जाने से यह संज्ञान में आया है कि इस परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व शृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपस में विवाद है. दोनों पत्रों में उभय पक्ष द्वारा मूल प्रतिमा के कब्जे अथवा परम्परा के असली दावेदार होने के परस्पर विरोधाभासी दावे किये गये हैं, इसके लिए दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट केस भी लड़ रहे हैं. कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत एक तरफ उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी द्वारा इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि उनके चाचा लोकपति तिवारी की ओर से बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा किया जा रहा है. जारी विज्ञप्ति के अनुसार, विधिक परीक्षण करने पर यह निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी.
जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ऐसे किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है. दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है तथा इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होती है. साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है. मंदिर न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं, जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा. अतः उपरोक्त वर्णित तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में काशी विश्वनाथ धाम क्षेत्र के भीतर ही काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा मंदिर की स्वयं की चल प्रतिमा से श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला शृंगार का परम्परागत निवर्हन किया जायेगा. इसकी पूरी तैयारी की जा चुकी है. ट्रस्ट के विद्वान अध्यक्ष एवं विद्वतजन की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी.