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पीलीभीत के बाद उत्तराखंड का सुरई बनेगा गैंडों का आशियाना, वन्यजीवों के लिए समृद्ध है ये क्षेत्र

180 वर्ग किलोमीटर में फैला है सुरई वन क्षेत्र, यहां बड़ी संख्या में रहते हैं टाइगर, होती है जंगल सफारी

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 4 hours ago

Updated : 3 hours ago

RHINOS IN SURAI FOREST AREA
सुरई बनेगा गैंडों का आशियाना (Photo- ETV Bharat)

देहरादून: उत्तराखंड का सुरई वन क्षेत्र वन्यजीवों के लिहाज से बेहद समृद्ध है. यही कारण है कि राज्य में गैंडों के लिए इसे सबसे उपयुक्त पाया गया है. फिलहाल गैंडों को नया आशियाना यूपी के पीलीभीत वन क्षेत्र में देने की तैयारी चल रही है. इसके बाद उत्तराखंड के सुरई वन क्षेत्र पर अंतिम निर्णय लिया जाना है.

सुरई बनेगा गैंडों का आशियाना: उत्तराखंड में नए मेहमान को लाने का लंबा इंतज़ार फिलहाल बरकरार है. हालांकि उम्मीद है कि जल्द ही यह इंतजार खत्म हो सकता है. दरअसल उधमसिंह नगर जिले में स्थित सुरई वन क्षेत्र गैंडों के लिए बेहतर माना गया है. वैज्ञानिकों के अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है कि सुरई रेंज में गैंडों को बेहतर आशियाना दिया जा सकता है. हालांकि इसके लिए इस क्षेत्र में कुछ अतिरिक्त तैयारी की जरूरत होगी, जिसे पूरा करने के बाद यहां गैंडों को लाया जा सकता है. भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक कमर कुरैशी कहते हैं कि गैंडों के लिए बेहतर माहौल को लेकर जिन बातों की जरूरत होती है, वह उत्तराखंड के सुरई रेंज में मौजूद है. गैंडों को लाने से पहले कुछ तैयारी करना भी जरूरी है.

उत्तराखंड का सुरई बनेगा गैंडों का आशियाना (Video- ETV Bharat)

सुरई का जंगल वन्यजीवों के लिए रहा है बेहतर आशियाना:उत्तराखंड का सुरई वन क्षेत्र वन्यजीवों के लिए बेहतर आशियाने के रूप में देखा जाता है. इसके पीछे की वजह यहां खाने के लिए पर्याप्त वन्यजीवों की मौजूदगी, घास के मैदान और पानी का पर्याप्त मात्रा में होना है. सुरई वन क्षेत्र करीब 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. ये बाघों के लिए एक अच्छा हैबिटेट भी है और बड़ी संख्या में यहां पर बाघों की मौजूदगी भी है. इसके अलावा इस क्षेत्र में भालू, चीतल, सांभर समेत स्तनधारियों की 125 प्रजातियां मौजूद हैं. इसी तरह रेंगने वाले जीवों की 20 से ज्यादा प्रजातिया यहां पाई गई हैं. स्थिति यह है कि वन्यजीवों के लिहाज से समृद्ध जंगल होने के कारण ही सुरई में इको टूरिज्म जोन बनाया गया है, जिसमें सफारी की भी व्यवस्था है.

पीलीभीत में गैंडों का ट्रांसलोकेशन सुरई का भी खोलेगा रास्ता:भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक कमर कुरैशी बताते हैं कि पीलीभीत में गैंडों को लाने की कोशिश फिलहाल की जा रही है. इसके बाद करीब 2 साल तक सुरई में तैयारी करने के बाद यहां भी गैंडों को लाया जा सकता है. हालांकि उत्तराखंड वन विभाग इसके लिए काफी समय से प्रयास कर रहा है, लेकिन इस क्षेत्र में बाघों की अच्छी संख्या होने के कारण आपसी संघर्ष की संभावना के चलते यह प्रोजेक्ट ठंडा पड़ा हुआ है. पीलीभीत टाइगर रिजर्व में गैंडे लाए जाते हैं, तो सुरई में भी इसी आधार पर गैंडे आ सकते हैं.

उत्तराखंड में कहीं भी गैंडों की नहीं मिलती मौजूदगी:देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहां गैंडे मौजूद हैं. इनमें उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क में नेपाल से गैंडे लाए गए थे. एक सींग वाले गैंडे कभी उत्तर प्रदेश में भी मौजूद नहीं थे, लेकिन गैंडों के ट्रांसलोकेशन के बाद अब दुधवा नेशनल पार्क में इनकी अच्छी संख्या हो गई है. उधर नेपाल से अक्सर विचरण करते हुए गैंडे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों तक भी पहुंच जाते हैं. पीलीभीत टाइगर रिजर्व में भी गैंडे अक्सर आते हैं और उसके बाद वापस नेपाल लौट जाते हैं.

उत्तराखंड का सुरई वन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से सटा हुआ है. उत्तराखंड में गैंडे नहीं पाए जाते. ऐसे में दुधवा नेशनल पार्क की तरह ही उत्तराखंड के सुरई वन क्षेत्र में भी इनके लिए बेहतर आशियाना बन सकता है. भारतीय वन्यजीव संस्थान पहले ही इस क्षेत्र को बेहतर मान चुका है और अब एक बार फिर इसका असेसमेंट करने की बात कह रहा है.
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