वाराणसी: मठों का जिक्र आते ही जेहन में वेद, मंत्र, शास्त्रार्थ की तस्वीर सामने आती है. क्योंकि, सामान्यतः मठों में वेद पुराण पढ़ाया जाता है. लेकिन, अब मठों की तस्वीर कुछ बदली हुई नजर आ रही है. यहां पर हिंदुत्व की रक्षा के लिए वेद पुराण, शास्त्र के साथ आत्मरक्षा की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. इसकी शुरुआत धर्मानगरी काशी से हुई है, जहां जनेऊ धोती धारण किए बटुक हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए आत्म सुरक्षा की विद्या सीख रहे हैं.
वाराणसी के कैलाशपुरी मठ में हर दिन सैकड़ों की संख्या में बटुक जूडो-ताइक्वांडो की ट्रेनिंग लेते हैं. उनके लिए राष्ट्रीय स्तर के कोच को भी नियुक्त किया गया है. हर दिन सुबह 4:00 बजे बटुक उठकर अपनी नित्य क्रिया को करते हैं. उसके बाद मंत्रों से खुद को जागृत करते हैं, गायत्री मंत्र का जाप करते हैं. उसके बाद सुबह 8:00 से 9:30 बजे तक ताइक्वांडो-जूडो की ट्रेनिंग में हिस्सा लेते हैं.
बनारस के मठों की नई परंपरा पर संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat) शास्त्र के साथ जनेऊ-धोती में आत्मरक्षा की ट्रेंनिग: मठ में बटुकों को ट्रेनिंग देने वाले कोच लाल जी सिंह बताते हैं कि, यहां पर बटुक किसी स्पोर्ट्स कपड़े में नहीं बल्कि सनातन परंपरा के अनुसार जनेऊ और धोती में होते हैं. हम हर दिन इन बटुकों को ट्रेनिंग देते हैं. प्रारंभ में बेसिक ट्रेनिंग दी जा रही है. जिसमें बैलेंस बनाना, किसी के बैलेंस को तोड़ना, गिरना उठाना, खुद को सुरक्षित रखना बताया जा रहा है. आगे चलकर इन्हें और भी जरूरी स्टेप बताए जाएंगे. यह बच्चे वेद पढ़ने के बाद गायत्री मंत्र का आह्वान करते हैं और उसके बाद अपनी पारंपरिक वेशभूषा में ट्रेनिंग लेते हैं.
हिन्दू-हिन्दुत्व की रक्षा के लिए प्रशिक्षण जरूरी:ट्रेनिंग लेने वाले बटुक कहते हैं कि, बांग्लादेश की घटना देखी गई जहां पर सनातनी लोगों को परेशान किया गया और वर्तमान समय में ब्राह्मणों को टारगेट किया जा रहा है. ऐसे में आत्मरक्षा के गुण सीखना बेहद जरूरी है और हम सभी अपनी हिंदुत्व की रक्षा के लिए जूडो सीख रहे हैं. लोगों को यह समझने की भी जरूरत है कि जनेऊ, धोती-कुर्ता, शिखा रखने वाला सामान्य ब्राह्मण केवल शास्त्र वेद ही नहीं जानता बल्कि उसे आत्मरक्षा के गुणों के बारे में भी पता होता है और यह विद्या हम लोगों के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है.
बांग्लादेश की घटना से मिला संदेश:मठ के प्राचार्य जितेंद्र तिवारी ने बताया कि हमारी परंपरा में शास्त्र और शस्त्र दोनों सीखने की बात बताई गई है. इसी के तहत बांग्लादेश की घटना को देखते हुए अपनी आत्मरक्षा के लिए बच्चों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना जरूरी होता है. बांग्लादेश में जो आताताई लोग थे वह बहुत उपद्रव कर रहे थे, लेकिन जैसे ही सभी लोगों ने शस्त्र उठाकर खुद की सुरक्षा करने का निर्णय लिया वैसे ही वहां पर शांति की तस्वीर सामने आने लगी.
अन्य मठों में भी शुरुआत की उम्मीद:इस घटना ने हम लोगों को संदेश दिया कि वर्तमान में आत्म सुरक्षा के गुण सीखना बेहद जरूरी है. इसी को देखते हुए हम लोगों ने अपने मठ में सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग की शुरुआत की, जिसके तहत बटुकों को जूडो और ताइक्वांडो सिखाया जा रहा है. इस शुरुआत के बाद अन्य मठ के लोग भी संपर्क कर रहे हैं और इसे अपने मठ में शुरू करने का निर्णय ले रहे हैं. लोग चाहते हैं कि उनके यहां भी वेदपाठी आत्मरक्षा के गुण सीखें.
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